नवरात्रि में हर दिन मां के अलग स्वरूप की पूजा अर्चना की जाती है। आज चैत्र नवरात्रि का पहला दिन है यानी मां शैलपुत्री की अराधना का दिन। मां का यह रूप भक्तों को मनचाहे वरदान का आशीर्वाद देता है। नवरात्रि के पहले दिन घर में कलश स्थापना करने के बाद मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इनकी पूजा से चंद्र दोष से मुक्ति भी मिल जाती है। जानिए नवरात्रि के पहली दिन की पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र, मुहूर्त…
Mata Aarti: जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी… आरती पढ़ें यहां से
पूजा विधि: सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें। अगर तस्वीर न हो तो मां दुर्गा की ही प्रतिमा की पूजा करें। हाथ में लाल फूल लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें और इस मंत्र का जाप करें ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:’। मंत्र जाप के साथ ही हाथ में पुष्प मनोकामना गुटिका मां की तस्वीर के ऊपर छोड़ दें। इसके बाद इस मंत्र का 108 बार जाप करें ‘ॐ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:’। आरती उतारें और मां शैलपुत्री की कथा सुनें। अंत में भोग लगाकर प्रसाद सभी लोगों में वितरित कर दें।
स्तोत्र पाठ:
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रणमाम्यहम्॥
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मां शैलपुत्री की कथा: कथा के अनुसार एक बार प्रजापति दक्ष ने एक विशाल यज्ञ किया। जिसमें उसने सारे देवी-देवताओं को आमंत्रित किया था लेकिन उसने भगवान शिव को उस यज्ञ के लिए निमंत्रण नहीं भेजा था। जब माता सती को पता चला की उनके पिता ने एक बहुत बड़े यज्ञ का आयोजन किया है तब उनका मन वहां जाने का हुआ। माता सती ने अपनी यह इच्छा भगवान शिव को जाकर बताई।
तब भगवान शिव ने उन्हें समझाया कि पता नहीं क्यों लेकिन प्रजापति दक्ष हमसे रुष्ट है इसलिए उन्होंने अपने यज्ञ में सभी देवताओं को निमंत्रित किया है लेकिन मुझे इसका आमंत्रण नहीं भेजा और न ही कोई सूचना भेजी है। इसलिए तुम्हारा वहां जाना ठीक नहीं है लेकिन माता सती ने भगवान शिव की बात नहीं मानी। माता सती की अपने माता-पिता और बहनों से मिलने की बहुत इच्छा थी।
उनकी जिद्द के आगे भगवान शिव की एक न चली और उन्हें माता सती को उनके पिता के यज्ञ में जाने की अनुमति देनी ही पड़ी। माता सती खुशी-खुशी पिता के घर पहुंची। वहां जाकर उन्होंने देखा कि सब उन्हें देखकर भी अनदेखा कर रहे हैं और कोई भी उनसे ठीक प्रकार से बात नहीं कर रहा है। सिर्फ उनकी माता ने ही उन्हें प्रेम से गले लगाया था।
उनकी बहनों की बातों में व्यंग्य था और वह उनका उपहास कर रही थीं। अपने परिवार के लोगों का यह बर्ताव देखकर माता सती को अघात लगा। उन्होंने देखा कि सभी के मन में भगवान शिव के प्रति द्वेष की भावना है। राजा दक्ष ने भगवान शिव का तिरस्कार किया और उनके प्रति अपशब्द भी कहे। यह सुनकर माता सती को अत्यधिक क्रोध आ गया। माता सती को लगा कि उन्होंने भगवान शिव की बात न मानकर बहुत बड़ी गलती कर दी है।
वह भगवान शिव का अपमान सहन नहीं कर सकी और उन्होंने अग्नि में अपने शरीर का त्याग कर दिया। जब भगवान शिव को इस बारे में पता चला तो उन्हें अत्यधिक क्रोध आ गया। उन्होंने अपने गणों को भेजकर उस यज्ञ को पूरी तरह से खंडित करा दिया। इसके बाद माता सती ने अपना दूसरा जन्म शैलराज हिमालय के यहां पर लिया। शैलराज के यहां जन्म लेने के कारण वह ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं। उपनिषद् के अनुसार इन्हीं ने हैमवती के रूप में देवताओं का गर्व-भंजन किया था।
मां शैलपुत्री की आरती:
शैलपुत्री मां बैल असवार। करें देवता जय जयकार।
शिव शंकर की प्रिय भवानी। तेरी महिमा किसी ने ना जानी।
पार्वती तू उमा कहलावे। जो तुझे सिमरे सो सुख पावे।
ऋद्धि-सिद्धि परवान करे तू। दया करे धनवान करे तू।
सोमवार को शिव संग प्यारी। आरती तेरी जिसने उतारी।
उसकी सगरी आस पुजा दो। सगरे दुख तकलीफ मिला दो।
घी का सुंदर दीप जला के। गोला गरी का भोग लगा के।
श्रद्धा भाव से मंत्र गाएं। प्रेम सहित फिर शीश झुकाएं।
जय गिरिराज किशोरी अंबे। शिव मुख चंद्र चकोरी अंबे।
मनोकामना पूर्ण कर दो। भक्त सदा सुख संपत्ति भर दो।
