प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में एक समय ऐसा जरूर आता है जब लगता है मानों समस्याओं की बाढ़ आ गई हो। ऐसे कठिन समय में व्यक्ति के पास केवल दो ही विकल्प होते हैं या तो वह मुसीबत का सामना करे या भाग जाए। ऐसे में व्यक्ति पर निर्भर करता है कि वह उस मुसीबत का सामना किस प्रकार करता है। यदि वह चट्टान की तरह दृढ़ रहकर समस्या को अपना रास्ता बदल देने को विवश कर दे तो जीत उसकी होगी। वहीं अगर वह रेत की भांति बह जाए तो मुसीबत उसका पीछा नहीं छोड़ती। आगे आचार्य चाणक्य के अनुसार जानेंगे कि मुसीबत आने पर या उससे बचने के लिए व्यक्ति को क्या करना चाहिए।

चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मनुष्य को मुसीबत के समय के लिए धन का संचय करना चाहिए। साथ ही धन से अधिक रक्षा अपनी पत्नी की करनी चाहिए। परंतु खुद की रक्षा का प्रश्न आगे आने पर यदि धन और पत्नी का भी बलिदान करना पड़े तो उसे कर देना चाहिए। आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मुसीबत या दुख आने पर धन ही मनुष्य के काम आता है। इसलिए मुसीबत से बचने के लिए मनुष्य को धन की रक्षा करनी चाहिए। चाणक्य कहते हैं कि पत्नी धन से बढ़कर है, इसलिए उसकी रक्षा धन से पहले करनी चाहिए। परंतु धन और पत्नी से पहले और इन दोनों से बढ़कर अपनी खुद की रक्षा करनी चाहिए।

चाणक्य बताते हैं कि खुद की रक्षा होने पर मनुष्य अन्य सब की रक्षा कर सकता है। आचार्य चाणक्य धन के महत्व को बताते हुए कहते हैं कि धन से ही व्यक्ति के अनेक कार्य पूरे होते हैं। परंतु परिवार की भद्र महिला, स्त्री अथवा पत्नी के जीवन सम्मान का प्रश्न आए तो धन की परवाह नहीं करनी चाहिए। चाणक्य के मुताबिक परिवार की मान-मर्यादा से ही व्यक्ति की भी मान-मर्यादा जीवित रहती है। यदि वही चली गई तो व्यक्ति का धन-संचय करना व्यर्थ है।

इसके अलावा चाणक्य नीति में आचार्य चाणक्य कहते हैं कि मुसीबत के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए, लेकिन धनवान को विपत्ति क्या करेगी? ऐसे में चाणक्य बताते हैं कि लक्ष्मी तो चंचल होती है। पता नहीं यह कब नष्ट हो जाए। फिर यदि ऐसा है तो बुरा समय आने पर सबकुछ नष्ट हो सकता है। लक्ष्मी स्वभाव से ही चंचल होती है, इसका कोई भरोसा नहीं कि ये कब नष्ट हो जाए। इसलिए धनवान व्यक्ति को यह नहीं समझना चाहिए कि उस पर विपत्ति आएगी ही नहीं। मुसीबत के समय के लिए कुछ धन अवश्य बचाकर रखना चाहिए।