Bhadrapada Purnima Vrat Katha In Hindi, Uma Maheshwar vrat Vrat Katha In Hindi): हिंदू धर्म के अनुसार, साल में कुल 12 पूर्णिमा पड़ती है और हर एक पूर्णिमा का अपना-अपना महत्व है। ऐसे ही भाद्रपद मास में पड़ने वाली पूर्णिमा का विशेष महत्व है।इस दिन उमा-महेश्वर व्रत भी रखा जाता है। इसके अलावा इस दिन स्नान- दान के साथ मां लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। मान्यता है कि इस दिन मां पार्वती-शिवजी के साथ भगवान विष्णु की पूजा करने के साथ चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने से व्यक्ति को हर एक दुख-दर्द से निजात मिल जाती है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही इस दिन उमा महेश्वर का व्रत रखा जाता है। इस दिन माता पार्वती और महेश्वर भगवान शिवजी की पूजा करने का विधान है। माना जाता है कि इस दिन जो व्यक्ति इस व्रत को रखता हैं। उसे पूर्व जन्म के पाप, दोष और शाप से मुक्ति मिलने के साथ खोई चीज वापस मिल जाती है।  धार्मिक कथाओं के अनुसार, स्वयं भगवान विष्णु के अलावा इंद्र देव ने भी यह व्रत रखा था। इस दिन विधिवत पूजा करने के साथ-साथ इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं भाद्रपद पूर्णिमा की व्रत कथा…

भाद्रपद पूर्णिमा शुभ मुहूर्त (Bhadrapada Purnima Vrat Shubh Muhurat)

पूर्णिमा तिथि आरंभ – 17 सितंबर को सुबह 11:44 बजे से
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 18 सितंबर  2024 को सुबह 08:04 बजे तक
पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय – शाम 6:37 बजे

उमा- महेश्वर व्रत कथा (Uma Maheshwar vrat Vrat Katha In Hindi)

भाद्रपद पूर्णिमा के दिन उमा महेश्वर व्रत करने का विधान भी है। इसके अलावा इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करने का भी विधान है। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विधिवत पूजा करने के साथ इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इस उमा महेश्वर व्रत के बारे में नारद पुराण और मत्स्य पुराण में बताया गया है।

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार ऋषि दुर्वासा जी ने भगवान शंकर के दर्शन करने के लिए कैलाश जाते हैं। जहां पर उन्होंने शिव शंकर के साथ मां पार्वती के दर्शन करके अति प्रसन्न हुए। इसके साथ ही भगवान शिव ने एक पुष्प ऋषि को दिया, जिन्हें दुर्वासा जी ने बड़े ही प्रेम के साथ स्वीकार कर लेते हैं।

शिव शंकर और पार्वती के दर्शन करने के बाद कैलाश से वह निकल गए। फिर रास्ते में उनका मन विष्णु जी से मिलने के लिए हुआ। ऐसे में उन्होंने अपना रूख श्री हरि से मिलने के लिए विष्णु लोक के लिए कर लिया। ऐसे में रास्ते में उन्हें  इंद्र देव मिल गए। वह इंद्र को देखकर काफी प्रसन्न हुए और उन्हें शिव जी द्वारा भेंट किया हुए पुष्प दिया। लेकिन इंद्र देव हमेशा अपने पद के कारण अहंकार में रहते थे। ऐसे में उन्होंने वह पुष्प अपने हाथी ऐरावत को पहना दिया। ऐसा देखकर दुर्वासा ऋषि को काफी क्रोध आया।

दुर्वासा ऋषि ने क्रोधित होकर इंद्र से कहा कि  तुमने महादेव शिव शंकर जी का अपमान किया है। मेरे द्वारा दिए हुए पुष्प को तुमने स्वयं न ग्रहण करके ऐरावत को पहना दिया। मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम्हें लक्ष्मी जी छोड़कर चली जाएगी और  इसके साथ ही इंद्रलोक के साथ अपना सिंहासन का भी त्याग करना पड़ेगा।

यह सुनकर इंद्र घबरा गए और शासन जाने का डर सताने लगा। ऐसे में उन्होंने तुरंत ही ऋषि दुर्वासा जी के समक्ष हाथ जोड़कर क्षमा याचना की और इस उनसे  इस शाप से मुक्त होने का उपाय पूछा। इंद्र की विनय सुन कर दुर्वासा जी  शांत हुए और क्रोध शांत होने पर ऋषि दुर्वासा जी ने इंद्र को बताया कि उसे उमा महेश्वर व्रत करना पड़ेगा। इसके बाद ही शिव और माता पार्वती के आशीर्वाद से ही तुम्हें दोबारा सिंहासन मिलेगा। ऐसे में इंद्र देव से इस व्रत को रखा और शिव और पार्वती जी की कृपा से इंद्र को खोया हुए लोक, सिंहासन सहित अन्य चीजों की प्राप्ति हुई। 

डिसक्लेमर- इस लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, पंचांग, मान्यताओं या फिर धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है। इसके सही और सिद्ध होने की प्रामाणिकता नहीं दे सकते हैं। इसके किसी भी तरह के उपयोग करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।

मेष वार्षिक राशिफल 2024वृषभ वार्षिक राशिफल 2024
मिथुन वार्षिक राशिफल 2024कर्क वार्षिक राशिफल 2024
सिंह वार्षिक राशिफल 2024कन्या वार्षिक राशिफल 2024
तुला वार्षिक राशिफल 2024वृश्चिक वार्षिक राशिफल 2024
धनु वार्षिक राशिफल 2024मकर वार्षिक राशिफल 2024
कुंभ वार्षिक राशिफल 2024मीन वार्षिक राशिफल 2024