Bhaum Pradosh Vrat 2025: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व बताया गया है। यह व्रत हर माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को रखा जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत पर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने और व्रत रखने से जातकों को मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही, उसे समस्त समस्याओं से छुटकारा मिलता है। बता दें कि हर प्रदोष व्रत का नाम उस दिन के अनुसार रखा जाता है, जिस दिन यह पड़ता है। अगर प्रदोष व्रत मंगलवार को हो तो इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। यह व्रत मंगल ग्रह से जुड़े दोषों को कम करने के लिए बेहद प्रभावी माना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, शुभ मुहूर्त, शुभ योग और मंत्र के बारे में।
मार्च में कब है पहला प्रदोष व्रत?
पंचांग के अनुसार, फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 11 मार्च को सुबह 8:12 बजे शुरू होगी और 12 मार्च को सुबह 9:12 बजे समाप्त होगी। ऐसे में 11 मार्च 2025 को भौम प्रदोष व्रत रखा जाएगा। इस दिन का व्रत भौम प्रदोष के नाम से जाना जाएगा क्योंकि यह मंगलवार को पड़ रहा है।
भौम प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्रदोष व्रत की पूजा संध्याकाल में करना सबसे शुभ माना जाता है। ऐसे में इस दिन की पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 6:26 बजे से रात 8:52 बजे तक रहेगा। ऐसा माना जाता है कि इस समय भगवान शिव की पूजा करने से अधिक फल की प्राप्ति होती है।
भौम प्रदोष व्रत पर बन रहे दो शुभ योग
इस बार भौम प्रदोष व्रत पर सुकर्मा और सर्वार्थ सिद्धि योग का संयोग बन रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ये दोनों योग अत्यधिक शुभ माने जाते हैं। इन योगों में की गई पूजा से भक्तों को दोगुना फल प्राप्त होता है और उनकी सभी इच्छाएं पूरी होती हैं।
भौम प्रदोष व्रत का महत्व
शास्त्रों में भौम प्रदोष व्रत को बहुत पुण्यदायी बताया गया है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को कई लाभ मिलते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस व्रत को करने से धन से जुड़ी परेशानियां दूर होती हैं और समृद्धि आती है। जो लोग मंगल दोष से पीड़ित हैं, आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं या कर्ज से परेशान हैं, उन्हें यह व्रत जरूर रखना चाहिए। इस दिन भगवान शिव की पूजा संध्या काल में करने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
भौम प्रदोष व्रत मंत्र
- ऊं नम: शिवाय
- ऊं आशुतोषाय नम:
- ऊं नमो धनदाय स्वाहा
- ऊं ह्रीं नम: शिवाय ह्रीं ऊं
- ॐ हौं जूं सः ॐ भूर्भुवः स्वः ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान्मृ त्योर्मुक्षीय मामृतात् ॐ स्वः भुवः भूः ॐ सः जूं हौं ॐ।
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