चैत्र नवरात्रि की आज से शुरूआत हो गई है। अब नौ दिनों तक मां गौरी के अलग अलग रूपों की उपासना की जायेगी। 02 अप्रैल को नवरात्रि का समापन होगा। माना जाता है कि नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था। जिसके बाद मां दुर्गा के कहने पर ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की। हिंदू धर्म में मां दुर्गा की अराधना के दिन काफी खास माने जाते हैं। इन दिनों विधि विधान के साथ मां की पूजा अर्चना की जाती है। जानिए नवरात्र की पूजा विधि, मंत्र, आरती, कथा और सभी कुछ…
Mata Ki Aarti, Ambe Tu Hai Jagdambe Kali: अम्बे तू है जगदम्बे काली…आरती यहां देखें
नवरात्रि के पहले दिन कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त (Navratri Kalash Sthapana Muhurat):
घटस्थापना मुहूर्त – 06:00 ए एम से 06:57 ए एम
अवधि – 00 घण्टे 56 मिनट्स
घटस्थापना मुहूर्त प्रतिपदा तिथि पर है।
घटस्थापना मुहूर्त, द्वि-स्वभाव मीन लग्न के दौरान है।
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – मार्च 24, 2020 को 02:57 पी एम बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – मार्च 25, 2020 को 05:26 पी एम बजे
मीन लग्न प्रारम्भ – मार्च 25, 2020 को 06:00 ए एम बजे
मीन लग्न समाप्त – मार्च 25, 2020 को 06:57 ए एम बजे
चौकी स्थापित करने में उपयोग आने वाली वस्तुएं: माता की चौकी को स्थापित करने में जिन वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है उनमें गंगाजल, रोली, मौली, पान, सुपारी, धूपबत्ती, घी का दीपक, फल, फूल की माला, बिल्वपत्र, चावल, केले का खम्भा, चंदन, घट, नारियल, आम के पत्ते, हल्दी की गांठ, पंचरत्न, लाल वस्त्र, चावल से भरा पात्र, जौ, बताशा, सुगन्धित तेल, सिंदूर, कपूर, पंच सुगन्ध, नैवेद्य, पंचामृत, दूध, दही, मधु, चीनी, गाय का गोबर, दुर्गा जी की मूर्ति, कुमारी पूजन के लिए वस्त्र, आभूषण तथा श्रृंगार सामग्री आदि प्रमुख हैं।
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चैत्र नवरात्रि के पहले दिन की पूजा विधि: सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें। घर के किसी पवित्र स्थान पर स्वच्छ मिट्टी से वेदी बनाएं। वेदी में जौ और गेहूं मिलाकर बोएं। वेदी पर या उसके पास पृथ्वी का पूजन कर कलश की स्थापना करें। कलश सोने, चांदी, तांबे या फिर मिट्टी किसी भी चीज का ले सकते हैं। इसके बाद कलश में आम के हरे पत्ते, दूर्वा, पंचामृत डालकर उसके मुंह पर सूत्र बांधें। उसके मुख पर जटाधारी नारियल रखें। कलश स्थापना के बाद गणेश जी की पूजा करें। तत्पश्चात मूर्ति का आसन, पाद्य, अर्द्ध, आचमय, स्नान, वस्त्र, गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, आचमन, पुष्पांजलि, नमस्कार, प्रार्थना आदि से पूजन करें। इसके पश्चात दुर्गा सप्तशती का पाठ करें। फिर दुर्गाजी की आरती उतारकर उन्हें प्रसाद वितरित करें।
प्रतिपदा के दिन घर में बोए जाने वाले जौ को नवमी के दिन सिर पर रखकर किसी नदी या तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। अष्टमी तथा नवमी के दिन हवन करें और फिर यथाशक्ति कन्याओं को भोजन कराना चाहिए।
मां गौरी की आरती (Jai Ambe Gauri):
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥


एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। नवरात्रि की व्रत कथा...
