हिंदू मान्यताओं अनुसार भगवान विष्णु को जगत का पालनहार माना जाता है। हर साल श्री हरि चार महीने के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं जिस दौरान शुभ कार्य वर्जित हो जाते हैं। आषाढ़ मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को योग निद्रा में गए भगवान विष्णु कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन जागते हैं। जिस दौरान फिर से सभी मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी को देव उठनी एकादशी, देवोत्थान एकादशी और प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। जो इस बार 8 नवंबर को पड़ी है। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और इसी के साथ तुलसी जी का भी पूजन करने का विधान है। लेकिन भगवान विष्णु की पूजा बिना इस आरती को उतारे अधूरी मानी जाती है।
विष्णु जी की आरती (Vishnu Aarti) :
ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।
भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥
जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।
सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय…॥
मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूँ किसकी।
तुम बिनु और न दूजा, आस करूँ जिसकी॥ ॐ जय…॥
तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥
पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय…॥
तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।
मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय…॥
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।
किस विधि मिलूँ दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय…॥
दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।
अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय…॥
विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।
श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय…॥
तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।
तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय…॥
जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय…॥
देव उठनी एकादशी पर तुलसी विवाह कराने की भी परंपरा है। माना जाता है कि देवी लक्ष्मी के कहने पर भगवान विष्णु इन चार महीनों में विश्राम करते हैं। इस दौरान धरती का पालन भगवान शिव करते हैं। देव उठनी एकादशी के कुछ दिन बाद देव दिवाली भी मनाई जाती है।