Dhanteras 2025 Katha In Hindi (धनतेरस 2025 कथा): हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इसके साथ ही पांच दिवसीय दिवाली का पर्व आरंभ हो जाता है। इस दौरान भगवान धन्वंतरि, कुबेर जी के साथ माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। इसके साथ ही इस दिन सोना-चांदी के साथ कुछ अन्य चीजों की खरीदारी करने से मां लक्ष्मी अति प्रसन्न होती है। धनतेरस के दिन विधिवत पूजा करने के साथ कथा पढ़ना या फिर सुनना शुभ माना जाता है। धार्मिक मान्यताओं में धनतेरस को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। यहां पर मां लक्ष्मी और भगवान धन्वतंरि से संबंधित कथाएं बता रहे हैं। आइए जानते हैं धनतेरस की कथा…
धनतेरस की कथा – भगवान धन्वंतरि का प्राकट्य
विष्णु पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, एक बार देवताओं और असुरों के बीच अमृत प्राप्ति की होड़ मची। अमृत पाने के लिए भगवान विष्णु के सुझाव पर देवता और असुर मिलकर समुद्र मंथन करने का निर्णय लिया। इस मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी और वासुकि नाग को रस्सी के रूप में उपयोग किया गया। भगवान विष्णु ने कच्छप का अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर स्थिर रखा, जिससे मंथन की प्रक्रिया बिना किसी बाधा के चल सके।
जैसे-जैसे समुद्र मंथन होता गया, क्षीरसागर से कई दिव्य रत्न और वस्तुएं प्रकट होने लगीं, जिनमें कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, पारिजात वृक्ष और देवी लक्ष्मी शामिल थीं। लेकिन मंथन के अंतिम चरण में एक अद्भुत घटना हुई। समुद्र से एक दिव्य पुरुष प्रकट हुए, जिनके हाथों में अमृत से भरा स्वर्ण कलश था। ये थे धन्वंतरि, जिन्हें भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। धन्वंतरि के साथ ही आयुर्वेद का ज्ञान भी प्रकट हुआ, जो मानव जीवन के लिए स्वास्थ्य और दीर्घायु का वरदान साबित हुआ।
धन्वंतरि को आयुर्वेद का जनक कहा जाता है क्योंकि उन्होंने मानवजाति को चिकित्सा विज्ञान का अद्भुत ज्ञान दिया। उन्होंने रोगों के निदान और उपचार की विधियां बताईं, जो आज भी आयुर्वेद में प्रचलित हैं। उनके ग्रंथों में औषधियों, जड़ी-बूटियों और प्राकृतिक उपचारों का विस्तृत विवरण मिलता है।
धनतेरस का पर्व कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है, जो धन्वंतरि के प्रकट होने का विशेष दिन माना जाता है। इस दिन लोग धन्वंतरि की पूजा करते हैं और उनके आशीर्वाद से स्वास्थ्य, धन और समृद्धि की कामना करते हैं। मान्यता है कि धनतेरस के दिन खरीदारी करने से घर में समृद्धि आती है और धन्वंतरि की कृपा बनी रहती है।
धनतेरस की दूसरी कथा
कहा जाता है कि एक समय भगवान विष्णु पृथ्वी पर विचरण करने के लिए आए थे। तब उनकी पत्नी देवी लक्ष्मी जी ने उनसे आग्रह किया कि वे उनके साथ चलें। भगवान विष्णु ने कहा कि यदि मैं जो कहूं तुम वही मानो तो मैं तुम्हें साथ ले जाऊंगा। लक्ष्मी जी ने सहमति दी और दोनों पृथ्वी पर आए।
कुछ समय बाद भगवान विष्णु ने लक्ष्मी जी से कहा कि मैं अब दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूँ, तुम यहीं रुको और वहां मत जाना। परन्तु लक्ष्मी जी का मन कौतूहल से भर गया कि आखिर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या रहस्य है। वे उनकी बात मान नहीं पाईं और भगवान के पीछे-पीछे चल पड़ीं।
थोड़ी दूर चलने पर लक्ष्मी जी को एक सरसों का खेत दिखाई दिया, जहाँ सरसों के पीले फूल खूब खिले हुए थे। उनकी सुंदरता देखकर वे मंत्रमुग्ध हो गईं और फूल तोड़कर अपने श्रृंगार में लगा लिया। फिर वे आगे बढ़ीं और एक गन्ने के खेत में पहुंचीं जहाँ उन्होंने गन्ने तोड़कर रस चूसना शुरू कर दिया।
तभी भगवान विष्णु वहां आए और उन्होंने लक्ष्मी जी को देखा तो नाराज होकर कहा, “मैंने तुम्हें यहाँ आने से मना किया था, फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी और चोरी कर डाली। इस अपराध के कारण तुम्हें इस किसान की 12 वर्ष तक सेवा करनी होगी।” यह कहकर भगवान विष्णु क्षीरसागर चले गए।
लक्ष्मी जी उस गरीब किसान के घर रहने लगीं। एक दिन उन्होंने किसान की पत्नी से कहा, “तुम पहले स्नान कर के मेरी बनाई हुई देवी लक्ष्मी की पूजा करो, उसके बाद रसोई बनाओ। तब जो भी तुम मांगोगी, वह पूरा होगा।” किसान की पत्नी ने वैसा ही किया। पूजा के प्रभाव से और लक्ष्मी की कृपा से अगले ही दिन से किसान के घर में अन्न, धन, रत्न और सोना भर गया। लक्ष्मी जी ने किसान को संपन्न बना दिया और किसान के 12 वर्ष बड़े आनंदमय ढंग से बीते।
12 वर्ष बाद जब लक्ष्मी जी जाने को तैयार हुईं, तो भगवान विष्णु उन्हें लेने आए। पर किसान ने उन्हें जाने नहीं दिया। भगवान विष्णु ने कहा, “इन्हें कोई भी रोक नहीं सकता, वे चंचल स्वभाव की हैं। तुम्हारे यहां 12 वर्ष से सेवा कर रही थीं, अब उनका समय पूरा हो चुका है।” लेकिन किसान ने हठ नहीं छोड़ा और कहा कि वे लक्ष्मी जी को जाने नहीं देंगे।
तब लक्ष्मी जी ने कहा, “यदि तुम मुझे रोकना चाहते हो तो मेरी बात मानो। कल तेरस है। उस दिन तुम अपने घर को अच्छी तरह साफ करो, रात्रि में घी का दीपक जलाओ और शाम को मेरा पूजन करो। साथ ही एक तांबे के कलश में रुपए रखो, मैं उसी कलश में निवास करूंगी। पूजा के समय मैं तुम्हें दिखाई नहीं दूंगी, पर इस एक दिन की पूजा से मैं पूरे साल तुम्हारे घर में रहूंगी।”
लक्ष्मी जी के इस आदेश के बाद दीपकों की रौशनी पूरे घर में फैल गई। किसान ने जैसे कहा वैसा ही किया और उस दिन की पूजा के बाद उनका घर धन-धान्य से भर गया। यही कारण है हर वर्ष तेरस के दिन लक्ष्मीजी की पूजा होने लगी।
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