Diwali 2024 Mata Laxmi Puja Vidhi, Shubh Muhurat: देशभर में आज दिवाली का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज के दिन घरों को दीपों से सजाने के साथ मां लक्ष्मी, गणेश जी की पूजा करने का विधान है। इस साल अमावस्या तिथि दो दिन होने के कारण कई लोग आज, तो कई लोग 1 नवंबर को दिवाली का पर्व मना रहे हैं। ज्योतिषों के अनुसार, आज के दिन गणेश जी और माता लक्ष्मी के साथ कुबेर भगवान की विधिवत पूजा करने का विधान है।
Diwali 2024 Laxmi Ji Puja Vidhi Shubh Muhurat LIVE: Check Here
पंचांग के अनुसार आज काफी शुभ योग पर दिवाली की पूजा की जाएगी। कहा जाता है कि मां लक्ष्मी दिवाली की रात धरती पर भ्रमण करती हैं और वह अपने भक्तों के घर जाकर उन्हें सुख-समृद्धि का वरदान देती है। आइए जानते हैं दिवाली पूजन का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि…
Laxmi Ji Aarti | Ganesh Ji Aarti
दिवाली 2024 लक्ष्मी पूजन मुहूर्त (Diwali 2024 Laxmi Puja Muhurat)
लक्ष्मी पूजा का निशिता मुहूर्त- 31 अक्टूबर को रात 11 बजकर 39 मिनट से देर रात 12:31 बजे तक है।
प्रदोष काल- 31 अक्टूबर को प्रदोष काल शाम 05 बजकर 36 मिनट लेकर 08 बजकर 11 मिनट तक रहेगा।
वृषभ लग्न – शाम 06 बजकर 25 मिनट से लेकर रात को 08 बजकर 20 मिनट तक रहेगा।
लक्ष्मी पूजा का सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त
प्रदोष काल, वृषभ लग्न और चौघड़िया के हिसाब से लक्ष्मी पूजन के लिए सबसे सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त 31 अक्टूबर की शाम को 06:25 से लेकर 7:13 के बीच का समय का है। कुल मिलाकर 48 मिनट का यह मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ रहेगा।
1 नवंबर 2024 लक्ष्मी पूजन
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 05:33 पी एम से 06:16 पी एम
अवधि – 00 घण्टे 44 मिनट्स
प्रदोष काल – 05:33 पी एम से 08:10 पी एम
वृषभ काल – 06:15 पी एम से 08:09 पी एम
ऐसे करें गणेश-लक्ष्मी पूजन
दिवाली पूजन आरंभ करने से पहले गणेश, लक्ष्मी जी और कुबेर भगवान सहित अन्य यंत्रों को स्थान देने के लिए रंगोली बनाएं। इसके बाद इसके बाद चौकी रखें लाल रंग का कपड़ा बिछा दें। इसके बाद अक्षत डालें और उसमें गणेश-लक्ष्मी की मूर्ति रखें। इसके साथ ही अन्य देवी-देवता की मूर्ति रख लें। इस बात का ध्यान रखें कि गणेश जी के दाएं ओर मां लक्ष्मी की मूर्ति रखी हो।
सबसे पहले कुशा या आम के पत्ते की मदद से अपने ऊपर और आसन के नीचे जल डालते हुए बोलें-ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतोऽपिवा। य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर: शुचि:॥ इसके बाद अपने हाथ धोते हुए बोले-ऊं केशवाय नम: ऊं माधवाय नम:, ऊं नारायणाय नम:।
अब पूजा आरंभ करें।
इस मंत्र से आसन शुद्ध करें- ऊं पृथ्वी त्वयाधृता लोका देवि त्यवं विष्णुनाधृता। त्वं च धारयमां देवि पवित्रं कुरु चासनम्॥ अब चंदन लगाएं। फिर श्रीखंड चंदन लगाते हुए मंत्र बोलें चन्दनस्य महत्पुण्यम् पवित्रं पापनाशनम्, आपदां हरते नित्यम् लक्ष्मी तिष्ठ सर्वदा।
