Chhath Puja 2020 Date and Time, Puja Vidhi: दीपावली के तीन दिन बाद यानी कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर षष्टी तिथि तक छठ महापर्व मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर उत्तर-पूर्व भारत में मनाया जाता है। इस बार 18 नवंबर, बुधवार से 21 नवंबर, शनिवार तक छठ पर्व मनाया जा रहा है। इस दौरान सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का खास महत्व माना जाता है।
छठ पूजा का इतिहास (Chhath Puja History)
प्राचीन कथा के मुताबिक प्रियंवद नाम का एक राजा था। उनकी शादी मालिनी नाम की स्त्री से हुई। शादी के सालों बाद भी प्रियंवद को संतान की प्राप्ति नहीं हुई। इस वजह से वह बहुत दुखी रहा करते थे। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से विचार विमर्श कर यज्ञ करवाने का निश्चय किया।
यज्ञ की आहुति की खीर को महर्षि कश्यप ने राजा प्रियंवद की पत्नी को दिया और उस खीर के प्रभाव से उन्हें संतान के रूप में पुत्र की प्राप्ति हुई। लेकिन दुख की बात यह थी कि वह मरा हुआ पैदा हुआ। पुत्र वियोग में जब राजा ने अपने प्राण त्यागने का निश्चय किया तो तभी ब्रह्मा जी की मानस पुत्री देवसेना वहां प्रकट हुई और उन्हें पुत्र को जीवित करने के लिए छठ व्रत करने को कहा।
इस व्रत के प्रभाव से राजा प्रियंवद का पुत्र जीवित हो गया। तब से ही छठ पूजा मनाई जा रही है। बताया जाता है कि यह ही छठी माता हैं। सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न होने की वजह से इन्हें छठी मैया कहकर पुकारा जाता है।
छठ पूजा का महत्व (Chhath Puja Importance/ Chhath Puja Significance)
छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
बताया जाता है कि छठ व्रत संतान की रक्षा और उनकी जिंदगी में तरक्की और खुशहाली लाने के लिए किया जाता है। विद्वानों का मानना है कि सच्चे मन से छठ व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों यज्ञ करने से भी ज्यादा बल प्राप्त होता है। कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि परिवार में सुख-समृद्धि लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं।
Highlights
अइली छठी मइया अंगना सुहाला,
बहनिया लचकत छठी घाटे चाला हो,
बाजु भरे भरे हो सीधा झराल्या,
अइली छठी मइया।।
छठी मइया की हार्दिक शुभकामनाएं
प्रसाद आम की लकड़ी पर बनानी चाहिए। छठ का प्रसाद बनाते समय याद रखें कि भोजन में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल बिल्कुल न किया जाए। भोजन शाकाहारी और शुद्ध देसी घी में ही बनाएं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
छठ की पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्व होता है। बांस को आध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है। छठ पूजा में ठेकुए का प्रसाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। गुड़ और आटेको मिलाकर ठेकुए का प्रसाद बनाया जाता है। इसके बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है। छठ की पूजा में गन्ने का भी विशेष महत्व है। अर्घ्य देते समय पूजा की सामग्री में गन्ने का होना जरूरी है। कहा जाता है कि यह छठी मैय्या को बहुत प्रिय है।
छठ पूजा का महत्व बहुत अधिक माना जाता है। छठ व्रत सूर्य देव, उषा, प्रकृति, जल और वायु को समर्पित हैं। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और विश्वास से करने से नि:संतान स्त्रियों को संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
गोरियन कैलेंडर के मुताबिक इस साल छठ पूजा 18 नवंबर, बुधवार से लेकर 21 नवंबर, शनिवार तक मनाई जा रही है। जबकि हिंदू पंचांग के अनुसार परम पावन कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा मनाई जाती है।
छठ पूजा का महापर्व नई फसल के उत्सव का भी प्रतीक है। सूर्यदेव को दिए जाने प्रसाद में फल के अलावा इस नई फसल से भोजन तैयार किया जाता है।
जानकारों का मानना है कि श्रद्धा से छठ पूजा का व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों गुना यज्ञों का फल प्राप्त होता है। कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि घर-परिवार में सुख-समृद्धि और धन लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं।
