आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों से शक्तिशाली नंदवंश का नाश करके मौर्यवंश की स्थाना की। कहा जाता है कि नंदवंश के राजा धनानंद ने उनका एक बार अपमान कर दिया था लेकिन चाणक्य ने कभी अपने क्रोध को जाहिर नहीं होने दिया। बल्कि उसे अपना हथियार बनाकर अपने शत्रुओं का समूल नाश कर दिया। आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में दुश्मनों को परास्त करने का तरीका बताया है साथ ही ये भी बताया है कि कैसे आप अपने अपमान का बदला ले सकते हैं…
चाणक्य कहते हैं कि जब कोई आपको अपमानित करे तो उसे उसकी भाषा में जवाब देने की बजाय उसकी तरफ देखकर थोड़ा मुस्करा दें। इससे सामने वाला खुद को ही अपमानित महसूस करने लगेगा। क्योंकि सामने वाला आपको परेशान करने की सोच से अपमानित कर रहा है और अगर उसे ऐसा प्रतीत होगा कि आपको इससे कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा तो वह खुद ही क्रोध की अग्नि में जलने लगेगा।
कई लोगों को दूसरों को नीचा दिखाना काफी अच्छा लगता है। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि ऐसे लोग जीवन में असफल होते हैं। क्योंकि समझदार इंसान कभी ऐसा नहीं करता। चाणक्य कहते हैं कि अगर कोई अपमान करे तो उसे एक बार सहन करना समझदारी है, दूसरी बार सहना व्यक्ति के महान होने का परिचय देता है लेकिन तीसरी बार सहना उस इंसान की सबसे बड़ी मूर्खता है। इसलिए हमेशा सहते रहना भी सही नहीं है। इससे सामने वाला आपको कमजोर समझ सकता है।
चाणक्य के अनुसार बदबू सिर्फ सड़े हुए फूलों से आती है क्योंकि खिले हुए फूल तो हमेशा खुशबू फैलाते हैं। जो व्यक्ति दूसरों का अपमान करता हैं ऐसे व्यक्ति की सोच बहुत ही छोटी होती है। ऐसे लोगों से दूरी बनाए रखने में ही भलाई है।
शत्रु का सबसे घातक हथियार होता है उकसाना। शत्रु आपको उकसाकर क्रोधित करने का प्रयास करेगा। क्रोध में शक्ति और विवेक आधी हो जाती और शत्रु आपकी इस कमजोरी का फायदा उठाता है। इसलिए शत्रु जब आपको उकसाने का प्रयास करे तो कछुए की भांति क्रोध को समेटकर अपने अंदर रख लो और फिर अपनी पूरी तैयारी के साथ उसपर वार करो। इसलिए कभी भी शत्रु के उकसावे पर तुरंत प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए बल्कि सही वक्त का इंतजार करना चाहिए।
चाणक्य नीति कहती है कि अपने शत्रु से कभी घृणा मत करो। क्योंकि शत्रु से घृणा करने पर आप उसके बारे में सोचने-समझने की शक्ति खो देते हैं जिससे आप केवल उसकी कमजोरी देख पाते हैं ताकत नहीं। इसलिए शत्रु को एक मित्र की तरह देखें और उसकी हर छोटी बड़ी बातों की जानकारी रखें ताकि शत्रु के बचकर निकलने की कोई राह ना हो।