Diwali 2019 Date, Puja Muhurat, Timings: दिवाली से एक दिन पहले छोटी दिवाली मनाई जाती है। इस दिन भी लोग अपने घर के बाहर दीपक जलाते हैं। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति मृत्यु देवता यमराज और माता लक्ष्मी को प्रसन्न कर लेता है उसे मरने के बाद नरक नहीं मिलता और अनजाने में हुए पापों से भी मुक्ति मिल जाती है। जानिए नरक चतुर्दशी का महत्व…

महत्व: छोटी दिवाली पर खास तौर पर लोग यम देवता की पूजा कर घर के मुख्य द्वार के बाहर तेल का दीपक जलाते हैं। ऐसी मान्यता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु कभी नहीं आती। इस दिन सुबह सूर्योदय से शरीर पर सरसों का तेल लगाकर स्नान करने का विशेष महत्व है। स्नान के बाद भगवान हरि यानी विष्णु मंदिर या कृष्ण मंदिर जाकर दर्शन करने चाहिए। ऐसा करने से पाप से मुक्ति मिलती है और सौन्दर्य बढ़ता है।

छोटी दिवाली को यम चतुर्दशी, रूप चतुर्दशी या रूप चौदस भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि श्राद्ध महीने में आए हुए पितर इसी दिन चंद्रलोक वापस जाते हैं। इस दिन अमावस्या होने के कारण चांद नहीं निकलता जिससे पितर भटक सकते हैं इसलिए उनकी सुविधा के लिए नरक चतुर्दशी के दिन एक बड़ा दीपक जलाया जाता है। यमराज और पितर देवता अमावस्या तिथि के स्वामी माने जाते हैं।

छोटी दिवाली की कथा: नरक चतुर्दशी के महत्व को बताने के लिए कई कथाएं प्रचलित हैं जिसमें से एक कथा श्री कृष्ण से जुड़ी हुई है। श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार नरकासुर नामक असुर ने अपनी शक्ति से देवी-देवताओं और मानवों को परेशान कर रखा था। असुर ने संतों के साथ 16 हजार स्त्रियों को भी बंदी बनाकर रखा था। उसके बढ़ते अत्याचार को देखते हुए देवता और ऋषि-मुनियों ने भगवान श्रीकृष्ण की शरण ली और कहा कि इस नरकासुर का अंत कर पृथ्वी से पाप का भार कम करें।

भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें आश्वासन दिया लेकिन नरकासुर को एक स्त्री के हाथों मरने का शाप था इसलिए भगवान कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को सारथी बनाया और उनकी सहायता से नरकासुर का वध किया। जिस दिन नरकासुर का अंत हुआ, उस दिन कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी थी।

नरकासुर के वध के बाद श्रीकृष्ण ने कन्याओं को बंधन से मुक्त करवाया। मुक्ति के बाद कन्याओं ने भगवान कृष्ण से गुहार लगाई कि समाज अब उन्हें कभी स्वीकार नहीं करेगा, इसके लिए आप कोई उपाय निकालें। हमारा सम्मान वापस दिलवाएं। समाज में इन कन्याओं को सम्मान दिलाने के लिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा के सहयोग से 16 हजार कन्याओं से विवाह कर लिया। 16 हजार कन्याओं को मुक्ति और नरकासुर के वध के उपलक्ष्य में घर-घर दीपदान की परंपरा शुरू हुई।