छठ मईया से यह विनती है कि उनकी कृपा से इस दुनिया के सभी रोग-दोष दूर हो जाए। पूरा संसार खुशियों से महक उठे और कभी भी किसी की जिंदगी में दुख ना आए।
चार दिनों तक चलने वाले इस त्योहार का आज तीसरा दिन है। कल सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा का समापन होगा। उत्तर-पूर्व भारत खासतौर पर बिहार में छठ पूजा से एक सप्ताह पहले से ही तैयारी शुरू हो जाती है।
ऐसी मान्यता है कि छठ पूजा का अत्यंत कठिन निर्जला व्रत रखने के बाद शुभ मुहूर्त में अर्घ्य अर्पित करना चाहिए। बताया जाता है कि शुभ मुहूर्त में अर्घ्य देने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
हर साल दिवाली के तीन दिन बाद यानी कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी तिथि से लेकर षष्टी तिथि तक छठ पर्व मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य तौर पर उत्तर-पूर्व भारत में मनाया जाता है। इस बार 18 नवंबर, बुधवार से 21 नवंबर, शनिवार तक छठ पर्व मनाया जा रहा है।
छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर चटाई पर सोएं। व्रती और घर के सभी सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली ना खाएं।व्रती स्त्रियां छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनें। पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें। छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।
भगवान सूर्य की आराधना और छठी मैय्या की पूजा का चार दिवसीय पवित्र पर्व बुधवार को नहाय खाय के साथ शुरू हुआ। आज शाम को ढलते सूर्य और 21 नवंबर यानी कल सुबह उगते सूर्य को अर्घ्य की तैयारी हो चुकी है। इस व्रत को करने के लिए छठ व्रर्ती कठिन परिक्षाओं से गुजरती है।
छठ पूजा का बहुत ही विशेष महत्व है। छठ को महापर्व कहा जाता है। परिवार के सभी सदस्य इस पर्व पर एक जगह एकत्र होकर मनाते हैंं। और एक दूसरे के लिए मंगल की कामना करते हैं।
छठ को महापर्व की संज्ञा दी जाती है। कहते हैं कि यह आस्था और श्रद्धा का सबसे खास त्योहार है। इसलिए इसके प्रति लोगों में बहुत अधिक विश्वास है। दुनियाभर में प्रवासी बिहारी अपने-अपने क्षेत्रों के नजदीकी घाटों पर जाकर भावों सहित छठ पूजा का त्योहार मनाते हैं।
छठ व्रत करने वाले सभी श्रद्धालु आपस में सभी भेदभाव भुलाकर एक दूसरे को पूजा के दौरान काफी मदद करते हैं। किसी से कोई भेदभाव नहीं करता है। हर कोई पूजा कार्य में मदद के लिए तैयार रहता है।
संतान के अलावा छठ का व्रत पति की लंबी आयु की कामना से भी रखा जाता है. इसलिए इस पूजा में सुहाग के प्रतीक सिंदूर का खास महत्व है. इस दिन स्त्रियां अपने पति और संतान के लिए बड़ी निष्ठा और तपस्या से व्रत रखती हैं. हिंदू धर्म में विवाह के बाद मांग में सिंदूर भरने को सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है. छठ पूजा में भी महिलाएं नाक से लेकर मांग तक लंबा सिंदूर लगाती हैं. मान्यता है कि मांग में लंबा सिंदूर भरने से पति की आयु लंबी होती है.
प्रसाद आम की लकड़ी पर बनानी चाहिए। छठ का प्रसाद बनाते समय याद रखें कि भोजन में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल बिल्कुल न किया जाए। भोजन शाकाहारी और शुद्ध देसी घी में ही बनाएं।
छठ पूजा में यदि सबसे अधिक किसी कार्य पर घ्यान दिया जाता है तो वह है साफ-सफाई। लोग करीब एक माह पहले से ही छठ व्रत करने को लेकर साफ-सफाई की तैयारी शुरू कर देते हैं। व्रत के दौरान कही भी आसपास गंदगी नहीं देखने को मिलती है।
छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर चटाई पर सोएं। व्रती और घर के सभी सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली ना खाएं।व्रती स्त्रियां छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनें। पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें। छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।
यह पर्व चार दिन तक मनाया जाता है. इस पर्व का दूसरा दिन खरना होता है. खरना का मतलब शुद्धिकरण होता है. जो व्यक्ति छठ का व्रत करता है उसे इस पर्व के पहले दिन यानी खरना वाले दिन उपवास रखना होता है. इस दिन केवल एक ही समय भोजन किया जाता है. यह शरीर से लेकर मन तक सभी को शुद्ध करने का प्रयास होता है. इसकी पूर्णता अगले दिन होती है.
