Chhath Puja (Parv) Kab hai, Nahay Khay : हिंदुओं का प्रमुख त्योहार छठ महापर्व 31 अक्टूबर से शुरू हो चुका है। इस पर्व की खास रौनक बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोसी देश नेपाल में देखने को मिलती है। मान्यता है कि छठ पूजा करने से छठी मैया प्रसन्न होकर सभी की मनोकामनाएं पूर्ण कर देती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। आइए जानते हैं छठ पर्व से जुड़ी तमाम जानकारियां…
छठ महापर्व की तारीख :
31 अक्टूबर – नहाय-खाय
1 नवंबर – खरना
2 नवंबर – सायंकालीन अर्घ्य
3 नवंबर – प्रात कालीन अर्घ्य
छठ पूजा का पहला दिन – छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ हो जाती है। इस दिन व्रत रखने वाले स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं। और शाकाहारी भोजन करते हैं। व्रती के भोजन करने के बाद ही घर के बाकी सदस्य भोजन ग्रहण करते हैं।
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छठ पूजा का दूसरा दिन – कार्तिक शुक्ल पंचमी के दिन व्रत रखा जाता है। व्रती इस दिन शाम के समय एक बार भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत रखते हैं। शाम को चावल व गुड़ की खीर बनाकर खायी जाती है। चावल का पिठ्ठा व घी लगी हुई रोटी ग्रहण करने के साथ ही प्रसाद रूप में भी वितरीत की जाती है।
छठ पूजा का तीसरा दिन – कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। साथ ही छठ पूजा का प्रसाद तैयार करते हैं। इस दिन व्रती शाम के समय किसी नदी, तालाब पर जाकर पानी में खड़े होकर डूबते हुये सूर्य को अर्घ्य देते हैं। और रात भर जागरण किया जाता है।
छठ पूजा का चौथा दिन – कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह भी पानी में खड़े होकर उगते हुये सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद व्रती सात बार परिक्रमा भी करते हैं। इसके बाद एक दूसरे को प्रसाद देकर व्रत खोला जाता है।
Highlights
छठ की पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्व होता है। बांस को आध्यात्म की दृष्टि से शुद्ध माना जाता है। छठ पूजा में ठेकुए का प्रसाद सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। गुड़ और आटेको मिलाकर ठेकुए का प्रसाद बनाया जाता है। इसके बिना छठ की पूजा अधूरी मानी जाती है। छठ की पूजा में गन्ने का भी विशेष महत्व है। अर्घ्य देते समय पूजा की सामग्री में गन्ने का होना जरूरी है। कहा जाता है कि यह छठी मैय्या को बहुत प्रिय है।
छठ पर्व के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सबुह उगते हुए सूर्य यानी ऊषा को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती फिर से इस दिन इकट्ठे होते हैं और अर्घ्य की तैयारी करते हैं। व्रती पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान के निकलने का पूरी श्रद्धा से इंतजार करते हैं। जैसे ही सूर्योदय होता है सभी छठी मैया का जयकारा लगाते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस बार सूर्य का अर्घ्य और पारण 3 नवंबर को है।
छठ पर्व में ये फल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। डाभ नीबू- डाभ नींबू आकार में थोड़ा बड़ा होता है जिसके छिलके काफी मोटे होते हैं। रंग पीला ही होता है। इसे पवित्र फल माना जाता है। दूसरा फल के रूप में केला आता है। इस पर्व में कच्चे केले का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे करने से इसकी पवित्रता बरकरार रहती है। तीसरा फल होता है गन्ना, गन्ने को समृद्धि का प्रतीका माना जाता है। छठ पर इसे चढ़ाना शुभ माना जाता है। चौथे फल के रूप में सुपारी आता है। सुपारी भी इस पर्व पर चढ़ाए जाने वाले फलों में खास महत्व रखता है। सख्त होने से इस फल को पक्षी जूठा नहीं कर सकता इसलिए इसे चढ़ाया जाता है। वहीं पांचवें फल जिसे कोसी में रखा जाता है वह है सिंघाड़ा। सिंघाड़ा को रोगनाशक माना जाता है यह फल पानी में ही फलता है लिहाजा इसे पवित्र फल में शामिल किया जाता है। यही कारण है कि इसे छठी माई के प्रसाद स्वरूप इस्तेमाल किया जाता है।