मां शैलपुत्री के मंत्र:
– ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ओम् शैलपुत्री देव्यै नम:
– ऊँ शं शैलपुत्री देव्यै: नम:
– वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
वृषारुढां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
– या देवी सर्वभूतेषु माँ शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
Highlights
1. सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।। 2. ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
नवरात्र पर्व के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-अर्चना की जाती है। साधक इस दिन अपने मन को माँ के चरणों में लगाते हैं। ब्रह्म का अर्थ है तपस्या और चारिणी यानी आचरण करने वाली। इस प्रकार ब्रह्मचारिणी का अर्थ हुआ तप का आचरण करने वाली। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बाएँ हाथ में कमण्डल रहता है।
मां दुर्गा के नवरात्रि के दिनों में षोड्शोपचार पूजा की जानी चाहिए। पहले दिन मां शैलपुत्री स्वरूप की पूजा में नदियों, तीर्थों और दिशाओं का आह्वान किया जाता है। आप शैलपुत्री का ध्यान इस मंत्र से कर सकते हैं-
वन्दे वांछितलाभाय, चंद्रार्धकृतशेखराम्। वृषारूढां शूलधरां, शैलपुत्रीं यशस्विनीम् ॥ पूणेन्दु निभां गौरी मूलाधार स्थितां प्रथम दुर्गा त्रिनेत्राम पटाम्बर परिधानां रत्नाकिरीटा नामालंकार भूषिता ॥ मंत्र ओम् शं शैलपुत्री देव्यै: नम:।
मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। इनका वाहन वृषभ होता है। इनको उमा के नाम से भी जानते हैं। माता के स्वरूप की बात करें शैलपुत्री की पूजा दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं। यह त्रिशूल जहां भक्तों को अभयदान देता है वहीं पापियों को विनाश करता है। बाएं हाथ में इनके सुशोभित कमल का फूल होता है। जिसे शांति का प्रतीक माना जाता है।
1. घर में यदि कोई व्यक्ति व्रत नहीं भी रख रहा है तब भी उसके लिए बनने वाला भोजन सात्विक हो। नौ दिनों तक घर में छौंक का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
2. नौ रात्रों में घर के अन्दर लहसुन और प्याज प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
3. नवरात्रों में व्यक्ति को दाढ़ी, नाखून व बाल नहीं कटवाने चाहिए। शास्त्रों ने इस कार्य को, नवरात्रों में साफ़ मना किया है
4. माता के नौ दिनों की भक्ति वाले दिनों में, मनुष्य को मांस और मदिरा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु मां शैलपुत्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
- नवरात्रों में प्रतिदिन व्यक्ति को माता जी के मंदिर में जाकर, माता जी का ध्यान करना चाहिए और अपने एवं परिवार की खुशहाली की प्रार्थना माता जी से करनी चाहिए।
- शास्त्र बताते हैं कि यदि प्रतिदिन साफ़ जल, नवरात्रों में माता जी को अर्पित किया जाता रहे तो इस कार्य से माता जी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
- यदि आप घर पर ही हैं और बाहर नहीं जाना है तो आपको स्वछता की दृष्टी से नंगे पैर रहना चाहिए। साथ ही साफ़ और पवित्र कपड़ों का ही प्रयोग व्यक्ति को करना चाहिए।
- नवरात्रों में व्यक्ति को नौ दिनों तक देवी माता जी का विशेष श्रृंगार करना चाहिए। श्रृंगार में माता जी को चोला, फूलों की माला, हार और नये-नये कपड़ों से माता जी का श्रृंगार किया जाता है।
- नवरात्रे में माता जी की अखंड ज्योति यदि देशी गाय के घी से जलाई जाये तो यह माता जी को बहुत प्रसन्न करने वाला कार्य होता है। लेकिन अगर गाय का घी नहीं है तो अन्य घी से माता की अखंड ज्योति पूजा स्थान पर जरूर जलानी चाहिए।
Shri Durga Navratri Vrat Story In Hindi, Vrat Vidhi: एक समय बृहस्पति जी ब्रह्माजी से बोले- हे ब्रह्मन श्रेष्ठ! चैत्र व आश्विन मास के शुक्लपक्ष में नवरात्र का व्रत और उत्सव क्यों किया जाता है? इस व्रत का क्या फल है, इसे किस प्रकार करना उचित है? पहले इस व्रत को किसने किया? सो विस्तार से कहिये। बृहस्पतिजी का ऐसा प्रश्न सुन ब्रह्माजी ने कहा- हे बृहस्पते! प्राणियों के हित की इच्छा से तुमने बहुत अच्छा प्रश्न किया है। जो मनुष्य मनोरथ पूर्ण करने वाली दुर्गा, महादेव, सूर्य और नारायण का ध्यान करते हैं, वे मनुष्य धन्य हैं। पूरी कथा यहां पढ़ें...
