Chaitra Navratri Havan Pooja: हिंदू धर्म में कोई भी पूजा बिना हवन के अधूरा माना जाता है। इतना ही नहीं शादी-विवाह, गृह प्रवेश जैसे कई मौके पर भी हवन का प्रावधान है। इसलिए जब बात नवरात्रि की हो तो हवन का महत्व और भी बढ़ जाता है। चूंकि नवरात्रि शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होकर कन्या पूजन तक पूरे नौ दिनों तक चलता है। ऐसे में हवन के बिना नवरात्रि की पूजा अधूरी मानी जाती है। माना जाता है कि नवरात्रि में हवन करने के बाद ही इसका पूर्ण फल मिलता है।
हवन मुहूर्त: अष्टमी तिथि 09 अप्रैल, शनिवार के दिन पड़ रही है। इसे दुर्गा अष्टमी भी कहते हैं। अष्टमी तिथि की शुरुआत 08 अप्रैल को रात 11 बजकर 05 मिनट से हो रही है, इसका समापन 09 अप्रैल की देर रात 01 बजकर 23 मिनटपर होगा। अष्टमी का शुभ मुहूर्त 11 बजकर 58 मिनट से 12 बजकर 48 मिनट तक है। इस शुभ मुहूर्त में कन्या पूजन करना शुभ रहेगा।
वहीं कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन करते हैं। उनके लिए नवमी तिथि 10 अप्रैल को रात 1 बजकर 23 मिनट से शुरू होगी, जो कि 11 अप्रैल को सुबह 03 बजकर 15 मिनट पर समाप्त होगी। बता दें कि नवमी के दिन रवि पुष्य योग, रवि योग और सर्वार्थ सिद्धि योग पूरे दिन रहेगा। नवमी के दिन सुबह के समय कन्या पूजन कर सकते हैं।
हवन के सामग्री: हवन के लिए आम की लकड़ी लें और इसमें बेल, नीम, देवदार की जड़, चंदन की लकड़ी, तिल, कपूर, लौंग, अक्षत, अश्वगंधा की जड़, ब्राह्मी का फल, इलायची, बहेड़ा का फल, घी, लोबान जैसे सामग्रियों को डाला जाता है और मां दुर्गा के मंत्रोच्चारण के साथ हवन संपन्न होता है।
क्यों जरूरी है हवन: हवन को हिंदू धर्म का प्रमुख कर्मकांड माना जाता है। माना जाता है कि अग्नि के माध्यम से यानि की हवन के माध्यम से ही देवी देवताओं को अर्पित होने वाली सामग्री उन तक पहुंचती है। इसलिए हवन के दौरान आम की लकड़ी की अग्नि में कुछ सामग्री का मिश्रण डाला जाता है। मान्यता है कि हवन के दौरान किए गए मंत्रों के जाप से देवी-देवता तृप्त होते हैं। वहीं नारद पुराण के अनुसार दुर्गा पूजा में हवन को खास बताया गया है।
इसलिए यदि आपने नौ दिन का व्रत रखा है तो समापन के दिन किसी भी तरह की हड़बड़ी ना दिखाएं। कई लोग ऐसे हैं कि अष्टमी की रात 12 बजते ही व्रत पारण कर देते हैं, लेकिन ऐसा करना गलत माना जाता है। इसलिए आराम से धैर्य के साथ नवमी के दिन सुबह पूरे विधि-विधान के साथ ही व्रत खत्म करें। कोशिश करें कि नवमी के दिन दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के बाद पूरे विधि से हवन करें और कन्याओं को भोजन कराने के बाद ही इसका समापन करें।