Geeta Updesh: कहा जाता है कि गीता में जीवन की हर एक परेशानी का हल मिल जाता है। महाभारत युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को तब गीता का पाठ पढ़ाया था जब उनके कदम युद्ध भूमि में डगमगाने लगे थे। गीता के उपदेशों को सुनकर अर्जुन अपने लक्ष्य को पूरा करने की तरफ अग्रसर हुए। गीता कर्म करने और जीवन में आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है। यहां हम गीता के उन 5 उपदेशों की बात करेंगे जिन पर अमल करने से आप जीवन के किसी भी क्षेत्र में सफलता हासिल कर सकते हैं।

गीता के अनुसार क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र हो जाती है। जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाते हैं। जब तर्क नष्ट होते हैं तो व्यक्ति का पतन शुरू हो जाता है। तात्पर्य गुस्सा किसी भी व्यक्ति को इस हद तक प्रभावित करता है कि वह अपना नाश खुद ही कर लेता है। आज के दौर में गीता में कही गई ये बात काफी कारगर साबित होती है। क्योंकि इंसान कहीं न कहीं गुस्से में आकर आगे बढ़ने की राह मुश्किल कर लेता है।

मनुष्य का मन भी कई बार सफलता की राह में बाधा उत्पन्न करता है। गीता में कहा गया है कि मन पर नियंत्रण बेहद जरूरी है। क्योंकि ज्यादातर हमारे दुखों का कारण मन ही होता है। यह अनावश्यक और निरर्थक इच्छाओं को जन्म देता है और यदि इच्छा पूरी नहीं हो पाए तो विचलित कर देता है। जिससे इंसान अपने लक्ष्यों से पीछे हटने लगता है।

गीता में कहा गया है कि व्यक्ति को स्वयं का आंकलन जरूर करना चाहिए। क्योंकि हमें हमसे अच्छी तरह कोई दूसरा नहीं जान सकता। इसलिए इंसान को अपनी कमियों और अच्छाइयों पर खुद से विचार करके अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण करना चाहिए।

गीता अनुसार व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति होती है। आने वाले परिणामों के बारे में सोचने की बजाय हमें अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए। वर्तमान समय में इंसान किसी भी काम के परिणामों को लेकर पहले से ही घबराने लगता है जिस कारण वह कर्म करने में अपना शत प्रतिशत नहीं दे पाता। इसलिए गीता के कहे अनुसार अपने कर्म को बेहतर तरीके से करें रिजल्ट खुद ब खुद अच्छा आ जायेगा।

अगर किसी काम में हार हो भी जाए तो उससे सीखने का प्रयत्न करें। श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि व्यक्ति को अपने गुरु के अलावा अपने अनुभवों से भी सीख लेनी चाहिए। अन्यथा कई बार व्यक्ति परेशानी में पड़ सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि बार-बार असफलता मिलने के बाद भी व्‍यक्ति उसी पथ पर उसी प्रक्रिया से बार-बार गुजरता है। जबकि उसे बीते समय में मिले परिणामों का विशलेषण करना चाहिए और फिर मिले अनुभवों के आधार पर आगे बढ़ना चाहिए।