छठ से जुड़ी एक और कथा है जो राम-सीता से संबंधित है। माना जाता है कि माता सीता ने भी सूर्य देवता की आराधना की थी। इस कथा के अनुसार श्रीराम और माता सीता जब 14 वर्ष का वनवास काट कर लौटे थे, तब सीता जी ने इस व्रत को किया था। पौराणिक कथाओ के अनुसार भगवान राम सूर्यवंशी थे जिनके कुल देवता सूर्य देव थे। कथा के अनुसार रावण वध के बाद जब राम और सीता अयोध्या लौटने लगे तो पहले उन्होंने सरयू नदी के तट पर अपने कुल देवता सूर्य की उपासना करने का निश्चय किया और व्रत रखकर डूबते सूर्य की पूजा की थी। यह तिथि कार्तिक शुक्ल की षष्ठी थी। अपने राजा राम के द्वारा इस पूजा के करने के बाद अयोध्या की प्रजा ने भी यह पूजन आरंभ कर दिया। तभी से छठ पूजा का प्रचलन शुरू हुआ।
छठ पर्व प्रकृति का त्योहार तो है ही साथ ही इसे मन्नतों का भी पर्व कहा जाता है। छठ व्रत रखने वाली महिला को परवैतिन कहा जाता है। इस दौरान वह 36 घंटे का कठोर निर्जल व्रत रखती हैं। जब तक पूजा संपन्न नहीं हो जाता वह कुछ भी नहीं खाती-पीती हैं। छठी माई से कई मन्नतें भी करतीं हैं।
छठ शास्त्रीय धर्मों के कर्मकांडों का विस्तार नहीं करता है। इस पूजा में सादगी होती है और पवित्रता गहन रूप में होती है। पूजा के तीसरे दिन व्रती छठ मईया का गीत गाते हुए नदी, तालाब, नहर पर बने घाट की तरफ बढ़ती हैं। इस दौरान घर के पुरुष टोकरी (दौउरा) में पूजा की सामग्री और प्रसाद लेकर चलते हैं। इस दौरान पूरे रास्ते की सफाई पहले ही कर दी जाती है।
छठ को प्रकृति का त्योहार भी कहा जाता है। इसमें पूजा-पाठ से लेकर प्रसाद तक में प्रकृति की चीजें उपयोग में लाई जाती हैं। पूजा में मौसम की फसलों को ही शामिल किया जाता है। नई फसल के तौर पर प्रसाद में गन्ना चढ़ाया जाता है और गुड़ और आटे को मिलाकर ठेकुआ बनाया जाता है।
नहाय खाय के बाद ‘खरना’ किया जाता है जिसमें व्रती उपवाल करते हैं। खरने के दिन शाम में गन्ने के रस में खीर पकाया जाता है। जहां व्रती रहते हैं उसी घर के हिस्से में इस खीर के एक हिस्से को हवन में डालते हैं और शेष को व्रती खाते हैं। बाकी के परिवारजनों तथा सम्बन्धियों में प्रसाद-स्वरूप वितरित किया जाता है। इस दिन व्रती अपना भोजन के साथ प्रसाद की सामग्री स्वयं ही तैयार करते हैं। जहां प्रसाद बनाया जाता है वहां घर के किसी भी सदस्य के आने जाने की मनाही होती है। खरना का खीर खाने के बाद निर्जल उपवास शुरू होता है। प्रसाद के रूप में गन्ना, अमरुद, नारियल, केला आदि फलों के साथ हाथ से पिसे हुए गेहूं के आटे में गुड़ मिला कर ठेकुआ पकाया जाता है।
छठ पूजा बिहार झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए खास और पवित्र त्योहारों में से एक है। 31 अक्टूबर के दिन से ही नहाय खाय से शुरू होने वाला यह पर्व 3 नवंबर को संपन्न होगा। इस त्योहार से जुड़ी कई कथाएं और मान्यताएं हैं। इन्हीं में से एक कथा के अनुसार देवासुर संग्राम में जब देवता हार गए तो देव माता अदिति ने पुत्र प्राप्ति के लिए देव के जंगलों में मैया छठी की पूजा अर्चना की थी। इस पूजा से खुश होकर छठी मैया ने आदिति को एक पराक्रमी पुत्र का आशीर्वाद दिया। उसके बाद छठी मैया की देन इसी पुत्र ने सभी देवतागणों को विजय दिलाई थी। तभी से मान्यता चली आ रही कि छठ मैया की पूजा-अर्चना करने से सभी दुखों का निवारण होता है औरर संतान की प्राप्ति होती है।
नहाय-खाय: कार्तिक मास शुक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय से छठ पूजा का प्रारंभ होता है। इसके अगले दिन यानी कार्तिक मास शुक्ल पक्ष पंचमी को खरना और लोहंडा होता है। इस दिन शाम को गुड़ मिश्रित खीर या फिर लौकी की खीर खाकर 36 घंटे का निर्जला व्रत प्रारंभ होता है। इस दिन नमक और चीनी वर्जित होता है। इस दिन ही पूजा की सामग्री आदि एकत्रकर उसकी साफ-सफाई करके व्यवस्थित कर लेते हैं।
