चाणक्य की नीतियां: चंद्रगुप्त मौर्य के महामंत्री आचार्य चाणक्य को कौन नहीं जानता है। ये एक महान राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ थे। इन्हें कौटिल्य के नाम से भी जाना जाता है। चाणक्य ने भारतीय राजनीतिक ग्रंथ, ‘ द अर्थशास्त्र’ लिखा था। इस ग्रंथ में उन्होंने संपत्ति, अर्थशास्त्र और भौतिक सफलता से संबंधित उस समय तक के लगभग हर पहलू के बारे में लिखा है। कहा जाता है कि जो व्यक्ति इनके इस नीति ग्रंथ को अच्छे से पढ़कर समझ ले तो उसे अपने जीवन की सभी समस्याओं का हल मिल सकता है। यहां आप जानेंगे चाणक्य की कुछ ऐसी नीतियां जो आपके जीवन में कभी न कभी काम आ सकती हैं…
– चाणक्य कहते हैं कि इस पृथ्वी पर तीन ही रत्न है-जल, अन्न और मधुर वचन! बुद्धिमान व्यक्ति इसकी समझ रखता है, परन्तु मूर्ख लोग पत्थर के टुकड़ों को ही रत्न कहते हैं।
– मनुष्य के अधर्म रूपी वृक्ष अर्थात शरीर के फल – दरिद्रता, रोग, दुख, बंधन यानी मोह माया, व्यसन आदि है।
– यह एक निश्चित तथ्य है कि बहुत से लोगों का समूह ही शत्रु पर विजय प्राप्त करता है, जैसे वृषा की धार को धारण करने वाले मेघों के जल को तिनकों के द्वारा ही रोका जा सकता है।
– पानी में तेल, दुष्ट व्यक्तियों में गोपनीय बातें, उत्तम पात्र को दिया गया दान और बुद्धिमान के पास शास्त्र-ज्ञान यदि थोड़ा भी हो तो स्वयं वह अपनी शक्ति से विस्तार पा जाता है।
– धार्मिक कथा सुनने पर, श्मशान में चिता को जलते देखकर, रोगी को कष्ट में पड़े देखकर जिस प्रकार वैराग्य भाव उत्पन्न होता है, वह यदि स्थिर रहे तो यह सांसारिक मोह-माया व्यर्थ लगने लगे, परन्तु अस्थिर मन श्मशान से लौटने पर फिर से मोह-माया में फंस जाता है।
– चिंता करने वाले व्यक्ति के मन में चिंता उत्पन्न होने के बाद की जो स्थिति होती है अर्थात उसकी जैसी बुद्धि हो जाती है, वैसी बुद्धि यदि पहले से ही रहे तो भला किसका भाग्योदय नहीं होगा।
– जो जिसके मन में है, वह उससे दूर रहकर भी दूर नहीं है और जो जिसके ह्रदय में नहीं है, वह समीप रहते हुए भी दूर है।
– जिससे अपना हित साधना हो, उससे सदैव प्रिय बोलना चाहिए जैसे मृग को मारने के लिए बहेलिया मीठे स्वर में गीत गाता है।