महाभारत युद्ध के दौरान भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का पाठ पढ़ाया। जिसमें जीवन का संपूर्ण सार छिपा है। गीता के इन्हीं उपदेशों के कारण अर्जुन अपने लक्ष्य को पूरा करने की तरफ बढ़ पाये। श्रीमद्भागवत गीता आज के समय में भी लोगों के मार्गदर्शन का काम करती है। इसमें कही गईं प्रेरणादायक बातें जीवन के पथ पर निरंतर आगे बढ़ते रहने का हौसला देती हैं। कहा जाता है कि गीता के उपदेशों को यदि अपने जीवन में उतार लिया जाए तो आपको सफल होने से कोई रोक नहीं सकता।

गीता के एक श्लोक में बताया गया है कि इंसान को अपने गुस्से पर काबू रखना चाहिए। कोई भी व्यक्ति जब क्रोध करता है तो भ्रम पैदा होता है। यानी कि वह सही और गलत में भेद नहीं कर पाता। इससे बुद्धि भी व्यग्र हो जाती है। इससे सही बात का तर्क व्यर्थ जाता है और ऐसे में व्यक्ति के पतन की शुरुआत हो जाती है। ऐसे में इंसान को गुस्सा करने से बचना चाहिए क्योंकि गुस्से में कही गईं बातें और लिए गए निर्णय ज्यादातर गलत ही होते हैं। इसलिए जब क्रोध आए तो कुछ समय के लिए रुककर उससे होने वाले परिणामों के बारे में एक बार जरूर विचार कर लें।

गीता में श्रीकृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को ज्ञान और कर्म दोनों को एक समान रूप में देखना चाहिए। कर्म वही करना चाहिए जिसकी ज्ञान इजाजत देता है। इससे व्यक्ति सही गलत और पाप-पुण्य के बीच में आसानी से फर्क समझ सकता है।

जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो मन पर नियंत्रण जरूरी है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि मन अत्यंत ही चंचल होता है। इसपर विराम लगाना जरूरी है। मन की चंचलता के कारण व्यक्ति कई बार गलत कदम उठा लेता है। वर्तमान समय में मन पर नियंत्रण रखने से आशय है कि कई बार हमें पता होता है कि जो हम कुछ करने जा रहे हैं उससे किसी का नुकसान हो सकता है। ये भी हो सकता है कि यह हमारे लिए ही नुकसानदायक साबित हो। लेकिन मन की खुशी के लिए हम जाने अनजाने गलत काम कर बैठते हैं। इस स्थिति में मन ही हमारा सबसे बड़ा दुश्मन बन जाता है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को बताया कि गुरु के अलावा इंसान को अपने अनुभवों से भी सीख लेनी चाहिए। तभी लक्ष्यों तक सुगमता से पहुंचा जा सकता है। अन्यथा कई बार ऐसा देखा गया है कि बार-बार असफलता मिलने के बाद भी व्यक्ति उसी प्रक्रिया से बार-बार गुजरता है। जबकि उसे अपने बीते समय से मिले परिणामों का उचित विशलेषण करना चाहिए और उसके आधार पर ही आगे बढ़ना चाहिए।

गीता ज्ञान देते हुए श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि मोह के बजाए सत्य को जानने का प्रयास करना चाहिए। शरीर तो एक दिन नष्ट हो जाएगा तो इसका मोह त्याग दें और समाज और धर्म की स्थापना के लिए जो बेहतर हो उसे करने का प्रयास करें।