Chaitra Navratri 5th Day Maa Skandamata Puja: वैदिक पंचांग के अनुसार इस साल चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 29 मार्च को हो गई है। वहीं नवरात्रि के पंचम दिन स्कंदमाता की पूजा -अर्चना करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार, इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। वहीं पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं देवी हैं स्कंदमाता। आपको बता दें कि स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से भी जाना जाता है। मां स्कंदमाता को मातृत्व के रूप में माना जाता है। इस रूप की विधिवत पूजा करने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं मां स्कंदमाता की भोग, मंत्र, स्तोत्र आदि…

स्कंदमाता का स्वरूप

जिसमें दो में कमल और एक हाथ में बालक स्वरूप कार्तिकेय जी और चौथे हाथ से आशीर्वाद देते हुए नजर आ रहे हैं। मां कमल में विराजमान रहती हैं और वाहन की बात करें, तो वह सिंह है।

स्कंदमाता का भोग (Skandmata Mata Bhog)

मां स्कंदमाता को पीले रंग की मिठाई का भोग लगा सकते हैं। इसलिए उन्हें बेसन के लड्डू, केसर की खीर या फिर कोई अन्य पीली मिठाई अर्पित कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको मां का आशीर्वाद प्राप्त होगा।

मां स्कंदमाता का प्रिय फूल

मां स्कंदमाता के प्रिय फूल की बात करें, तो वो कमल है। इसलिए इस दिन मां के चरणों में कमल अवश्य चढ़ाएं। ऐसा करने से आपका हर मनोरथ पूर्ण होंगे।

इन मंत्रों से करें माता का ध्यान

वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥

स्कंदमाता का स्तोत्र पाठ

नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥

मां स्कंदमाता की आरती

जय तेरी हो स्‍कंदमाता

पांचवां नाम तुम्हारा आता

सब के मन की जानन हारी

जग जननी सब की महतारी

तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं

हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं

कई नामो से तुझे पुकारा

मुझे एक है तेरा सहारा

कही पहाड़ों पर है डेरा

कई शहरों में तेरा बसेरा

हर मंदिर में तेरे नजारे

गुण गाये तेरे भगत प्यारे

भगति अपनी मुझे दिला दो

शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो

इन्दर आदी देवता मिल सारे

करे पुकार तुम्हारे द्वारे

दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये

तुम ही खंडा हाथ उठाये

दासो को सदा बचाने आई

‘चमन’ की आस पुजाने आई

मां स्कंदमाता के मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.

शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