Mata Laxmi Ki Katha, Kahani And Story in Hindi: सनातन धर्म में दिवाली पर्व का विशेष महत्व है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी धरती पर विचरण करने आती हैं। वहीं जो कोई उनकी इस दिन सच्चे मन से अराधना करता है। वह उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। आपको बता दें कि दिवाली के दिन कई लोग व्रत रखते हैं और शाम को व्रत का पारण करते हैं। वहीं हम यहां आपको बताने जा रहे हैं। पैराणिक कथा के बारे में जिसका पाठ व्रत खोलने से पहले और महालक्ष्मी पूजा करने के बाद करना चाहिए। आइए जानते हैं पौराणिक कथा के बारे में…

दिवाली व्रत कथा (Diwali Vrat Katha)

पौराणिक कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार श्री राम अयोध्या में महाराजा दशरथ के घर प्रकट हुए थे। श्रीराम वहां उनके पुत्र के रूप में रहा करते थे। समय के साथ साथ जब वह बड़े हुए तो उनकी सौतेली मां ने लालचवश श्री राम को 14 साल के वनवास के लिए भेज दिया।

अपनी माता की आज्ञा मानकर वह 14 साल के लिए वनवास चले गए। उनके साथ देवी सीता और भाई लक्ष्मण भी गए। अयोध्यावासी श्रीराम से अत्यंत प्रेम किया करते थे। 14 साल बाद जब कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को श्री राम लौटकर अयोध्या आए थे तो सभी अयोध्यावासियों ने उनके आने की खुशी में दीपक जलाए थे।

तब से ही दिवाली मनाने की परंपरा चली आ रही है। एक अन्य कथा के अनुसार समुद्र मंथन के दौरान कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि को माता महालक्ष्मी समुद्र से प्रकट हुई थीं। इसलिए इस दिन को दीपावली के रूप में मनाया जाता है।

दूसरी दिवाली की पौराणिक कथा (Diwali Katha/Story)

एक गांव में एक साहूकार था, उसकी बेटी प्रतिदिन पीपल पर जल चढ़ाने जाती थी। जिस पीपल के पेड़ पर वह जल चढ़ाती थी, उस पेड़ पर लक्ष्मी जी का वास था। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा ‘मैं तुम्हारी मित्र बनना चाहती हूँ’। लड़की ने कहा की ‘मैं अपने पिता से पूछ कर आऊंगी’। यह बात उसने अपने पिता को बताई, तो पिता ने ‘हां’ कर दी। दूसरे दिन से साहूकार की बेटी ने सहेली बनना स्वीकार कर लिया।

दोनों अच्छे मित्रों की तरह आपस में बातचीत करने लगीं। एक दिन लक्ष्मीजी साहूकार की बेटी को अपने घर ले गई। अपने घर में लक्ष्मी जी ने उसका दिल खोल कर स्वागत किया। उसकी खूब खातिर की। उसे अनेक प्रकार के भोजन परोसे। मेहमान नवाजी के बाद जब साहूकार की बेटी लौटने लगी तो, लक्ष्मी जी ने प्रश्न किया कि अब तुम मुझे कब अपने घर बुलाओगी। साहूकार की बेटी ने लक्ष्मी जी को अपने घर बुला तो लिया, परन्तु अपने घर की आर्थिक स्थिति देख कर वह उदास हो गई। उसे डर लग रहा था कि क्या वह, लक्ष्मी जी का अच्छे से स्वागत कर पायेगी।

साहूकार ने अपनी बेटी को उदास देखा तो वह समझ गया, उसने अपनी बेटी को समझाया, कि तू फौरन मिट्टी से चौका लगा कर साफ-सफाई कर। चार बत्ती के मुख वाला दिया जला और लक्ष्मी जी का नाम लेकर बैठ जा। उसी समय एक चील द्वारा किसी रानी का नौलखा हार उसके पास आ गया। साहूकार की बेटी ने उस हार को बेचकर भोजन की तैयारी की। थोड़ी देर में श्री गणेश के साथ लक्ष्मी जी उसके घर आ गई। साहूकार की बेटी ने दोनों की खूब सेवा की, उसकी खातिर से लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न हुई और साहूकार बहुत अमीर बन गया।

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