कोरोना वायरस के कारण जम्मू के वैष्णोदेवी से मदुरै के मीनाक्षी मंदिर तक सारे माता मंदिर नवरात्र में भक्तों के लिए बंद रहेंगे। मंदिरों में नवरात्र की सारी विधियां और पूजन तो होंगे लेकिन उनका दर्शन करने वाले नहीं होंगे। कोरोना वायरस के चलते देश के सारे मंदिर इस समय आम लोगों के लिए बंद हैं, सिर्फ पंडे-पुजारियों को ही मंदिरों में प्रवेश मिल रहा है। ऐसे में चैत्र नवरात्र पर ना तो बाहरी लोग दर्शन कर सकेंगे, ना मंदिर के किसी आयोजन में हिस्सा ले सकेंगे।
नवरात्रो में आटे, आलू, दाल और दूध से बने पकवान बनाने की परंपरा है। आटे से तैयार लुछी, उबले आलू के दम और दूध से तैयार पायेश जो मेवें से सजाकर परोसा जाता है, बंगालियों के अलावा दुसरे प्रदेश के लोग भी यह व्यंजन चाव से खाते हैं।
– नवरात्र के पहले दिन यानि प्रतिपदा को मंगल ग्रह की शांति के लिये पूजा की जाती है।
– द्वितीया तिथि को दूसरा नवरात्र होता है इस दिन राहू शांति के लिये पूजा की जाती है।
– तृतीया को तीसरे नवरात्र में मां महागौरी के स्वरूप की पूजा बृहस्पति की शांति के लिये होती है।
– चतुर्थी तिथि को शनि की शांति के लिये मां कालरात्रि के स्वरूप की पूजा करनी चाहिये।
– पांचवें नवरात्र में पंचमी तिथि को बुध की शांति के लिये पूजा की जाती है इस दिन मां कात्यायनी के स्वरूप की पूजा करनी चाहिये।
– षष्ठी तिथि को छठा नवरात्र होता है जिसमें केतु की शांति के लिये पूजा की जाती है।
– शुक्र की शांति के लिये सप्तमी तिथि को सातवें नवरात्र में माता सिद्धिदात्रि के स्वरूप का पूजन करना चाहिये।
– अष्टमी तिथि को आठवें नवरात्र पर माता शैलपुत्री के स्वरूप की पूजा करने से सूर्य की शांति होती है।
– नवमी के दिन मां दुर्गा के चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा करने से चंद्रमा की शांति होती है
अपने कुल देवी देवता की पूजा के साथ-साथ नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना अर्थात घट स्थापना के साथ ही नवरात्र की शुरुआत होती है। पहले दिन मां शैलपुत्री तो दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कुष्मांडा, तो पांचवे दिन स्कंदमाता की पूजा होती है। छठे दिन मां कात्यायनी एवं सातवेंदिन मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। आठवें दिन महागौरी तो नौवें दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।
Chaitra Navratri 2020: चैत्र नवरात्रि हिन्दुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है, इसके साथ ही हिन्दू नव वर्ष की शुरुआत होती है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है, इन नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है। कई लोग इस दौरान व्रत भी रखते हैं। मां को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए चैत्र नवरात्रि को बेहद अहम माना जाता है। आइए जानते हैं कि जीवन में सुख-समृद्धि और खुशहाली पाने के लिए नवरात्रि के दौरान क्या उपाय किये जाते हैं…
साल में चार बार नवरात्रि आती है. आषाढ़ और माघ में आने वाले नवरात्र गुप्त नवरात्र होते हैं जबकि चैत्र और अश्विन प्रगट नवरात्रि होती हैं. चैत्र के ये नवरात्र पहले प्रगट नवरात्र होते हैं. चैत्र नवरात्र (Chaitra Navratri) से हिन्दू वर्ष की शुरुआत होती है. वहीं शारदीय नवरात्र (Shardiya Navratri) के दौरान दशहरा मनाया जाता है. बता दें, हिन्दू धर्म में नवरात्रि का विशेष महत्व है. नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है. इस दौरान लोग देवी के नौ रूपों की आराधना कर उनसे आशीर्वाद मांगते हैं. मान्यता है कि इन नौ दिनों में जो भी सच्चे मन से मां दुर्गा की पूजा करता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती हैं.