छठ पर्व पर इस वर्ष यह भी संयोग बना है कि उगते सूर्य को सूर्य देव से संबंधित दिवस यानी रविवार को अर्घ्य दिया जाएगा। रविवार 3 नवंबर को सर्वार्थ सिद्धि योग भी बना हुआ है जो एक शुभ योग है। जो सूर्योदय के साथ ही आरंभ हो रहा है। छठ पर्व के अंतिम दिन इस योग में सूर्य का उदित होना छठ व्रतियों के लिए शुभ संकेत है कि, इस वर्ष सूर्य देव जल्दी ही व्रतियों की मनोकामना सिद्ध करने वाले हैं। अन्न धन के मामले में यह वर्ष सुखद रहने वाला है।
व्रती के संकल्प को पूर्ण सफल बनाने के लिए इस वर्ष खरना के दिन यानी 1 नवंबर को भगवान सूर्य से संबंधित रवि नामक शुभ योग बना है। छठ पर रवि योग का ऐसा संयोग बना है जो नहाय खाय से लेकर 2 नवंबर तक रहेगा। यानी इसी शुभ योग में ही सूर्य देव को संध्या कालीन अर्घ्य भी दिया जाएगा। ज्योतिषशास्त्र में इस योग को तमाम बाधाओं को दूर करने वाला माना गया है।
छठ पर्व पहले पूर्वी भारत के बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता था, लेकिन अब इसे देशभर में मनाया जाता है। पूर्वी भारत के लोग जहां भी रहते हैं, वहीं इसे पूरी आस्था से मनाते हैं। छठ व्रत काफी कठोर है जिसे 36 घंटे तक रखा जाता है। इस दौरान जल भी ग्रहण नहीं किया जाता। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का दृश्य भक्तिमय होता है। सभी छठ व्रती नदी या तालाब के किनारे एकत्रित होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं। छठ का व्रत बहुत कठोर होता है। चार दिवसीय इस व्रत में व्रती को लगातार उपवास करना होता है। इस दौरान व्रती को भोजन तो छोड़ना ही पड़ता है। इसके अतिरिक्त उसे भूमि पर सोना पड़ता है। व्रती बिना सिलाई वाले वस्त्र पहनते हैं। चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
छठ की व्रतधारी लगातार 36 घंटे का कठोर व्रत रखते हैं। इस दौरान पानी भी ग्रहण नहीं किया जाता है। पहला दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी नहाय-खाय के रूप में मनाया जाता है। बांस की टोकरी में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है और व्रती के साथ परिवार तथा पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने का दृश्य भक्तिमय होता है। सभी छठ व्रती नदी या तालाब के किनारे एकत्रित होकर सामूहिक रूप से अर्घ्य दान संपन्न करते हैं।
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।
छठ घाट की तरफ जाती हुए महिलाएं रास्ते में छठ मैय्या के गीत गाती हैं। इनके हाथों में अगरबत्ती, दीप, जलपात्र होता है। घाट पर पहुंचकर व्रती पानी में प्रवेश करके सूर्य देव का ध्यान करते हैं। पानी कमर तक होना चाहिेए। संध्या कल में जब सूर्य अस्त होने लगता हैं तब अलग-अलग बांस और पीतल के बर्तनों में रखे प्रसाद को तीन बार सूर्य की दिशा में दिखाते हुए जल से स्पर्श कराते हैं। ठीक इसी तरह अगले दिन सुबह में उगते सूर्य की दिशा में प्रसाद को दिखाते हुए तीन बार जल से प्रसाद के बर्तन को स्पर्श करवाते हैं। परिवार के लोग प्रसाद पर लोटे से कच्चा दूध अर्पित करते हैं।
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्।पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।।
छठ पूजा चार दिवसीय उत्सव है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को होती है और समापन कार्तिक शुक्ल सप्तमी को। छठ व्रती लगातार 36 घंटे का निर्जला उपवास रखते हैं। इस व्रत में शुद्धता पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है, जिससे इसे कठिन व्रतों में एक माना जाता है। इस बार छठ का यह पर्व 31 अक्टूबर को नहाय-खाय से शुरू हो चुका है जो 3 नवंबर को समाप्त होगा।
छठ पूजा के दौरान न केवल सूर्य देव की उपासना की जाती है, अपितु सूर्य देव की पत्नी उषा और प्रत्यूषा की भी आराधना की जाती है अर्थात प्रात:काल में सूर्य की प्रथम किरण ऊषा तथा सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण प्रत्यूषा को अर्घ्य देकर उनकी उपासना की जाती है।
