Dhanteras 2020 Puja Vidhi, Shubh Muhurat Timings: इस साल धनतेरस का परम पावन त्योहार 13 नवंबर, शुक्रवार को मनाया जा रहा है। ऐसी मान्यता है कि धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि, भगवान कुबेर और माता महालक्ष्मी की सच्चे मन से उपासना करने वाले व्यक्ति को अपार धन-संपत्ति और धन-धान्य की प्राप्ति होती है। विद्वानों का मानना है कि धनतेरस की पूजा शुभ मुहूर्त में और विधि-विधान के साथ की जानी चाहिए।
धनतेरस पूजा विधि (Dhanteras Puja Vidhi)
एक चौकी लें। इस पर लाल रंग का कपड़ा बिछाएं। उस पर गंगाजल के छींटें मारकर स्थान पवित्र करें।
अब चौकी के सामने लाल रंग का आसन बिछाकर बैठ जाएं।
फिर चौकी पर भगवान धन्वंतरि, भगवान कुबेर और माता महालक्ष्मी की कमल के फूल पर बैठी फोटो या प्रतिमा स्थापित करें।
माता महालक्ष्मी को कमल के पुष्पों की माला, कमलगट्टे की माला या लाल रंग के फूलों की माला चढ़ाएं। जबकि भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर को पीले रंग के फूलों की माला अर्पित करें।
अब प्रतिमाओं के मस्तक पर कुमकुम का तिलक लगाएं।
फिर धूप, दीप और अगरबत्ती जलाएं।माता महालक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर के स्वरूप का ध्यान करें।
अब लक्ष्मी स्तुति, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी स्तोत्र, कुबेर स्तुति और लक्ष्मी नारायण हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
फिर भगवान धन्वंतरि, भगवान कुबेर और माता महालक्ष्मी के मंत्रों का जाप करें। बताया जाता है कि अगर जाप करते समय धन के देवी-देवताओं के स्वरूप का ध्यान किया जाए तो उस जाप का फल अधिक मिलता है।
माता महालक्ष्मी की आरती करें साथ ही जयकारे लगाएं। फिर भगवान विष्णु की आरती करें। ऐसी मान्यता है कि भगवान श्रीहरि विष्णु लक्ष्मीपति हैं इसलिए माता महालक्ष्मी उसी स्थान पर वास करते हैं जहां भगवान विष्णु की आराधना की जाती है।
आरती के बाद माता महालक्ष्मी को खीर का भोग लगाएं। अगर खीर का भोग ना लगा पाएं तो किसी भी मौसमी पर या मिठाई का भोग लगा सकते हैं।
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त (Dhanteras Puja Ka Shubh Muhurat)
पूजा का शुभ मुहूर्त – 13 नवंबर, शुक्रवार – शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 5 बजकर 59 मिनट तक।
वृषभ काल – शाम 5 बजकर 32 मिनट से शाम 7 बजकर 28 मिनट तक।
प्रदोष काल – शाम 5 बजकर 28 मिनट से शाम 8 बजकर 7 मिनट तक।
Highlights
शुक्र बुध की राशि कन्या में, शनिदेव स्वराशि मकर में, राहु शुक्र की राशि वृष में तो केतु मंगल की राशि वृश्चिक में हैं। इस दिन सूर्य तुला राशि में, चंद्रमा शुक्र की राशि तुला में, पराक्रम कारक ग्रह मंगल गुरु की राशि मीन में, बुध शुक्र की राशि तुला में हैं।
रोली, मौली, पान, सुपारी, अक्षत, धूप, घी का दीपक, तेल का दीपक, खील, बताशे, श्रीयंत्र, शंख , घंटी, चंदन, जलपात्र, कलश, लक्ष्मी, गणेश, सरस्वती जी का चित्र या प्रतिमा, पंचामृत, गंगाजल, सिन्दूर, नैवेद्य, इत्र, जनेऊ, कमल का पुष्प, वस्त्र, कुमकुम, पुष्पमाला, फल, कर्पूर, नारियल, इलायची, दूर्वा।
धनलक्ष्मी माता
ऐश्वर्य लक्ष्मी माता
गजलक्ष्मी माता
वैभव लक्ष्मी माता
संतान लक्ष्मी माता
विजय लक्ष्मी माता
धान्य लक्ष्मी माता
वीर लक्ष्मी माता
धनतेरस की पूजा में भगवान गणेश को भी स्थान देना चाहिए। कहते हैं कि भगवान गणेश शुभता का प्रतीक हैं। इसलिए दिवाली और धनतेरस की पूजा में माता महालक्ष्मी के साथ उन्हें स्थान देना भी जरूरी माना गया है।
धनतेरस की पूजा करने के लिए माता महालक्ष्मी को चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछाकर ही उस पर माता महालक्ष्मी को विराजमान करें। बताया जाता है कि देवी लक्ष्मी को लाल और गुलाबी रंग अत्यंत प्रिय है इसलिए वो इस रंग के आसन पर बैठना पसंद करती हैं।
धनतेरस पूजा के दौरान लाल रंग का पुष्प अर्पित किया जाता है। विद्वानों का मानना है कि धनतेरस पूजा के दौरान माता महालक्ष्मी को लाल रंग फूल चढ़ाने से आरोग्य की प्राप्ति होने के साथ ही वैभव की भी प्राप्ति हो सकती है।
धनतेरस को मां लक्ष्मी के आगमन का दिन माना जाता है। कहते हैं कि इस दिन जो व्यक्ति सच्चे मन से मां लक्ष्मी का ध्यान कर उनके मंत्रों का जाप करता है, मां लक्ष्मी उन पर कृपा करती हैं।