कोरोना (Corona) आज के दौर की बड़ी महामारी मानी जा रही है। पर आज जो लोग कोरोना से भयभीत हैं उन्हें ये जानना चाहिए कि हर साल होने वाली मृत्यु में सामान्य मौत के अलावा अनेकानेक बीमारियों से होने वाले देहांत की संख्या भी बहुत ज़्यादा है। CDC की एक रिपोर्ट के अनुसार केवल अकेले अमेरिका में हर वर्ष साधारण फ़्लू से मरने वालों की संख्या लगभग 62000 तक है। पर आज कोरोना के ख़ौफ़ ने मानव सभ्यता के हृदय को कंपित कर दिया है। दरअसल किसी भी संकट से अधिक क्षति इस आफ़त के डर और भ्रम से है। जो किसी धीमे विष की तरह धीरे धीरे हमें मिटा देने की पूर्ण क्षमता रखता है। आज इस विषाणु से लड़ने के साथ-साथ ज़्यादा ज़रूरी है विषाणु के डर से छुटकारा। क्योंकि वाइरस आज नही तो कल चला ही जाएगा। पर यदि हमारे चित्त पर उसका ख़ौफ़ और भ्रम अंकित हो गया तो वो हमारे मेरुदण्ड को ही खोखला कर देगा।

एक सुंदर कथा है कि कृष्ण, बलराम और सात्यिकी लौट रहे थे कहीं से। समय का अनुमान ग़लत हो गया। तय हुआ कि जंगल में यहीं सरोवर के किनारे विश्राम कर लेते हैं। अभी पौं फटने में छः घंटे से अधिक का वक्त है। प्रत्येक व्यक्ति यदि दो-दो विश्राम कर ले तो रात आसानी से कट जाएगी। पहले सात्यिकी ने पहरा दिया। कुछ समय बाद एक विषाणु रूपी राक्षस प्रकट हुआ। उसने सात्यिकी को भयभीत करने का प्रयास किया। सात्यिकी ने उसे ललकारा और भीषण युद्ध हुआ।

सात्यिकी के छक्के छूट गए। उन्होंने घबरा कर बलदाऊ को उठाया और पहरा देने के किए कह, दुबक कर सो गए। विषाणु रूपी राक्षस पुनः प्रकट हुआ। महावीर बलराम ने उसे पटखनी कोशिश की तो ज़रूर पर मामला उलट गया। वो जितना बलपूर्वक प्रहार करते, वो विषाणु दोगुनी शक्ति से बलदाऊ पर हमला करता। बेचैन होकर बलराम ने श्रीकृष्ण को उठाया और उन्हें पहरे की ज़िम्मेदारी देकर सो गए।

सुबह जब आरुषियों ने धरती का चुंबन किया, बलराम और सात्यिकी में प्रभात को प्रणाम किया। श्री कृष्ण कहीं नज़र न आए। दोनों ने बेचैन होकर उन्हें पुकारा तो सरोवर के किनारे से आवाज़ आयी। श्रीकृष्ण वहीं निश्चिंत होकर दातुन कर रहे थे। दोनों जन हैरान रह गए। एक दूसरे को देखा फिर धीरे से सात्यिकी ने पूछा कि वो आया था? श्रीकृष्ण ने सहज भाव से पूछा कौन? बलराम ने कहा कि  विषाणु राक्षस। श्रीकृष्ण ने कहा कि हाँ । आया तो था पर मैंने उस पर ध्यान नही दिया। जितना मैं उसे अनदेखा करता रहा, वो उतना कमज़ोर होता रहा। और अंत में उसे भागना ही पड़ा।

आज के इस कोरोना विषाणु को भी हमारा भय ही राशन-पानी दे रहा है। पर जैसे ही हमने उसे नज़रअन्दाज़ किया,  ये विषाणु आहिस्ता आहिस्ता हमारे जीवन से काफ़ूर हो जाएगा।

एक प्रयोग भी  किया गया था कभी। एक मृत्युंदण्ड प्राप्त व्यक्ति के लिए तय किया गया कि उसे फाँसी की जगह विषधर नाग के दंश से मौत की सजा दी जाए। उसकी आँखों पर पट्टी बांध दी गयी पर उसे सर्पदंश की जगह साधारण सी पिन चुभा दी गयी। हैरानी की बात है कि उस व्यक्ति की मृत्यु हो गयी और उसकी देह में ज़हर भी पर्याप्त मात्रा में मिला। ये गरल उसकी देह में कहाँ से आया? उसके भीतर से। उसके अंदर से। उसके मस्तिष्क ने उसकी कामना पर उसके भीतर हलाहल का निर्माण कर दिया।

एक कहानी और है जो आज बेहद प्रासंगिक है। एक फ़क़ीर को शहर के बाहर एक भयानक काली छाया नज़र आयी। उसने पूछा कौन हो तुम। मौत हूँ मैं, छाया ने उत्तर दिया। इतना विशाल रूप धर कर और इतना बड़ा पाश लेकर क्यों आई हो यहाँ फ़क़ीर ने प्रश्न किया।  छाया बोली कि इस बार अधिक लोगों को ले जाना है, सौ से ज़्यादा। और उस शहर में कई हज़ार लोगों की मृत्यु हो गयी। जब छाया लौटी तो फ़क़ीर नाराज़ हुआ तुम तो बड़ी झूठी निकली। सौ कहा यह और हज़ारों का बांध लिया अपने पाश में? छाया मुस्कुराई। उसने कहा कि मैंने तो सौ के ही प्राण हरे। शेष तो अपने आप भय से मर गए।

विशेष उपाय जो सब ठीक कर सकता है- सुरक्षा, विश्वास और प्रार्थना ये ऐसे उपकरण हैं जिनसे हम इस विषाणु का आसानी से सामना कर सकते हैं। आप प्रभु का अंश है लिहाज़ा छोटे मोटे परमात्मा तो हमसब हैं। अतएव अपनी शक्ति को जाने और पहचानें। आपकी उलटी सोच आपको और आपके इस जीवन को तहस नहस कर सकती है। प्राणायाम नियमित रूप से करें। योग कहता है कि प्राणायाम आपके फेफड़ों को शक्ति प्रदान करता है।

इसी प्रकार आयुर्वेद के सूत्र कहते हैं कि तुलसी की पत्तियाँ, दालचीनी, अदरक, जीरा और अजवाइन का काढ़ा व संतरे, नारंगी व निम्बू, गाजर, पालक, चुकंदर, टमाटर, फूलगोभी, खुबानी, जौ, भूरे चावल, शकरकंद, संतरा, पपीता, बादाम, दूध, दही, मशरूम, लौकी के बीज, तिल आदि का सेवन  आपकी प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। जिसकी व्यापक जानकारी आपको कोई भी आयुर्वेद का ज्ञाता आपको उपलब्ध करा देगा।

ज्योतिषिय गणनाओं के अनुसार 4 मई 2020 की शाम 7 बजकर 59 मिनट पर जब मंगल शनि से पिंड छुड़ाएगा और कुंभ राशि जाएगा, विश्व की नकारात्मकता में मामूली रूप से ही सही, सहसा कुछ कमी आएगी और मंगल के कुंभ से निकलते ही शुभ फलों में इज़ाफ़ा होगा। और उसके बाद के तीन महीनों में परिस्थितियाँ बदल जायेंगी। लेकिन स्वघर का शनि लगभग पौने पाँच साल तक पहले मकर और उसके बाद कुंभ में रहकर अनेक प्रकार की कई अनोखी परिस्थितियों का गवाह बनेगा।