माता की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर, अखंड ज्योत की स्थापना करें। एक ज्योत भैरव बाबा के लिए भी जलाएं। मां शैलपुत्री का पूजन सफेद पुष्प और अनार से करना अति शुभ माना जाता है। दूसरे नवरात्र को ब्रह्मचारिणी, तीसरे को चंद्र घंटा, चौथे को कुष्मांडा, पांचवे को स्कंद माता, छठे को कत्यायनी, सातवें को महाकाली, आठवें को महागौरी और नौवें को माता के नौवें स्वरूप सिद्धीदात्री की पूजा की जाती हैं।
वर्ष 2020 में चैत्र नवरात्र 25 मार्च से 03 अप्रैल तक रहेगा। पहले दिन घटस्थापना का मुहूर्त सुबह 06:23 ए एम से 07:17 ए एम तक रहेगा। प्रतिपदा 24 मार्च को दोपहर बाद 02:57 पी एम पर शुरु होगी। 02 को अंतिम नवरात्र होगा साथ ही इस दिन प्रभु श्री राम की जयतीं यानी रामनवमी भी मनाई जायेगी।
1. नवरात्र में माता दुर्गा के सामने नौ दिन तक अखंड ज्योत जलाई जाती है। यह अखंड ज्योत माता के प्रति आपकी अखंड आस्था का प्रतीक स्वरूप होती है। माता के सामने एक एक तेल व एक शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए।
2. मान्यता के अनुसार, मंत्र महोदधि (मंत्रों की शास्त्र पुस्तिका) के अनुसार दीपक या अग्नि के समक्ष किए गए जाप का साधक को हजार गुना फल प्राप्त हो है। कहा जाता है-
दीपम घृत युतम दक्षे, तेल युत: च वामत:।
अर्थ - घी का दीपक देवी के दाहिनी ओर तथा तेल वाला दीपक देवी के बाईं ओर रखना चाहिए।
3. अखंड ज्योत पूरे नौ दिनों तक जलती रहनी चाहिए। इसके लिए एक छोटे दीपक का प्रयोग करें। जब अखंड ज्योत में घी डालना हो, बत्ती ठीक करनी हो तो या गुल झाड़ना हो तो छोटा दीपक अखंड दीपक की लौ से जलाकर अलग रख लें।
4. यदि अखंड दीपक को ठीक करते हुए ज्योत बुझ जाती है तो छोटे दीपक की लौ से अखंड ज्योत पुन: जलाई जा सकती है छोटे दीपक की लौ को घी में डूबोकर ही बुझाएं।
बुधवार, 25 मार्च यानी आज सूर्योदय के समय की कुंडली में गजकेसरी, पर्वत, शंख, सत्कीर्ति और हंस नाम के राजयोग बन रहे हैं। इन शुभ योगों में नवरात्रि कलश स्थापना होना देश के लिए शुभ संकेत हैं।
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।
ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
अभी तक आप कलश स्थापना नहीं कर पाए हैं तो परेशान न हों। आप अमृत मुहूर्त सुबह 07 बजकर 51 मिनट से 09 बजकर 23 मिनट तक है, इसमें भी कलश स्थापना कर सकते हैं। इसके अलावा चौघड़िया का शुभ मुहूर्त सुबह 10 बजकर 55 मिनट से दोपहर 12 बजकर 27 मिनट तक है। इस मुहूर्त में भी कलश स्थापना हो सकता है, लेकिन अमृत मुहूर्त कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ रहेगा।
दुर्गा सप्तशती का पाठ करने से पहले गणेश जी का पूजन अवश्य कर लें। अगर आपने घर में कलश की स्थापना की हुई है तो सबसे पहले उसका पूजन भी जरूर कर लें।
श्रीदुर्गा सप्तशती की पुस्तक को शुद्ध आसन पर लाल कपड़े में बिछाकर रखें। इसका विधि पूर्वक कुंकुम,चावल और पुष्प से पूजन करें। इसके बाद चंदन या रोली का तिलक लगाकर पूर्व दिशा की तरफ मुख करके बैठें। बैठने के बाद चार बार आचमन करें। फिर दुर्गा सप्तशती का पाठ प्रारंभ करें।
पूजा विधि: सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें। अगर तस्वीर न हो तो मां दुर्गा की ही प्रतिमा की पूजा करें। हाथ में लाल फूल लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें 'ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:'। मंत्र जाप के साथ ही हाथ में पुष्प मनोकामना गुटिका मां की तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद इस मंत्र का 108 बार जाप करें 'ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:'। आरती उतारें और मां शैलपुत्री की कथा सुनें। अंत में भोग लगाकर प्रसाद सभी लोगों में