अब पूजा का संकल्प लें। इसके लिए हाथों में फूल, सुपारी, एक पान, नारियल, चांदी का सिक्का, मिठाई, लौंग आदि लेकर संकल्प लें और इस मंत्र को बोले- ऊं विष्णुर्विष्णुर्विष्णु:, ऊं तत्सदद्य श्री पुराणपुरुषोत्तमस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्रह्मणोऽह्नि द्वितीय पराद्र्धे श्री श्वेतवाराहकल्पे सप्तमे वैवस्वतमन्वन्तरे, अष्टाविंशतितमे कलियुगे, कलिप्रथम चरणे जम्बुद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तान्तर्गत ब्रह्मवर्तैकदेशे पुण्य (अपने नगर/गांव का नाम लें) क्षेत्रे बौद्धावतारे वीर विक्रमादित्यनृपते : 2070 तमेऽब्दे पिंगल नाम संवत्सरे दक्षिणायने हेमंत ऋतो महामंगल्यप्रदे मासानां मासोत्तमे कार्तिक मासे कृष्ण पक्षे अमावस तिथौ रविवासरे हस्त नक्षत्रे आयुष्मान योगे चतुष्पद करणादिसत्सुशुभे योग (गोत्र का नाम लें) गोत्रोत्पन्नोऽहं अमुकनामा (अपना नाम लें) सकलपापक्षयपूर्वकं सर्वारिष्ट शांतिनिमित्तं सर्वमंगलकामनया– श्रुतिस्मृत्यो- क्तफलप्राप्तर्थं— निमित्त महागणपति नवग्रहप्रणव सहितं कुलदेवतानां पूजनसहितं स्थिर लक्ष्मी महालक्ष्मी देवी पूजन निमित्तं एतत्सर्वं शुभ-पूजोपचारविधि सम्पादयिष्ये।
सभी सामग्री गणेश-लक्ष्मी को चढ़ा दें। इसके बाद कलश की पूजा करें। सबसे पहले कलश में स्वास्तिक का चिन्ह बनाने के साथ इसके गले में मौली बांधकर दें और ऊपर आम का पल्लव रखें। इसके साथ ही कलश में जल, गंगाजल, सुपारी, दूर्वा, अक्षत, सिक्का रखें। इसके बाद ढक्कन बंद करके उसमें गेहूं या चावल भर दें। इसके बाद एक नारियल लें और उसमे लाल कपड़ा के साथ कलावा लपेट कर कलश के ऊपर रख दें। इसके बाद हाथों में फूल लेकर वरुण देव का आह्वान करें। ओ३म् त्तत्वायामि ब्रह्मणा वन्दमानस्तदाशास्ते यजमानो हविभि:। अहेडमानो वरुणेह बोध्युरुशंस मान आयु: प्रमोषी:। (अस्मिन कलशे वरुणं सांग सपरिवारं सायुध सशक्तिकमावाहयामि, ओ३म्भूर्भुव: स्व:भो वरुण इहागच्छ इहतिष्ठ। स्थापयामि पूजयामि॥) इसके बाद फूल कलश में चढ़ा दें। इसके साथ ही फूल, माला, भोग भी लगा दें।
अब गणेश-लक्ष्मी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले एक हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें। मंत्र बोलें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। बोलें और गणेश जी को फूल चढ़ा दें। इसके बाद पद्य, आर्घ्य, स्नान, आचमन मंत्र – एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम् ऊं गं गणपतये नम:। इस मंत्र से चंदन लगाएं: इदम् रक्त चंदनम् लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:, इसके बाद- इदम् श्रीखंड चंदनम् बोलकर श्रीखंड चंदन लगाएं। अब सिन्दूर लगाएं “इदं सिन्दूराभरणं लेपनम् ऊं गं गणपतये नम:। दूर्वा और विल्बपत्र भी गणेश जी को चढ़ाएं। गणेश जी को वस्त्र. आभूषण पहनाएं। इदं रक्त वस्त्रं ऊं गं गणपतये समर्पयामि।
फिर गणेश जी को प्रसाद चढ़ाएं और बोले इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं गं गणपतये समर्पयामि, मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र बोलें– इदं शर्करा घृत युक्त नैवेद्यं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं गं गणपतये नम:। इसके बाद पान सुपारी दें: इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं गं गणपतये समर्पयामि:। अब एक फूल लेकर गणपति पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं गं गणपतये नम:।