सतयुग में भगवान श्रीराम, द्वापर में दानवीर कर्ण और पांच पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने सूर्य की उपासना की थी।
कहते हैं कि छठ पूजा का व्रत संतान की रक्षा और उनकी जिंदगी में तरक्की और खुशहाली लाने के लिए किया जाता है। जानकारों का मानना है कि श्रद्धा से छठ पूजा का व्रत रखने से इस व्रत का सैकड़ों गुना यज्ञों का फल प्राप्त होता है। कई लोग केवल संतान ही नहीं बल्कि घर-परिवार में सुख-समृद्धि और धन लाने के लिए भी यह व्रत रखते हैं
छठ को महापर्व की संज्ञा दी जाती है। कहते हैं कि यह आस्था और श्रद्धा का सबसे खास त्योहार है। इसलिए ही इसके प्रति लोगों में बहुत अधिक विश्वास है। दुनियाभर में प्रवासी बिहारी अपने-अपने क्षेत्रों के नजदीकी घाटों पर जाकर भावों सहित छठ पूजा का त्योहार मनाते हैं। इस त्योहार का लोग सालभर इंतजार करते हैं और छठ पूजा आने पर पूरी श्रद्धा से रीति-रिवाज निभाते हैं।
20 नवंबर, शुक्रवार - संध्या अर्घ्य सूर्यास्त का समय 05 बजकर 25 मिनट पर
छठ व्रत करने वाले सभी श्रद्धालु आपस में सभी भेदभाव भुलाकर एक दूसरे को पूजा के दौरान काफी मदद करते हैं। किसी से कोई भेदभाव नहीं करता है। हर कोई पूजा कार्य में मदद के लिए तैयार रहता है।
छठ पूजा के दौरान एक अलग समाज की स्थापना होती है। इसमें एक दूसरे का काफी खयाल रखा जाता है। हर कार्य एक दूसरे के मिलकर संपादित किया जाता है। न कोई इस दौरान बड़ा होता और न ही छोटा। अमीर-गरीब सब मिलकर पूजा करते हैं।
छठ पूजा के दौरान एक अलग समाज की स्थापना होती है। इसमें एक दूसरे का काफी खयाल रखा जाता है। हर कार्य एक दूसरे के मिलकर संपादित किया जाता है। न कोई इस दौरान बड़ा होता और न ही छोटा।
छठ पूजा में यदि सबसे अधिक किसी कार्य पर घ्यान दिया जाता है तो वह है साफ-सफाई। लोग करीब एक माह पहले से ही छठ व्रत करने को लेकर साफ-सफाई की तैयारी शुरू कर देते हैं। व्रत के दौरान कही भी आसपास गंदगी नहीं देखने को मिलती है।
छठ पूजा रखकर लोग अपने घर परिवार के लिए छठी मैया से अनेक प्रकार की आराधना करते हैं। कहा जाता है कि छठी मैया लोगों की सभी कामनाएं पूरी करती हैं।
छठ पजा करने से सभी स्वस्थ रहते हैं। इसलिए छठ व्रत करने वाले श्रद्धालु हमेशा सभी को स्वस्थ रहने की कामना करते हैैं।
छठ पूजा का बहुत ही विशेष महत्व है। छठ को महापर्व कहा जाता है। परिवार के सभी सदस्य इस पर्व पर एक जगह एकत्र होकर मनाते हैंं। और एक दूसरे के लिए मंगल की कामना करते हैं।
मंदिर की घंटी, आरती की थालीनदी के किनारे सूरज की लालीजिंदगी में आए खुशियों की बहारआपको मुबारक हो छठ का त्यौहार
आपकी आंखों में सजे हैं जो भी सपने और दिल में छुपी हैं जो भी अभिलाषाएं,
यह छठ पूजा उन्हें सच कर जाएं, आपके लिए यही हैं हमारी शुभकामनाएं
प्रसाद आम की लकड़ी पर बनानी चाहिए। छठ का प्रसाद बनाते समय याद रखें कि भोजन में प्याज और लहसुन का इस्तेमाल बिल्कुल न किया जाए। भोजन शाकाहारी और शुद्ध देसी घी में ही बनाएं।
छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर चटाई पर सोएं।
व्रती और घर के सभी सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली ना खाएं।
व्रती स्त्रियां छठ पर्व के चारों दिन नए कपड़े पहनें। महिलाएं साड़ी और पुरुष धोती पहनें।
पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें।
छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।
ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठी मैया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।