Chanakya niti in hindi: एक कहावत मशहूर है कि अपना खून अपना होता है, लेकिन जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है जब अपने लोग ही शत्रु के समान आचरण करने लगते हैं। महान राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में इस बारे में बताया है कि अपनों का कैसा व्यवहार हमारे लिए शत्रु के समान है। चाणक्य नीति बुक में चाणक्य द्वारा कई नीतियां बताई गई हैं। जिनका आज के समय में भी काफी महत्व है। जानिए चाणक्य की वह नीति जब अपने अपनों के ही बन जाते हैं दुश्मन…

1. ऐसी संतान होती है शत्रु के समान – चाणक्य के अनुसार यदि किसी का पुत्र मूर्ख होता है तो वह अपने माता-पिता के लिए एक शत्रु के समान ही होता है। ऐसी संतान जीवन भर अपने परिवार वालों को दुख देती है। इसी कारण से चाणक्य कहते हैं कि 1000 मूर्ख संतान से एक गुणकारी संतान बेहतर होती है।

2. ऐसा पिता है शत्रु के समान – ऋणकर्ता पिता शत्रुर्माता च व्यभिचारिणी।
भार्या रूपवती शत्रु: पुत्र: शत्रुरपण्डित:।।
इस श्लोक में चाणक्य कहते हैं कि जो पिता कर्ज़ लेकर जीवन का गुज़ारा करता है तो वह पिता भी एक शत्रु के समान ही होता है। एक पिता का फर्ज़ होता है कि वह अपने संतान की अच्छे से देखभाल करे और उनका पालन-पोषण करे। जो पिता कर्ज़ लेता है और उसे चुकाने में असमर्थ होता है तो वह अपनी संतान के लिए दुश्मन होता है।

3. ऐसी स्त्री होती है शत्रु के समान – एक स्त्री यदि बहुत ज़्यादा रूपवती होती है तो वह एक पति के लिए समस्या की बात होती है, यदि उसका पति कमज़ोर हो और उसकी रक्षा करने में असमर्थ हो तो वह स्त्री अपने पति के लिए एक शत्रु के समान ही है।

4. ऐसी मां होती है शत्रु के समान – यदि कोई माता अपनी संतानों के बीच किसी प्रकार का भेदभाव करती है तो वह भी एक शत्रु के समान होती है। यदि कोई माता अपनी संतान का सही तरीके से पालन नहीं करती है और उसका अपने पति के अलावा किसी और पुरूष के साथ संबंध है तो वह संतान के लिए घातक होता है। ऐसे परिवार का और उस संतान का विनाश होना निश्चित होता है।