नवरात्रि के पहले दिन घट स्थापना की जाती है, इस दिन मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। पर्वतराज हिमालय के घर में पुत्री के रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा। इनकी उपासना से विशेष फल की प्राप्ति होती है।
प्रथम दुर्गा त्वंहि भवसागर: तारणीम्।
धन ऐश्वर्य दायिनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यम्॥
त्रिलोजननी त्वंहि परमानंद प्रदीयमान्।
सौभाग्यरोग्य दायनी शैलपुत्री प्रणमाभ्यहम्॥
चराचरेश्वरी त्वंहि महामोह: विनाशिन।
मुक्ति भुक्ति दायनीं शैलपुत्री प्रमनाम्यहम्॥
ये हैं मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना की तिथि
25 मार्च, प्रतिपदा- बैठकी या नवरात्रि का पहला दिन- घट/ कलश स्थापना- शैलपुत्री
26 मार्च, द्वितीया- नवरात्रि 2 दिन तृतीय- ब्रह्मचारिणी पूजा
27 मार्च, तृतीया- नवरात्रि का तीसरा दिन- चंद्रघंटा पूजा
28 मार्च, चतुर्थी- नवरात्रि का चौथा दिन- कुष्मांडा पूजा
29 मार्च, पंचमी- नवरात्रि का 5वां दिन- सरस्वती पूजा, स्कंदमाता पूजा
30 मार्च, षष्ठी- नवरात्रि का छठा दिन- कात्यायनी पूजा
31 मार्च, सप्तमी- नवरात्रि का सातवां दिन- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
1 अप्रैल, अष्टमी- नवरात्रि का आठवां दिन-महागौरी, दुर्गा अष्टमी ,नवमी पूजन
2 अप्रैल, नवमी- नवरात्रि का नौवां दिन- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
1. श्री शैलपुत्री
2. श्री ब्रह्मचारिणी
3. श्री चन्द्रघंटा
4. श्री कुष्मांडा
5. श्री स्कंदमाता
6. श्री कात्यायनी
7. श्री कालरात्रि
8. श्री महागौरी
9. श्री सिद्धिदात्री
देवी वृषभ पर विराजित हैं। शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल है और बाएं हाथ में कमल पुष्प सुशोभित है। यही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा है। नवरात्रि के प्रथम दिन देवी उपासना के अंतर्गत शैलपुत्री का पूजन करना चाहिए।
कलश स्थापना के लिए आप मिट्टी का कलश उपयोग करें तो उत्तम होगा, यदि संभव नहीं है तो फिर लोटे को कलश बना सकते हैं। कलश स्थापना में आपको एक कलश, स्वच्छ मिट्टी, थाली, कटोरी, जल, ताम्र कलश, मिट्टी का पात्र, दूर्वा, इत्र, चन्दन, चौकी, लाल वस्त्र, रूई, नारियल, चावल, सुपारी, रोली, मौली, जौ, धूप, दीप, फूल, नैवेद्य, अबीर, गुलाल, केसर, सिन्दूर, लौंग, इलायची, पान, सिंगार सामग्री, शक्कर, शुद्ध घी, वस्त्र, आभूषण, बिल्ब पत्र, यज्ञोपवीत, दूध, दही, गंगाजल, शहद आदि की आवश्यकता पड़ेगी।
सिद्धि मुहूर्त-
सुबह 7.45 से सुबह 9.35 बजे
अभिजीत मुहूर्त-
10.35 बजे से 11.40 बजे
जय अम्बे गौरी मैया जय मंगल मूर्ति ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिव री ॥टेक॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको मृगमद को ।
उज्ज्वल से दोउ नैना चंद्रबदन नीको ॥जय॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन पर साजै ॥जय॥
केहरि वाहन राजत खड्ग खप्परधारी ।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुःखहारी ॥जय॥
कानन कुण्डल शोभित नासाग्रे मोती ।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत समज्योति ॥जय॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे महिषासुर घाती ।
धूम्र विलोचन नैना निशिदिन मदमाती ॥जय॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत डमरू ॥जय॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर नारी ॥जय॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर बाती ।
श्री मालकेतु में राजत कोटि रतन ज्योति ॥जय॥
श्री अम्बेजी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानंद स्वामी सुख-सम्पत्ति पावै ॥जय॥