महाष्टमी को महादुर्गाअष्टमी के मां से भी जाना जाता है। महा अष्टमी दुर्गा पूजा के महत्वपूर्ण दिनों में से एक है। नौ दिनों के इस पर्व में मां के नौ रूपों की पूजा की जाती है। महा अष्टमी वाले दिन मां गौरी की पूजा की जाती है। व्रत को पूर्ण करने और मां दुर्गा का आशीर्वाद लेने के लिए कन्याओं का अष्टमी और नवमी के दिन पूजन करना आवश्यक होता है। इस दिन सिर्फ मां गौरी के पूजन के साथ उनकी कथा का पाठ भी करना और कन्या पूजन करना आवश्यक होता है। इस दिन मां की पूजा विशेष तौर पर की जाती है जिसके लिए विशेष सामग्री का उपयोग किया जाता है। ऐसा मां जाता है कि मां को लाल रंग बहुत ही प्रिय है इसलिए मां के पूजन की सामग्री और उनके वस्त्रों का रंग लाल ही चुने। मां दुर्गा के पूजन के लिए लाल फूल, लाल चंदन, दिया और धूप आदि सामाग्रियों से उनका पूजन करते हैं। इस दिन घर के सभी लोग व्रत करते हैं और मां दुर्गा का पाठ करते हैं।
दुर्गा अष्टमी के दिन छोटी कन्याओं को भोजन करवाया जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन 12 वर्ष तक की कन्याओं को भोजन करवाना और उनका पूजन करना शुभ माना जाता है। पृथ्वी पर छोटी कन्याएं मां दुर्गा का प्रतिनिधित्व करती हैं। इस दिन 5,7, 9 और 11 के लड़कियों के समूह को भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनके आने पर उनकी सेवा में उनके पांव धोए जाते हैं। फिर उनका पूजन किया जाता है। इसके पश्चात उनके लिए बनाया हुआ भोजन जैसे हलवा, पूड़ी, मिठाई, खीर आदि और उपहार दिए जाते हैं। इसके बाद सभी देवियों का आशीर्वाद लेकर उन्हें विदा किया जाता है।
28 सितंबर 2007- इस बार अष्टमी 27 सितंबर से शाम 7.08 मिनट पर शुरू हो जाएगी। अष्टमी पूजन 28 सितंबर को शाम 9.36 मिनट तक रहेगा। इसीलिए भक्त 28 सितंबर की सुबह कन्या पूजन कर सकते हैं। माता महागौरी अन्नपूर्णा स्वरूप है। इसीलिए अष्टमी के दिन अन्नकूट पूजा यानि कन्या पूजन करना अति उत्तम माना जाता है। इस दिन लोग कन्याओं और ब्रह्रामणों को भोज करवाया जाता है। इस दिन लोग छोले, पूड़ी, खीर, हलवा आदि का महागौरी को भोग लगाकर कन्याओं को भोज करवाया जाता है। ये सब मां के प्रिय भोग हैं।
महागौरी की पूजा के दौरान इन मंत्र का उच्चारण करें।
– ॐ महागौर्य: नम:
– ॐ नवनिधि गौरी महादैव्ये नम: