Chaitra Navratri 2021 Date: नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ दुर्गा की विशेष पूजा की जाती है। भक्त मां का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत रख उनकी सच्चे मन से अराधना करते हैं। नवरात्रि में पश्चिम बंगाल में सिंदूर खेला की प्रथा चलती है। जिसमें औरतें एक दूसरे को सिंदूर लगाती हैं। गुजरात में इस दौरान गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है। उत्तर भारत में नवरात्रि के दिनों में जगह-जगह रामलीला आयोजित होती है। जानिए नवरात्रि पर्व मनाने के पीछे की कहानी…

नवरात्रि की पौराणिक कथा? प्राचीन समय में महिषासुर नामक एक राक्षस था जो ब्रह्मा जी का बड़ा भक्त था। उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उसे यह वरदान दे दिया कि उसे न कोई देव, न दानव और न ही पुरुष मार पाएगा। इस वरदान को पाकर महिषासुर काफी अहंकारी हो गया। उसने तीनों लोकों में आतंक मचा दिया। इससे परेशान होकर ब्रह्मा, विष्णु, महेश के साथ सभी देवताओं ने माँ शक्ति के रूप में दुर्गा को जन्म दिया। कहा जाता है कि माँ दुर्गा और महिषासुर के बीच पूरे नौ दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और दसवें दिन माँ दुर्गा ने उस राक्षस का वध कर दिया। इसलिए नवरात्रि में मां के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा करने के बाद दशवें दिन विजयादशमी मनाने की परंपरा है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

एक अन्य कथा के अनुसार त्रेता युग में भगवान राम ने मां शक्ति की पूजा की थी। श्रीराम जी ने लंका पर आक्रमण करने से पहले समुद्र किनारे देवी माँ भगवती की नौ दिनों तक पूजा की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर माँ ने श्रीराम को विजय प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। जिससे दसवें दिन भगवान राम ने रावण को परास्त कर दिया था।

अलग-अलग राज्यों में नवरात्र का महत्व: नवरात्रि में शक्ति के नौ रूपों की पूजा होती है। भारत के अलग-अलग राज्यों में नवरात्रि को अलग-अलग ढंग से मनाया जाता है। जैसे बंगाल और असम में नवरात्र में दुर्गा माता की मूर्तियों की पूजा होती है। गुजरात की बात करें तो वहां मिट्टी से बने बर्तनों को पूजा जाता है। यहां मिट्टी के इन बर्तनों को गरबो कहते हैं। उत्तर भारत में नवरात्रि पर्व को राम लीला से जोड़ा जाता है। वहीं दक्षिण भारत में इन दिनों देवी-देवताओं की छोटी-छोटी मूर्तियां जुटाई जाती हैं।

नवरात्रि पूजा विधि: नवरात्रि पर्व में सुबह जल्दी उठें और स्नान कर पूजन की तैयारी करें। पूजा की थाल सजाएं। माँ दर्गा की प्रतिमा को लाल वस्त्र में रखें। मिट्टी के पात्र में जौ के बीज बोयें और नवरात्रि के नौ दिनों तक इन पर पानी का छिड़काव करते रहें। शुभ मुहूर्त में विधि से कलश को स्थापित करें। कलश को मिट्टी के बर्तन के पास रख दें। फूल, कपूर, अगरबत्ती के साथ पंचोपचार पूजा करें। नौ दिनों तक माँ दुर्गा की विधि विधान पूजा करें। अष्टमी या नवमी को मां दुर्गा की पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें। आखिरी दिन दुर्गा माता के पूजा के बाद कलश विसर्जित कर दें।