नहाय खाय वाले दिन अपने घर को पूरी तरफ से साफ कर लेना चाहिए। सुबह उठकर नदी, तालाब, कुएं में नहाकर साफ कपड़े धारण करना चाहिए। यदि आपके निकट गंगा नदी है तो प्रयास करें कि इस दिन गंगा स्नान जरूर करें। पूजा की किसी भी वस्तु को जूठे या गंदे हाथों से ना छूएं। फिर व्रती महिलाएं और पुरुष भोजन ग्रहण करें। भोजन ग्रहण करने से पहले सूर्य भगवान को भोग लगाते हैं। इस दिन व्रती सिर्फ एक ही बार भोजन ग्रहण करते हैं। छठ करने वाली व्रती महिला या पुरुष चने की दाल और लौकी शुद्ध घी में सब्जी बनाते और ग्रहण करते हैं। उसमें सेंधा शुद्ध नमक ही डालते हैं। घर के बाकी सदस्य भी यही खाते हैं। इस बात का भी ध्यान रखें कि घर के बाकी सदस्य व्रती लोगों के भोजन करने के बाद ही खाएं।
छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान में पहले दिन नहाय-खाए दूसरे दिन खरना और तीसरे दिन डूबते हुए सूर्य व चौथे दिन उगते हुए सूर्य की पूजा की जाती है। नहाए-खाए के दिन नदि यों में स्नान करते हैं। इस दिन चावल, चने की दाल इत्यादि बनाए जाते हैं। कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना बोलते हैं। पूरे दिन व्रत करने के बाद शाम को व्रती भोजन करते हैं। षष्ठी के दिन सूर्य को अर्ध्य देने के लि ए तालाब, नदी या घाट पर जाते हैं और स्नान कर डूबते सूर्य की पूजा करते हैं। सप्तमी को सूर्योदय के समय पूजा कर प्रसाद वितरित करते हैं।
आज से पूरे बिहार और पूर्वांचल में छठ पर्व की रौनक शुरू हो जाएगी। हर तरफ छठ के पारंपरिक गीत की धुन सुनाई देगी। दूर दराज से छठ पर्व के लिए घर पहुंचे लोगों में अगले चार दिनों तक जबरदस्त उत्साह देखने को मिलेगा।
चार दिनों का छठ पर्व आज नहाय खाय से शुरू हो गया। पहले दिन आज व्रती महिलाएं या पुरुष बिना नहाय कुछ नहीं खाएंगे। आज से व्रत वाले घरों में सिर्फ पवित्र भोजन और स्वच्छता का पूरा ख्याल रखा जाएगा। प्रसाद से जरूरी अनाज को धोने और सुखाने की प्रक्रिया की जाएगी।
- प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी।
- बांस या पीतल के बने तीन सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास।
- नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा।
- चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक।
- पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो।
- सुथनी और शकरकंदी।
- हल्दी और अदरक का पौधा हरा हो तो अच्छा।
- नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, जिसे टाब भी कहते हैं।
- शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी।
- कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई।
- ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू, जिसे लडु़आ भी कहते हैं आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।
ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |
अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||
ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
इन दिनों काजल राघवानी और खेसारी लाल यादव का ‘पटना के घटिया ये आहे’ सॉन्ग काफी पसंद किया जा रहा है। ये गीत छठ पूजा को लेकर है। इसे गाया खेसारी लाल यादव ने है। इसके बोल पवन पांडे के हैं। गाना देखने के लिए यहां क्लिक करें।
1. छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।2. कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है।3. षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।4. अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
पौराणिक कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा था. उनकी पत्नी का नाम था मालिनी. दोनों की कोई संतान नहीं थी. इस बात से राजा और रानी दोनों की दुखी रहते थे. संतान प्राप्ति के लिए राजा ने महर्षि कश्यप से पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया. यह यज्ञ सफल हुआ और रानी गर्भवती हुईं.
