पूनम नेगी
उत्तराखंड के चमोली जिले में समुद्रतल से 15 हजार 200 फुट की ऊंचाई पर हिमालय पर्वत पर सात पहाड़ियों से घिरे ‘हेमकुंड साहिब’ को सिखों के मानसरोवर और सनातन धर्मियों के लोकपाल तीर्थ (विश्व के रक्षक) की संज्ञा दी गई है। जहां एक ओर इस दुर्गम हिमतीर्थ से विश्व की बलिदानी परंपरा में अद्वितीय स्थान रखने वाले सिख समाज के ‘दशमगुरु’ और खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोबिंद सिंह की स्मृतियां बहुत गहराई से जुड़ी हुई हैं।
वहीं दूसरी ओर पौराणिक आख्यानों के अनुसार देवभूमि के इसी हिमकुंड के किनारे त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम के अनुज वीरवर लक्ष्मण ने मेघनाद वध के पाप-शमन के लिए और द्वापर युग में महाभारत युद्ध के उपरांत स्वजनों की हत्या के पाप के शमन के लिए पांडवों ने साधना की थी। मान्यता है लक्ष्मण जी ने इस हिम झील के किनारे जहां तपस्या की थी, वहां से एक कोने से पतली जलधारा नीचे बहती है। यह जलधारा लक्ष्मण गंगा के नाम से विख्यात है जो आगे जाकर पुष्पावती नदी में मिल जाती है।
जानना दिलचस्प है कि इस पवित्र तीर्थ का महिमा गान करते हुए दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह अपनी आत्मकथा बछित्तर चरित (विचित्र चरित्र) में उल्लेख करते हैं कि अपने पूर्वजन्म में, जब उनका नाम दुष्टदमन था। उन्होंने हिमालय पर्वत पर सात पहाड़ियों से घिरी हेमकुंड की इसी पवित्र भूमि पर अनेक वर्षों तक तप साधना करके महादेव और महाकाली को प्रसन्न किया था। बछित्तर नाटक में वर्णित कथानक के अनुसार इस पुण्यस्थली पर उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें अगले जन्म में गुरु गोबिंद सिंह के रूप में जन्म लेकर दुष्टों व आताताइयों का संहार करने का आदेश दिया था।
गौरतलब हो कि ‘हेमकुंड साहिब’ की तीर्थयात्रा सर्वाधिक कठिन तीर्थ यात्राओं में से एक मानी जाती है। ‘हेमकुंड साहिब’ तीर्थ का वर्णन सिख गुरु गोबिंद सिंह द्वारा रचित सिख धर्म के ग्रंथ ‘दशम ग्रंथ’ में विस्तार से किया गया है। इसी कारण इस पावन तीर्थ से ‘दशम ग्रंथ’ में श्रद्धा रखने वाले खालसा पंथ के अनुयायियों की आस्था बहुत गहराई से जुड़ी है। हजारों फुट ऊंचे ग्लेशियर पर श्री हेमकुंड साहिब चारों तरफ से हिमनदों से घिरे हुए हैं।
इन्हीं हिमनदों का बर्फीला पानी यहां एक झील का निर्माण करता है। बर्फ से निर्मित होने के कारण ही श्रद्धालुओं द्वारा इस जलकुंड को ‘हेमकुंड’ नाम दिया गया है। ‘हेमकुंड’ का शाब्दिक अर्थ होता है बर्फ का कटोरा’। हिमालय के सप्तशृंग यानी सप्तऋषि पर्वत चोटियों पर खालसा पंथ के शुभ प्रतीक चिह्न ‘निशान साहिब’ के ध्वज लहराते रहते हैं।
इन हिमाच्छादित सप्तश्रृंग पर्वत श्रंखलाओं से रिसने वाले हिम शीतित जल से यहां निर्मित इस झील को अमृत सरोवर कहा जाता है। इसी झील के किनारे पर ‘श्रीहेमकुंड साहिब’ नाम से एक सुंदर गुरुद्वारा अवस्थित है। यहां पहुंच कर तीर्थयात्री सर्वप्रथम इस पवित्र सरोवर में स्रान करते हैं। तदुपरांत गुरुद्वारे में स्थापित पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को शीश नवाकर अरदास करते हैं।
श्रद्धालुओं के अनुसार हेमकुंड साहिब के इस पवित्र सरोवर की रंगत ही निराली है। सतत अस्थिर मौसम के कारण यहां का पवित्र अमृत सरोवर पल-पल अपना रंग बदलता रहता है। सूरज की पहली किरण से, बादलों से, धीरे-धीरे उठते कुहरे व सरसराती ठंडी हवा से इस पवित्र झील का रूप-स्वरूप सतत परिवर्तित होता रहता है। आसमान तो पूरे दिन शायद ही कभी नीला रह पाता हो।
सुबह जरूर आसमान साफ रहता है पर धीरे-धीरे बादल छाने लगते हैं और दोपहर ढलते हल्की बारिश हो जाती है। बदरीनाथ जाने वाले हिंदू यात्रियों के लिए सिखों के धार्मिक स्थल हेमकुण्ड का उतना ही महत्त्व है जितना कि बदरीनाथ का। चूंकि यह दिव्य तीर्थ सिखों व हिंदुओं की साझी विरासत जो है। इस अनूठे तीर्थ में श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा है, इसीलिए तमाम दिक्कतों के बावजूद प्रतिवर्ष देश-विदेश के लाखों श्रद्धालु ग्रीष्म ऋतु में इस अनूठी आस्थास्थली पर शीश नवाने आते हैं। यह यात्रा मई-जून से शुरू होकर सितम्बर-अक्तूबर तक मात्र तीन माह के लिए खोली जाती है क्यूंकि बाकी महीनों में यहां का तापमान शून्य से काफी कम रहता है। इस वर्ष यह यात्रा 20 मई से शुरू होगी जो मध्य सितंबर तक चलेगी।
अद्भुत दृश्य
निर्मल पारदर्शी झील और उसके पृष्ठभाग में झील की सुरक्षा के लिए प्रहरी की भांति खड़े सात विशाल हिम शिखर। झील में गोता लगाइए और सारी थकान दूर। यही है हेमकुंड का जादू जिसे देखने व महसूस करने प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु व पर्यटक देश-विदेश से आते हैं। इसके बाद इस स्थान से एक किमी की दूरी पर स्थित लक्ष्मण मंदिर में भी माथा टेकते हैं।
