Mangalwar Upay: वैदिक ज्योतिष अनुसार हर वार का संबंध किसी न किसी भगवान से होता है। यहां हम बात करने जा रहे हैं। मंगलवार के बारे में, जिसका संबंध हनुमान जी से है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति पूरी श्रद्धा से हनुमान जी की पूजा- अर्चना करता है, तो व्यक्ति के जीवन में सुख- समृद्धि का वास रहता है। साथ ही सभी दुखों से निजात मिलती है। वहीं यहां हम श्री हनुमान स्तोत्र के बारे में, जिसका पाठ अगर हर मंगलवार को करा जाए तो व्यक्ति को कर्जे से मुक्ति मिलती है। साथ ही व्यक्ति को शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं हनुमान स्त्रोत के बारे में…

इस विधि से करें हनुमान स्त्रोत का पाठ

मंगलवार के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करलें और फिर साफ सुथरे वस्त्र धाऱण कर लें। इसके बाद पूजा की चौकी पर एक पीला वस्त्र बिछाएं और फिर हनुमान जी की मूर्ति या चित्र को चौकी पर स्थापित करें और फिर गाय के घी का दीपक जलाएं। साथ ही इसके बाद हनुमान जी को बूंदी के लड्डुओं का भोग लगाएं। इसके बाद स्त्रोत का पाठ शुरू करें और स्त्रोत पूर्ण होने के बाद अपनी मनोकामना का मन में उच्चारण करें। साथ ही इसके बाद लड्डूओं का भोग घर के सभी सदस्यों में बांट दें।

श्री हनुमान स्तोत्र 

”वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।रक्ताङ्गरागशोभाढ्यं शोणापुच्छं कपीश्वरम्॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं। वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।

सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥१॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।

इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥ २॥

सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।

कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम्॥३॥

सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।

प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः॥४॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।

विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्॥५॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।

सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्॥६॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।

विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्॥७॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः।

सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्॥८॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुचेतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।

प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह॥९॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे। लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥ १०॥

ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्”॥

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