अब लक्ष्मी की पूजा आरंभ करें। सबसे पहले उनका ध्यान करें -ॐ या सा पद्मासनस्था, विपुल-कटि-तटी, पद्म-दलायताक्षी। गम्भीरावर्त-नाभिः, स्तन-भर-नमिता, शुभ्र-वस्त्रोत्तरीया।। लक्ष्मी दिव्यैर्गजेन्द्रैः। ज-खचितैः, स्नापिता हेम-कुम्भैः। नित्यं सा पद्म-हस्ता, मम वसतु गृहे, सर्व-मांगल्य-युक्ता।। अब हाथ में अक्षत लेकर बोलें “ॐ भूर्भुवः स्वः महालक्ष्मी, इहागच्छ इह तिष्ठ, एतानि पाद्याद्याचमनीय-स्नानीयं, पुनराचमनीयम्।” प्रतिष्ठा के बाद स्नान कराएं: ॐ मन्दाकिन्या समानीतैः, हेमाम्भोरुह-वासितैः स्नानं कुरुष्व देवेशि, सलिलं च सुगन्धिभिः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः।। इदं रक्त चंदनम् लेपनम् से रक्त चंदन लगाएं। इदं सिन्दूराभरणं से सिन्दूर लगाएं। ‘ॐ मन्दार-पारिजाताद्यैः, अनेकैः कुसुमैः शुभैः। पूजयामि शिवे, भक्तया, कमलायै नमो नमः।। ॐ लक्ष्म्यै नमः, पुष्पाणि समर्पयामि।’इस मंत्र से पुष्प चढ़ाएं फिर माला पहनाएं।
अब लक्ष्मी देवी को इदं रक्त वस्त्र समर्पयामि कहकर लाल वस्त्र पहनाएं। इसके बाद मां लक्ष्मी की अंग पूजा करें। इसके लिए बाएं हाथ में अक्षत लेकर दाएं हाथ से थोड़ा-थोड़ा अक्षत छोड़ते जाएं— ऊं चपलायै नम: पादौ पूजयामि ऊं चंचलायै नम: जानूं पूजयामि, ऊं कमलायै नम: कटि पूजयामि, ऊं कात्यायिन्यै नम: नाभि पूजयामि, ऊं जगन्मातरे नम: जठरं पूजयामि, ऊं विश्ववल्लभायै नम: वक्षस्थल पूजयामि, ऊं कमलवासिन्यै नम: भुजौ पूजयामि, ऊं कमल पत्राक्ष्य नम: नेत्रत्रयं पूजयामि, ऊं श्रियै नम: शिरं: पूजयामि। अंग पूजन की भांति हाथ में अक्षत लेकर मंत्र बोलें। ऊं अणिम्ने नम:, ओं महिम्ने नम:, ऊं गरिम्णे नम:, ओं लघिम्ने नम:, ऊं प्राप्त्यै नम: ऊं प्राकाम्यै नम:, ऊं ईशितायै नम: ओं वशितायै नम:।
अंग पूजन एवं अष्टसिद्धि पूजा की की तरह ही हाथ में अक्षत लेकर मंत्रोच्चारण करें। ऊं आद्ये लक्ष्म्यै नम:, ओं विद्यालक्ष्म्यै नम:, ऊं सौभाग्य लक्ष्म्यै नम:, ओं अमृत लक्ष्म्यै नम:, ऊं लक्ष्म्यै नम:, ऊं सत्य लक्ष्म्यै नम:, ऊं भोगलक्ष्म्यै नम:, ऊं योग लक्ष्म्यै नम: फिर प्रसाद अर्पित करें और इस मंत्र को बोले-इदं नानाविधि नैवेद्यानि ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” मंत्र से नैवैद्य अर्पित करें। मिठाई अर्पित करने के लिए मंत्र: “इदं शर्करा घृत समायुक्तं नैवेद्यं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि” बालें। प्रसाद अर्पित करने के बाद आचमन कराएं। इदं आचमनयं ऊं महालक्ष्मियै नम:। इसके बाद पान सुपारी चढ़ाएं:- इदं ताम्बूल पुगीफल समायुक्तं ऊं महालक्ष्मियै समर्पयामि।
अब एक फूल लेकर लक्ष्मी देवी पर चढ़ाएं और बोलें: एष: पुष्पान्जलि ऊं महालक्ष्मियै नम:। श्रीलक्ष्मी को धूप समर्पित करें। इसके बाद नैवेद्य चढ़ाएं। इसके बाद कुबेर भगवान सहित अन्य देवी-देवता की पूजा कर लें। अंत में गणेश आरती, लक्ष्मी आरती, कुबेर आरती करने के बाद अंत में भूल चूक के लिए माफी मांग लें।