बगलामुखी जयंती 2020 (Baglamukhi Chalisa, Mantra, Aarti): वैशाख शुक्ल अष्टमी को देवी बगलामुखी का अवतरण दिवस माना जाता है। मां बगलामुखी को पीला रंग अति प्रिय है इसलिए इन्हें पीताम्बरा भी कहा जाता है। इनकी अराधना से शत्रुओं से जुड़ी तमाम बाधाओं से मुक्ति मिल जाती है। ये दसमहामविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। मां बगलामुखी दसमहाविद्याओं में आठवीं महाविद्या हैं। ये स्तम्भन की देवी हैं और सारे ब्रह्माण्ड की शक्ति मिल कर भी इनका मुकाबला नहीं कर सकती।
मां बगलामुखी की पूजा विधि: इस दिन प्रात: काल उठें। संभव हो तो माता की पूजा के समय पीले वस्त्र धारण करें। इस दिन कई लोग व्रत भी रखते हैं। उपासक को माता की अराधना अकेले बैठकर या किसी सिद्ध व्यक्ति के साथ बैठकर करनी चाहिए। पूजा की दिशा पूर्व होनी चाहिए। पूजा वाले स्थान को सबसे पहले गंगाजल से पवित्र कर लें। उसके बाद उस स्थान पर चौकी रख उस पर पीला वस्त्र बिछाकर माता बगलामुखी की मूर्ति स्थापित करें। फिर हाथ धोए और आसन पवित्र करें। बगलामुखी व्रत का संकल्प हाथ में पीले चावल, हरिद्रा, पीले फूल तथा कुछ दक्षिणा लेकर करें। इसके पश्चात धूप, दीप से माता की पूजा करें। उन्हें फल और पीले लड्डू चढ़ाएं। व्रत रखने वाले जातक को इस दिन निराहार रहना चाहिए। रात्रि के समय फल ग्रहण कर सकते हैं। अगले दिन पूजा के बाद भोजन ग्रहण करें।
माँ बगलामुखी मंत्र | Bagalamukhi Mantra
श्री ब्रह्मास्त्र-विद्या बगलामुख्या नारद ऋषये नम: शिरसि।
त्रिष्टुप् छन्दसे नमो मुखे। श्री बगलामुखी दैवतायै नमो ह्रदये।
ह्रीं बीजाय नमो गुह्ये। स्वाहा शक्तये नम: पाद्यो:।
ऊँ नम: सर्वांगं श्री बगलामुखी देवता प्रसाद सिद्धयर्थ न्यासे विनियोग:।
इसके पश्चात आवाहन करना चाहिए
ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं बगलामुखी सर्वदृष्टानां मुखं स्तम्भिनि सकल मनोहारिणी अम्बिके इहागच्छ सन्निधि कुरू सर्वार्थ साधय साधय स्वाहा।
अब देवी का ध्यान करें इस प्रकार
सौवर्णामनसंस्थितां त्रिनयनां पीतांशुकोल्लसिनीम्
हेमावांगरूचि शशांक मुकुटां सच्चम्पकस्रग्युताम्
हस्तैर्मुद़गर पाशवज्ररसना सम्बि भ्रति भूषणै
व्याप्तांगी बगलामुखी त्रिजगतां सस्तम्भिनौ चिन्तयेत्।
बगलामुखी बीज मंत्र | Mantra
ऊँ ह्रीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां
वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्ववां कीलय
बुद्धि विनाशय ह्रीं ओम् स्वाहा।
बगलामुखी चालीसा (Baglamukhi Chalisa):
|| श्री गणेशाय नमः ||
श्री बगलामुखी चालीसा
नमो महाविधा बरदा , बगलामुखी दयाल |
स्तम्भन क्षण में करे , सुमरित अरिकुल काल ||
नमो नमो पीताम्बरा भवानी , बगलामुखी नमो कल्यानी | 1|
भक्त वत्सला शत्रु नशानी , नमो महाविधा वरदानी |2 |
अमृत सागर बीच तुम्हारा , रत्न जड़ित मणि मंडित प्यारा |3 |
स्वर्ण सिंहासन पर आसीना , पीताम्बर अति दिव्य नवीना |4 |
स्वर्णभूषण सुन्दर धारे , सिर पर चन्द्र मुकुट श्रृंगारे |5 |
तीन नेत्र दो भुजा मृणाला, धारे मुद्गर पाश कराला |6 |
भैरव करे सदा सेवकाई , सिद्ध काम सब विघ्न नसाई |7 |
तुम हताश का निपट सहारा , करे अकिंचन अरिकल धारा |8 |
तुम काली तारा भुवनेशी ,त्रिपुर सुन्दरी भैरवी वेशी |9 |
छिन्नभाल धूमा मातंगी , गायत्री तुम बगला रंगी |10 |
सकल शक्तियाँ तुम में साजें, ह्रीं बीज के बीज बिराजे |11 |
दुष्ट स्तम्भन अरिकुल कीलन, मारण वशीकरण सम्मोहन |12 |
दुष्टोच्चाटन कारक माता , अरि जिव्हा कीलक सघाता |13 |
साधक के विपति की त्राता , नमो महामाया प्रख्याता |14 |
मुद्गर शिला लिये अति भारी , प्रेतासन पर किये सवारी |15 |
तीन लोक दस दिशा भवानी , बिचरहु तुम हित कल्यानी |16 |
