Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj, Devshayani Ekadashi Niyam: हिंदू धर्म के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। ये एकादशी तिथि काफी खास होती है। साल में पड़ने वाली 24 एकादशी का अलग-अलग फल होता है। प्रेमानंद महाराज जी कहते है कि अगर किसी साधक को एकादशी का व्रत का संपूर्ण फल पाना है, तो व्रत रखने, पूजा पाठ करने के साथ-साथ कुछ नियमों का जरूर पालन करना चाहिए। इसके बाद की फल मिलता है। इन नियमों का पालन केवल एकादशी तिथि को ही नहीं बल्कि दशमी और द्वादशी तिथि को भी करना चाहिए। प्रेमानंद महाराज जी से एकांतिक वार्तालाप में एक साधक ने पूछा कि एकादशी के व्रत को सफल बनाने के लिए किन चीजों से परहेज करना चाहिए और इसका क्या नियम है?
रवि योग में देवशयनी एकादशी व्रत, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, भोग और पारण का
प्रेमानंद महाराज जी कहते है कि परम मुनि परमहंस श्री सनातन जी हर समय पांच वर्ष की अवस्था में रहते हैं और कोई वस्त्र नहीं धारण करते, वे दिगंबर रहते हैं। “दिगंबर” का अर्थ होता है, जिनकी दिशाएँ ही वस्त्र हैं, अर्थात वे नग्न अवस्था में रहते हैं। वे कहते हैं कि एकादशी व्रत को “हरि तोष व्रत” कहा जाता है, क्योंकि यह भगवान श्री हरि की प्रसन्नता के लिए किया जाता है। सामान्यतः समस्त वैष्णव जन, विशेष रूप से जो श्री प्रियाजी के चरणों में अनन्य भक्ति रखते हैं, वे एकादशी व्रत रखते हैं। उनका मुख्य उद्देश्य श्यामा-श्याम की आठों पहर उपासना करते हुए अपने मन, वचन और कर्म को श्यामा-श्याम में समर्पित करना होता है।
देवशयनी एकादशी से एक दिन पहले ही इन चीजों का कर दें त्याग
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि जो एकादशी व्रत करता है, वह परम धन्य होता है। श्री सनातन मुनि के अनुसार, यदि किसी को एकादशी व्रत का फल प्राप्त करना है, तो उसे तीन दिन संयम में रहना चाहिए यानी दशमी, एकादशी और द्वादशी। केवल एक दिन व्रत रखने से एकादशी व्रत का संपूर्ण फल नहीं मिलता। दशमी के दिन कांसे के पात्र का त्याग करें, उस रसोई का भोजन न करें जिसमें मांस बना हो। मसूर की दाल, चना की दाल, कोदो, कोई भी शाक, शहद, दूसरों का भोजन, पुनः भोजन और मैथुन आदि का त्याग करना चाहिए। दशमी को केवल एक बार भोजन करें और संयम बरतें।
देवशयनी एकादशी के दिन न करें ये काम
प्रेमानंद महाराज आगे कहते हैं कि एकादशी के दिन किसी भी प्रकार की क्रीड़ा, खेल या मनोरंजन जैसे मोबाइल गेम आदि से दूर रहें। न दिन में नींद लें और न रात में। रात्रि में जागरण कर कीर्तन आदि करें। यह नियम महापुरुषों द्वारा भी अपनाए गए हैं, जैसे रामदास जी रात्रि में भगवान के कीर्तन करते थे और भगवान स्वयं उनके कीर्तन से प्रसन्न होकर उनके साथ आए थे।
एकादशी के दिन पान, वृक्ष से तोड़कर लाई गई दतून, दूसरों की निंदा, चुगली, चोरी, क्रोध, झूठ बोलना, मैथुन और किसी को दुःख देना आदि का त्याग करना चाहिए। मौन रहकर व्रत करना श्रेष्ठ माना गया है। भोजन के रूप में केवल शुद्ध, भगवान को अर्पित फलाहार लें। अगर संभव हो तो निर्जला व्रत रखें, और यदि सामर्थ्य न हो तो थोड़ा दूध या जल से प्राण पोषण करें।
देवशयनी एकादशी के अगले दिन न करें ये कार्य
द्वादशी के दिन भी कांसे के पात्र का उपयोग न करें, उस रसोई का भोजन न करें जिसमें मांस बना हो। किसी भी प्रकार का नशा, शहद, तेल से बने पदार्थ, झूठ बोलना, अत्यधिक श्रम, दोबारा भोजन, मैथुन और अशुद्ध वस्तुओं का स्पर्श न करें। मसूर की दाल का सेवन भी न करें।
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