Durga Saptashati Path: नवरात्रि में कई लोग दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं। ये पाठ लंबा होता है जिस कारण इसमें समय भी थोड़ा ज्यादा लगता है। दुर्गा सप्तशती में 13 अध्याय होते हैं। इसी के साथ इसमें संपुट पाठ भी होता है। वैसे तो नवरात्रि में संपूर्ण पाठ करना फलदायी माना गया है। लेकिन अगर किसी कारण आपके लिए ये करना संभव नहीं हो तो आपको इसके संपुट मंत्रों का पाठ तो अवश्य ही कर लेना चाहिए।
1. सामूहिक कल्याण के लिये :
देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या
निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या।
तामम्बिकाम खिलदेव महर्षि पूज्यां भक्त्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा नः।।
2. विश्व की रक्षा के लिये :
या श्री: स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:।
पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः।।१।।
श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा।
तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम्।।२।।
3. विश्व के अभ्युदय के लिये :
विश्वेश्वरि त्वं परिपासि विश्वं विश्वात्मिका धारयसीति विश्वम्।
विश्वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः।।
4. विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये :
देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य।।
5. विश्व के पाप-ताप-निवारण के लिये :
देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीते-र्नित्यं यथा सुर वधाद धुनैव सद्यः।
पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पात पाकज नितांश्च महोप सर्गान्।।
6. विपत्ति-नाश के लिये शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
7. विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये :
करोतु सा नः शुभहेतुरीश्वरी।
शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः।
8. भय-नाश के लिये :
सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे नमोऽस्तु ते।।
एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम्।
पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते।।
ज्वाला कराल मत्यु ग्रमशेषा सुर सूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो भीतेर्भद्र कालि नमोऽस्तु ते।।
9. पाप-नाश के लिये :
हिनस्ति दैत्यतेजांसि स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि पापेभ्योऽनः सुतानिव।।
10. महामारी-नाश के लिये :
जयन्ती मङ्गला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
11. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिये :
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
12. रक्षा पाने के लिये :
शूलेन पाहि नो देवि पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन नः पाहि चापज्यानिः स्वनेन च।।
13. समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मातृभाव की प्राप्ति के लिये :
विद्याः समस्तास्तव देवि भेदाः स्त्रियः समस्ताः सकला जगत्सु।
त्वयैकया पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुतिः स्तव्यपरा परोक्ति:।।
14. सब प्रकार के कल्याण के लिये :
सर्वमङ्गल मङ्गल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते।।
15. शक्ति-प्राप्ति के लिये :
सृष्टि स्थिति विनाशानां शक्ति भूते सनातनि।
गुणा श्रये गुणमये नारायणि नमोऽस्तु ते।।
16. प्रसन्नता की प्राप्ति के लिये :
प्रणतानां प्रसीद त्वं देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीड्ये लोकानां वरदा भव।।
17. विविध उपद्रवों से बचने के लिये :
रक्षांसि यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्।।
18. बाधा मुक्त होकर धन-पुत्रादि की प्राप्ति के लिये :
सर्वा बाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य सुतान्वितः।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशयः।।
19. भक्ति-मुक्ति की प्राप्ति के लिये :
विधेहि देवि कल्याणं विधेहि परमां श्रियम्।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
20. पाप नाश तथा भक्ति की प्राप्ति के लिये :
नतेभ्यः सर्वदा भक्त्या चण्डिके दुरितापहे।
रूपं देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि।।
21. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिये :
सर्वभूता यदा देवी स्वर्गमुक्ति प्रदायिनी।
त्वं स्तुता स्तुतये का वा भवन्तु परमोक्तयः।।
22. स्वर्ग और मुक्ति के लिये :
सर्वस्य बुद्धिरूपेण जनस्य हृदि संस्थिते।
स्वर्गापवर्गदे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते।।
23. मोक्ष की प्राप्ति के लिये :
त्वं वैष्णवी शक्तिरनन्तवीर्या विश्वस्य बीजं परमासि माया।
सम्मोहितं देवि समस्तमेतत् त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्तिहेतुः।।
24. स्वप्न में सिद्धि-असिद्धि जानने के लिये :
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थ साधिके।
मम सिद्धिम सिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।