अरि अरिष्ट सोचे जो जन को , बुध्दि नाशकर कीलक तन को |17 |
हाथ पांव बाँधहु तुम ताके,हनहु जीभ बिच मुद्गर बाके |18 |
चोरो का जब संकट आवे , रण में रिपुओं से घिर जावे |19 |
अनल अनिल बिप्लव घहरावे , वाद विवाद न निर्णय पावे |20 |
मूठ आदि अभिचारण संकट । राजभीति आपत्ति सन्निकट |21|
ध्यान करत सब कष्ट नसावे , भूत प्रेत न बाधा आवे |22 |
सुमरित राजव्दार बंध जावे ,सभा बीच स्तम्भवन छावे |23 |
नाग सर्प ब्रर्चिश्रकादि भयंकर , खल विहंग भागहिं सब सत्वर|24|
सर्व रोग की नाशन हारी, अरिकुल मूलच्चाटन कारी |25 |
स्त्री पुरुष राज सम्मोहक , नमो नमो पीताम्बर सोहक |26 |
तुमको सदा कुबेर मनावे , श्री समृद्धि सुयश नित गावें |27 |
शक्ति शौर्य की तुम्हीं विधाता , दुःख दारिद्र विनाशक माता|28|
यश ऐश्वर्य सिद्धि की दाता , शत्रु नाशिनी विजय प्रदाता | 29 |
पीताम्बरा नमो कल्यानी , नमो माता बगला महारानी |30|
जो तुमको सुमरै चितलाई ,योग क्षेम से करो सहाई |31 |
आपत्ति जन की तुरत निवारो , आधि व्याधि संकट सब टारो|32|
पूजा विधि नहिं जानत तुम्हरी, अर्थ न आखर करहूँ निहोरी |33|
मैं कुपुत्र अति निवल उपाया , हाथ जोड़ शरणागत आया |34 |
जग में केवल तुम्हीं सहारा , सारे संकट करहुँ निवारा |35 |
नमो महादेवी हे माता , पीताम्बरा नमो सुखदाता |36 |
सोम्य रूप धर बनती माता , सुख सम्पत्ति सुयश की दाता |37|
रोद्र रूप धर शत्रु संहारो , अरि जिव्हा में मुद्गर मारो |38|
नमो महाविधा आगारा,आदि शक्ति सुन्दरी आपारा |39 |
अरि भंजक विपत्ति की त्राता , दया करो पीताम्बरी माता | 40 |
रिद्धि सिद्धि दाता तुम्हीं , अरि समूल कुल काल |
मेरी सब बाधा हरो , माँ बगले तत्काल ||
Baglamukhi Aarti (माता बगलामुखी आरती):
जय जयति सुखदा, सिद्धिदा, सर्वार्थ – साधक शंकरी।
स्वाहा, स्वधा, सिद्धा, शुभा, दुर्गानमो सर्वेश्वरी ।।
जय सृष्टि-स्थिति-कारिणि-संहारिणि साध्या सुखी।
शरणागतो-अहं त्राहि माम् , मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
जय प्रकृति-पुरूषात्मक-जगत-कारण-करणि आनन्दिनी।
विद्या-अविद्या, सादि-कादि, अनादि ब्रह्म-स्वरूपिणी।।
ऐश्वर्य-आत्मा-भाव-अष्टम, अंग परमात्मा सखी।
शरणागतो-अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
जय पंच-प्राण-प्रदा-मुदा, अज्ञान-ब्रह्म-प्रकाशिका।
संज्ञान-धृति-अज्ञान-मति-विज्ञान-शक्तिविधायिका ।।
जय सप्त-व्याहृति-रूप, ब्रह्म विभू ति शशी-मुखी ।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
आपत्ति-अम्बुधि अगम अम्ब! अनाथ आश्रयहीन मैं।
पतवार श्वास-प्रश्वास क्षीण, सुषुप्त तन-मन दीन मैं।।
षड्-रिपु-तरंगित पंच-विष-नद, पंच-भय-भीता दुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
जय परमज्योतिर्मय शुभम् , ज्योति परा अपरा परा।
नैका, एका, अनजा, अजा, मन-वाक्-बुद्धि-अगोचरा।।
पाशांकुशा, पीतासना, पीताम्बरा, पंकजमुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
भव-ताप-रति-गति-मति-कुमति, कर्त्तव्य कानन अति घना।
अज्ञान-दावानल प्रबल संकट विकल मन अनमना।।
दुर्भाग्य-घन-हरि, पीत-पट-विदयुत झरो करूणा अमी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
हिय-पाप पीत-पयोधि में, प्रकटो जननि पीताम्बरा!।
तन-मन सकल व्याकुल विकल, त्रय-ताप-वायु भयंकरा।।
अन्तःकरण दश इन्द्रियां, मम देह देवि! चतुर्दशी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।
दारिद्रय-दग्ध-क्रिया, कुटिल-श्रद्धा, प्रज्वलित वासना। वासना।
अभिमान-ग्रन्थित-भक्तिहार, विकारमय मम साधना।।
अज्ञान-ध्यान, विचार-चंचल, वृत्ति वैभव-उन्मुखी।
शरणागतो अहं त्राहि माम्, मां त्राहि माम् बगलामुखी।।