लेकिन रानी की मरा हुआ बेटा पैदा हुआ. इस बात से राजा और रानी दोनों बहुत दुखी हुए और उन्होंने संतान प्राप्ति की आशा छोड़ दी. राजा प्रियव्रत इतने दुखी हुए कि उन्होंने आत्म हत्या का मन बना लिया, जैसे ही वो खुद को मारने के लिए आगे बड़े षष्ठी देवी प्रकट हुईं.
षष्ठी देवी ने राजा से कहा कि जो भी व्यक्ति मेरी सच्चे मन से पूजा करता है मैं उन्हें पुत्र का सौभाग्य प्रदान करती हूं. यदि तुम भी मेरी पूजा करोगे तो तुम्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. राजा प्रियव्रत ने देवी की बात मानी और कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि के दिन देवी षष्ठी की पूजा की. इस पूजा से देवी खुश हुईं और तब से हर साल इस तिथि को छठ पर्व मनाया जाने लगा.
सूर्य षष्ठी का व्रत आरोग्य की प्राप्ति, सौभाग्य व संतान के लिए रखा जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार राजा प्रियव्रत ने भी यह व्रत रखा था। उन्हें कुष्ठ रोग हो गया था। भगवान भास्कर से इस रोग की मुक्ति के लिए उन्होंने छठ व्रत किया था। स्कंद पुराण में प्रतिहार षष्ठी के तौर पर इस व्रत की चर्चा है।
छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होगी। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।
अथर्वेद के अनुसार भगवान भास्कर यानी सूर्य की मानस बहन हैं षष्ठी देवी। प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं। उन्हें बालकों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है। बालक के जन्म के छठे दिन भी षष्ठी मइया की पूजा की जाती है। ताकि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं। एक अन्य आख्यान के अनुसार कार्तिकेय की शक्ति हैं षष्ठी देवी। षष्ठी देवी को देवसेना भी कहा जाता है।
छठ पूजा शनिवार, नवम्बर 2, 2019 को
सूर्योदय समय छठ पूजा के दिन - 06:34 ए एम
सूर्यास्त समय छठ पूजा के दिन - 05:37 पी एम
षष्ठी तिथि प्रारम्भ - नवम्बर 02, 2019 को 12:51 ए एम बजे
षष्ठी तिथि समाप्त - नवम्बर 03, 2019 को 01:31 ए एम बजे
सूर्य देव की आराधना का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है। चैत्र शुक्ल षष्ठी व कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यह पर्व मनाया जाता है। हालांकि कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाये जाने वाला छठ पर्व मुख्य माना जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है।
सूप:- अर्ध्य में नए बांस से बनी सूप व डाला का प्रयोग किया जाता है। सूप से वंश में वृद्धि होती है और वंश की रक्षा भी।
ईख:- ईख आरोग्यता का द्दोतक है।
ठेकुआ:- ठेकुआ समृद्धि का द्दोतक है।
मौसमी फल:- मौसम के फल ,फल प्राप्ति के द्दोतक हैं।
छठ पूजा के चौथे दिन यानी सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा जाता है और इस तरह छठ पूजा संपन्न होती है। सप्तमी तिथि 3 नवंबर को है। ये छठ पर्व का आखिरी दिन होता है। इस दिन व्रत का पारण किया जाता है।
छठ के तीसरे दिन शाम यानी सांझ के अर्घ्य वाले दिन शाम के पूजन की तैयारियां की जाती हैं। इस बार शाम का अर्घ्य 2 नवंबर को दिया जाएगा। छठ व्रती पूरे दिन निर्जला व्रत करते हैं और शाम के पूजन की तैयारियां करते हैं। इस दिन नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं।
दूसरे दिन यानी खरना के दिन से महिलाएं और पुरुष छठ का उपवास शुरू करते हैं, इन्हें छठ व्रती कहते हैं। इस बार खरना 1 नवंबर को है। इसी दिन शाम के समय प्रसाद बनाया जाता है। प्रसाद में चावल, दूध के पकवान, ठेकुआ (घी, आटे से बना प्रसाद) बनाया जाता है। साथ ही फल, सब्जियों से पूजा की जाती है। इस दिन गुड़ की खीर भी बनाई जाती है।
कार्तिक शुक्ल षष्ठी से शुरू होने वाले 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई, छठ, छठ माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से जाना जाता है। इसकी शुरुआत 31 अक्टूबर को नहाय खाय के साथ होगी। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नए वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।