Bakrid 2025 Kab Hai: हर साल पूरी दुनिया के मुस्लिम समुदाय द्वारा मनाया जाने वाला बकरीद यानी ईद उल-अजहा इस्लाम धर्म का एक बड़ा और पवित्र त्योहार है। यह पर्व सिर्फ कुर्बानी का प्रतीक नहीं, बल्कि अल्लाह के प्रति समर्पण, त्याग और इंसानियत की भावना का प्रतीक है। इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, बकरीद जुल हिज्जा के दसवें दिन उत्साह के साथ मनाया जाता है। हालांकि इसकी तारीख हर साल बदलती रहती है, जिसकी वजह से लोगों में कई बार इसकी सही तिथि को लेकर कन्फूयजन बनी रहती है। ऐसे में आइए जानते हैं कि इस साल बकरीद कब मनाई जाएगी, इसका धार्मिक महत्व क्या है और क्यों इस दिन कुर्बानी दी जाती है।

कब मनाई जाएगी बकरीद 2025?

इस्लामिक हिजरी कैलेंडर के अनुसार, बकरीद हर साल जुल हिज्जा महीने की 10वीं तारीख को मनाई जाती है। लेकिन क्योंकि इस्लामिक कैलेंडर चांद पर आधारित होता है, इसलिए इसकी तारीख हर साल बदलती रहती है। 2025 में बकरीद 6 या 7 जून को मनाई जा सकती है, लेकिन इसकी सही तारीख चांद दिखने के बाद ही तय होगी। भारत समेत दुनिया के कई देशों में मुस्लिम समुदाय चांद के दिखाई देने के अनुसार बकरीद की तारीख तय करते हैं।

क्यों मनाई जाती है बकरीद?

बकरीद की शुरुआत एक ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटना से जुड़ी हुई है। इस्लामिक परंपरा के अनुसार, पैगंबर इब्राहिम को अल्लाह ने आदेश दिया था कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी दें। इब्राहिम ने बिना झिझके अपने बेटे इस्माईल को कुर्बान करने का निश्चय कर लिया। जैसे ही उन्होंने बलिदान देने की कोशिश की, अल्लाह ने उनके इरादे को देखकर उन्हें रोक दिया और उस जगह एक बकरे की कुर्बानी कराई। तभी से कुर्बानी की परंपरा शुरू हुई और हर साल ईद उल अजहा पर कुर्बानी दी जाती है।

बकरीद का धार्मिक महत्व

बकरीद पर कुर्बानी का मतलब केवल जानवर की बलि देना नहीं है। इसका गहरा अर्थ है – अल्लाह के प्रति समर्पण, अपनी इच्छाओं का त्याग और जरूरतमंदों के लिए कुछ करना। कुर्बानी के मांस को तीन हिस्सों में बांटा जाता है – एक हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा रिश्तेदारों और दोस्तों में बांटा जाता है। तीसरा हिस्सा अपने परिवार के लिए रखा जाता है। यह तरीका हमें सिखाता है कि समाज में बराबरी हो, हर कोई खुश रहे और कोई भूखा न सोए।

कैसे मनाया जाता है यह त्योहार?

बकरीद की शुरुआत सुबह की विशेष नमाज से होती है जिसे ईद की नमाज कहते हैं। इसके बाद लोग एक-दूसरे से गले मिलते हैं, मुबारकबाद देते हैं और फिर कुर्बानी का आयोजन होता है। जो लोग कुर्बानी करने में सक्षम नहीं होते, वे दुआ करते हैं और समाज सेवा में भाग लेते हैं। इस दिन कई जगहों पर गरीबों को कपड़े, खाना और पैसे भी बांटे जाते हैं।

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