Chanakya Niti: हर व्यक्ति के पहले शिक्षक उसके माता-पिता होते हैं, फिर उसके स्कूल के शिक्षक और फिर उसके ज्ञान को बढ़ाने के लिए उसके अपने अनुभव। गुरु को भगवान के समान बताया गया है, क्योंकि गुरु के बिना शिष्य के लिए ज्ञान प्राप्त करना असंभव है। सही और गलत के बीच के अंतर का ज्ञान शिक्षक के माध्यम से ही आता है।
आचार्य चाणक्य कहते हैं कि जिस प्रकार शिष्य से गुरु के प्रति भक्ति की अपेक्षा की जाती है, उसी प्रकार गुरु से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने शिष्य को मार्ग दिखाए। चाणक्य ने बताया है कि जीवन में कब गुरु, स्त्री, धर्म और संबंधियों का त्याग करना चाहिए।
त्यजेद्धर्म दयाहीनं विद्याहीनं गुरुं त्यजेत्।
त्यजेत्क्रोधमुखी भार्या निःस्नेहान्बान्धवांस्यजेत्॥
श्लोक के मुताबिक धर्म में यदि दया न हो तो उसे त्याग देना चाहिए। विद्याहीन गुरु को, क्रोधी पत्नी को तथा स्नेहहीन बान्धवों को भी त्याग देना चाहिए।
करुणा धर्म का मूल है
आचार्य चाणक्य ने एक श्लोक में कहा है कि जिस धर्म में दया न हो, उसे छोड़ देना ही अच्छा है। धर्म का आधार दया और करुणा है। किसी भी जीव या आत्मा पर दया करना हमारा मूल धर्म है। हमेशा दयालु रहने वाले व्यक्ति की खुशी का ठिकाना नहीं रहता।
ऐसे गुरु का त्याग कर देना चाहिए
गुरु शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं, उसे उचित शिक्षा देकर उसे समृद्ध बनाने के लिए अच्छे और बुरे में अंतर करना सिखाते हैं, लेकिन आचार्य चाणक्य के अनुसार यदि गुरु को ज्ञान ही नहीं है तो वह शिष्य का भला कैसे कर सकता है। ऐसे गुरु से शिक्षा लेने से न केवल धन की हानि होती है बल्कि यह आपका पूरा भविष्य बिगाड़ सकती है, इसलिए ऐसे गुरु को तुरंत छोड़ देना ही बेहतर होता है।
ऐसे रिश्तेदारों से दूर रहें
रिश्ते प्यार और भरोसे से बनते हैं। आचार्य चाणक्य के अनुसार जिन रिश्तेदारों में आपके लिए प्यार और स्नेह नहीं है, उनसे दूर रहना ही बेहतर है। ऐसे रिश्तेदार केवल नाम के होते हैं, जब आपका समय खराब होता है तो इससे मुंह मोड़ लेते हैं और फायदा भी उठा सकते हैं।