वैदिक ज्योतिष के अनुसार किसी व्यक्ति के कुंडली में ग्रहों कि स्थिति जानने के लिए नाम, जन्मतिथि, जन्म का समय एवं जन्म स्थान के माध्यम से एक जन्म कुंडली बनाई जाती है। जिसके आधार पर आपके जन्म के समय ग्रहों की स्थिति का पता लगाया जाता है। इसी के माध्यम से कुंडली में मौजूद दोष का भी आंकलन किया जाता है।

कुंडली में कोई भी दोष होना अच्छा नहीं माना जाता है। जन्म कुंडली में कुल 12 भाव होते हैं, जो उस व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुंडली में ग्रहों की अनुकूल स्थिति जातकों के लिए फलदायी सिद्ध होती है, वहीं प्रतिकूल स्थिति ज्योतिषीय दोषों को उत्पन्न करती है।

जब कुंडली के कुछ विशिष्ट भावों में हानिकारक ग्रह जैसे शनि, राहु और मंगल स्थित होते हैं तो वे जातक की कुंडली को नुकसान पहुंचाते हैं। जिसके फलस्वरूप दोषों का निर्माण होता है। कुंडली में मौजूद शुभ ग्रहों के कारण बनने वाले दोष को केन्द्राधिपति दोष कहा जाता है। आइए विस्तार से जानते हैं कि यह दोष हमारी जन्म कुंडली को किस प्रकार प्रभावित करता है।

केन्द्राधिपति दोष या केन्द्राधिपत्य दोष: किसी जातक की कुंडली में इस दोष का निर्माण तब होता है जब बृहस्पति, शुक्र, बुध तथा शुक्ल पक्ष चंद्रमा जैसे लाभकारी ग्रह केंद्र भाव के स्वामी बन जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक केंद्र भावों (पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव) के स्वामी तथा त्रिकोण भावों (पहले, पांचवें और नौवें भाव) के स्वामी हमेशा शुभ परिणाम देते हैं लेकिन इस दोष के प्रभाव में केंद्रों के स्वामी नकारात्मक परिणाम देने लगते हैं। बृहस्पति और शुक्र ग्रह ही इस दोष के बनने का कारण हैं लेकिन इसके निर्माण में बुध और चंद्रमा का भी योगदान होता है।

जन्म कुंडली में केन्द्राधिपति दोष का प्रभाव:

बृहस्पति: वैदिक ज्योतिष के अनुसार जब कुंडली में केंद्र भावों यानी कि पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में बृहस्पति स्थित होता है तो इस दोष का निर्माण होता है। मिथुन और कन्या राशि पर बृहस्पति की स्थिति का प्रभाव अधिक होता है।

बुध: बृहस्पति के बाद बुध केंद्राधिपति दोष से अधिक प्रभावित होता है, जब यह पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में स्थित होता है। चूंकि पहला भाव केंद्र और त्रिकोण दोनों होता है इसलिए यह दोष पहले भाव में नहीं होगा। लेकिन जब बुध, लग्न धनु राशि के चौथे भाव में हो तो शिक्षा में बाधाएं उत्पन्न होने की संभावना रहती है। वहीं यदि बुध की महादशा चल रही हो और बुध सातवें भाव में स्थित हो तो यह संबंधों को प्रभावित कर सकता है। इसी प्रकार किसी जातक की कुंडली में बुध दसवें भाव में स्थित हो तो यह करियर में कुछ समस्याएं खड़ी कर सकता है।

शुक्र: किसी जातक की कुंडली में शुक्र पहले, चौथे, सातवें और दसवें भाव में स्थित होने पर इस दोष से प्रभावित होता है। मेष, कर्क और वृश्चिक लग्न के लोग इस दोष से अधिक प्रभावित होते हैं। उदाहरण के तौर पर यदि किसी व्यक्ति पर शुक्र की महादशा चल रही है और उसका लग्न मेष हो और उसकी कुंडली में सातवें भाव में शुक्र बैठा हो तो उसे व्यवसाय और उनके संबंधों में दिक्कतें हो सकती हैं।

चंद्रमा: केंद्राधिपति दोष से प्रभावित होने वाला चंद्रमा आख़िरी ग्रह है। जैसा कि पता है चंद्रमा के दो मुख्य चरण होते हैं, शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। वहीं शुक्ल पक्ष को लाभकारी माना जाता है, इसलिए यह दोष शुक्ल पक्ष पर लागू होता है। उदारण स्वरूप समझें तो किसी व्यक्ति के लिए चंद्रमा की महादशा चल रही है और उसका लग्न मेष है और इस स्थिति में चौथे भाव में चंद्रमा स्थित है। तो यह स्थिति व्यक्ति परिवार के सदस्यों के साथ संबंध ख़राब कर सकती है।