Dev Uthani Ekadashi 2025 Vrat Katha: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व माना गया है, विशेष रूप से देवउठनी एकादशी का दिन अत्यंत शुभ और पुण्यदायी माना जाता है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु चार महीनों की योगनिद्रा से जागते हैं तथा सृष्टि संचालन का कार्य पुनः आरंभ करते हैं। इसके साथ ही चातुर्मास का समापन के साथ मांगलिक कार्य आरंभ हो जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को जगाने के साथ व्रत रखने का विधान है। इस साल देवउठनी एकादशी पर काफी शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। इस दिन विधिवत पूजा करने के साथ-साथ अंत में इस आरती को अवश्य पढ़ें। ऐसा करने से आपकी पूजा पूर्ण होगी और भगवान विष्णु की कृपा से सुख-समृद्धि, धन-ंसंपदा की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं देवउठनी एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा…

Dev Uthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी पर इस भजन के साथ उठाएं श्री विष्णु को, उठो देव बैठो देव…

देवउठनी एकादशी की व्रत कथा (Dev Uthani Vrat Katha)

एक समय की बात है। एक राज्य था जहां धर्म, आस्था और संस्कारों का पालन बड़े नियमों से किया जाता था। राज्य के लोग अत्यंत धार्मिक एवं श्रद्धावान थे। वे महीने में दो बार आने वाली एकादशी का व्रत सच्चे मन से करते थे। उस दिन पूरे राज्य में कोई भी अन्न का दाना तक नहीं खाता था। चाहे वह मनुष्य हो या पशु-पक्षी सभी उपवास एवं संयम का पालन करते थे। इसी राज्य में एक बार दूसरे नगर से एक व्यक्ति नौकरी की तलाश में आया।

Devuthani Ekadashi 2025: देवउठनी एकादशी का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, आरती और पारण का समय

वह राजा के दरबार में पहुंचा और विनम्रता से बोला, “महाराज, कृपया मुझे इस राज्य में नौकरी दी जाए।” राजा ने उसके भाव और जरूरत को समझते हुए कहा, “नौकरी तो मिल जाएगी, किंतु हमारे राज्य में रहने के लिए एक नियम है। हर माह दो एकादशी व्रत होते हैं। इन तिथियों पर पूरे राज्य में किसी को भी अन्न नहीं मिलता। सभी व्रत रखते हैं और फलाहार करते हैं। यदि तुम यह नियम स्वीकार करते हो, तभी यहां रह सकते हो और नौकरी प्राप्त कर सकते हो।”

व्यक्ति ने बिना विचार किए कहा, “महाराज, मैं आपकी शर्त स्वीकार करता हूं।” वह प्रसन्न था कि उसे रोजगार मिल जाएगा।

कुछ समय बाद एकादशी का दिन आया। राज्य में उपवास का वातावरण था। उस व्यक्ति को भी अन्न नहीं दिया गया, केवल फलाहार के लिए फल प्रदान किए गए। लेकिन व्यक्ति को फलाहार से तृप्ति नहीं मिली। भूख बढ़ने लगी और वह बेचैन हो उठा। वह सीधे राजा के पास पहुंचा और बोला, “महाराज! फल खाकर पेट नहीं भरता। कृपया मुझे अन्न दे दें, वरना भूख से मेरे प्राण चले जाएंगे।”

राजा ने उसे पुनः नियम समझाया, परंतु वह व्यक्ति लगातार खाना मांगता रहा। अंततः राजा को दया आ गई और उन्होंने उसे आटा, दाल, चावल, नमक आदि सामग्री अन्न पकाने के लिए दे दी।

वह व्यक्ति बड़ी खुशी के साथ नदी के किनारे गया। पहले उसने स्नान किया, फिर श्रद्धा से भोजन बनाने लगा। जब भोजन तैयार हुआ तो उसने आसन लगाया और आंखें बंद कर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए कहा,“हे प्रभु! भोजन तैयार है। आप पहले प्रसाद ग्रहण करें, उसके बाद ही मैं भोजन करूंगा।”

उसकी सच्ची भक्ति और भावना देखकर भगवान विष्णु स्वयं प्रकट हुए और भोजन ग्रहण किया। फिर वे अपने धाम लौट गए। व्यक्ति भी भोजन कर प्रसन्नतापूर्वक अपने कार्य में लग गया। अगली एकादशी के समय वह फिर राजा के पास पहुंचा और बोला, “महाराज, इस बार मुझे पिछली बार से दोगुना अन्न दें।” राजा ने चकित होकर पूछा, “दोगुना अन्न क्यों?”

उसने सरलता से उत्तर दिया, “पिछली बार भगवान विष्णु स्वयं भोजन करने आए थे। आधा अन्न उन्होंने खाया, आधा मैंने। इसलिए पेट पूरा नहीं भरा।”

राजा यह सुनकर हैरान हो गया। उसने मन ही मन सोचा, “मैं तो वर्षों से एकादशी का व्रत करता हूं, भगवान की पूजा करता हूं, फिर भी आज तक दर्शन नहीं हुए। और यह व्यक्ति कहता है कि भगवान उसके बुलाने पर भोजन करने आ गए?”

राजा ने सत्य जानने का निश्चय किया। अगली एकादशी को वह छिपकर नदी किनारे पहुंच गया। व्यक्ति फिर आया, स्नान किया और भोजन तैयार किया। उसने पूर्व की तरह हाथ जोड़कर भगवान को बुलाया, परंतु उस दिन भगवान प्रकट नहीं हुए। उसने बार-बार प्रार्थना की, पर कोई चिन्ह नहीं दिखा।

आखिर उसने भगवान से व्याकुल होकर कहा, “यदि आप नहीं आए, तो मैं अपने प्राण त्याग दूंगा। और वह नदी में कूदने को ही था कि उसी क्षण भगवान विष्णु साक्षात् प्रकट हुए और उसे रोक लिया। भगवान ने कहा, “वत्स, तुम्हारी सच्ची भक्ति ने मुझे बांध लिया है।” फिर उन्होंने उसके साथ भोजन किया और भोजन के बाद उसे अपने विमान पर बैठाकर बैकुंठ धाम ले गए।

यह दिव्य दृश्य देखकर राजा की आंखें खुल गईं। उसे समझ आ गया कि व्रत का मूल्य केवल बाहरी आडंबर में नहीं, बल्कि शुद्ध मन, सच्ची भावना और निष्कपट भक्ति में है। केवल औपचारिकता से व्रत करने वाले को फल नहीं मिलता, बल्कि वह फल उसे मिलता है जो तन-मन-धन से, पूर्ण प्रेम और समर्पण के साथ भगवान को पुकारता है।

उस दिन से राजा ने व्रत और पूजा केवल रीति-रिवाज के रूप में नहीं, बल्कि सच्चे हृदय और श्रद्धा से करना आरंभ कर दिया। अंततः उसके जीवन पर भी भगवान विष्णु की कृपा हुई और उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।

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