Apara Ekadashi Vrat Katha: अपरा एकादशी पर आज काफी शुभ योगों का निर्माण हो रहा है। आज के दिन विष्णु जी के साथ वामन भगवान की पूजा करने का विधान है। इसके साथ ही मां लक्ष्मी की पूजा करने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ-साथ मां लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने से यश-कीर्ति, मान-सम्मान, धन-संपदा की प्राप्ति होती है। इसके साथ ही आपके द्वारा अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसे अचला एकादशी के नाम से भी जानते हैं। इस एकादशी की महत्ता के बारे में स्वयं श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इस दिन विधिवत पूजा करने के साथ-साथ अंत में इस व्रत कथा का पाठ अवश्य करना चाहिए। इससे आपकी पूजा पूर्ण मानी जाती है। आइए जानते हैं अपरा एकादशी की संपूर्ण व्रत कथा के बारे में…

Apara Ekadashi 2025: अमृतसिद्धि, अयुष्मान योग में अपरा एकादशी व्रत आज, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, मंत्र, पारण का समय और आरती

अपरा एकादशी 2025 (Apara Ekadashi 2025 Date)

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ- 23 मई 2025 को प्रात: काल 01 बजकर 12 मिनट से
ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त- 23 मई को रात 10 बजकर 29 मिनट पर होगा।

अपरा एकादशी 2025 पारण का समय (Apara Ekadashi 2025 Paran Time)

अपरा एकादशी का पारण 24 मई को सुबह 05 बजकर 26 मिनट से सुबह 08 बजकर 11 मिनट तक कर सकते हैं।

अपरा एकादशी व्रत कथा (Apara Ekadashi 2025 Vrat Katha)

पद्म पुराण के अनुसार, ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष को पड़ने वाली अपरा एकादशी के महत्व के बारे में स्वयं श्री कृष्ण ने बताया था। आइए जानते हैं महत्व के साथ-साथ संपूर्ण व्रत कथा

युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा- हे जनार्दन ! ज्येष्ठ के कृष्ण पक्ष में किस नाम की एकादशी होती है ? मैं उसका माहात्म्य सुनना चाहता हूं। कृपया इसके बारे में आप मुझे बताएं।

भगवान् श्रीकृष्ण बोले- हे राजन्! तुमने सम्पूर्ण लोकों के हित के लिए बहुत उत्तम बात पूछी है। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष में पड़ने वाली इस एकादशी का नाम ‘अपरा’है। यह बहुत पुण्य देने  वाली और बड़े-बड़े पातकों का नाश करने वाली मानी जाती है। ब्रह्म हत्या करने वाला, गोत्र की हत्या करने वाला, गर्भस्थ बालक को मारने वाला, पर स्त्री लम्पट पुरुष भी अपरा एकादशी के सेवन से निश्चय ही पाप रहित हो जाता है। जो झूठी गवाही देता, माप-तोल में धोखा देता, बिना जाने ही नक्षत्रों की गणना करता और कूटनीति से आयुर्वेद का ज्ञाता बनकर वैद्य का काम करता है- ये सब नरक में निवास करने वाले प्राणी हैं। परन्तु अपरा एकादशी व्रत रखने से  ये भी पाप रहित हो जाते हैं। अगर कोई  क्षत्रिय क्षात्र धर्म का परित्याग करके युद्ध से भागता है, तो वह क्षत्रियोचित धर्म से भ्रष्ट होने के कारण घोर नरक का भागी होता है। इसके अलावा जो शिष्य विद्या प्राप्त करके स्वयं ही गुरु की निंदा करता है, वह भी महापातकों से युक्त होकर भयंकर नरक में गिरता है। लेकिन अपरा एकादशी का व्रत रखने से वह सद्गति को प्राप्त करता है।

माघ में जब सूर्य मकर राशि पर स्थित हो और उस समय प्रयाग में स्नान करने वाले मनुष्यों को जो पुण्य होता है, काशी में शिवरात्रि का व्रत करने से जो पुण्य प्राप्त होता है, गया में पिंडदान करके पितरों को तृप्ति प्रदान करने से पुण्य मिलता है, बृहस्पति के सिंह राशि पर स्थित होने पर गोदावरी में स्नान करने वाला व्यक्ति को जो फल मिलता है,  बद्रिकाश्रम की यात्रा के समय भगवान केदार के दर्शन से तथा बदरी तीर्थ के सेवन से जो पुण्य फल उपलब्ध होता है। इसके साथ ही सूर्यग्रहण के समय कुरुक्षेत्र में दक्षिणा सहित यज्ञ करके हाथी, घोड़ा और सुवर्ण-दान करने से जो फल मिलता है। इतना ही सब मात्र अपरा एकादशी का व्रत रखने और विधि-विधान से पूजा करने से फल मिल जाता है।  इस दिन व्रत रखने के साथ भगवान वामन की पूजा करने से मनुष्य सब पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसके साथ ही श्री विष्णु लोक की प्राप्ति के साथ इस व्रत कथा का पाठ करने या फिर सुनने से सहस्र गोदान का फल मिलता है।

युधिष्ठिर ने कहा- जनार्दन । ‘अपरा का सारा माहात्य मैंने सुन लिया। अब कथा भी सुना दीजिए।

श्री कृष्ण कहते हैं- हे राजन। प्राचीन काल में महीध्वज नामक एक धर्मात्मा राजा था। लेकिन उसका छोटा भाई वज्र ध्वज बड़ा ही क्रूर, अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। इस द्वेष भाव में एक दिन रात्रि के समय छोटे भाई ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दिया और उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गाड़ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेतात्मा के रूप में उसी पीपल पर रहने लगा और अनेक उत्पात करने लगा।

एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा परलोक विद्या का उपदेश दिया।

दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा (अचला) एकादशी का व्रत किया और उसे अगति से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ॠषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया।

हे राजन! यह अपरा एकादशी की कथा मैंने लोकहित के लिए कही है। इसे पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।

वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस साल देवताओं के गुरु बृहस्पति अतिचारी चाल में चलेंगे। वैसे वह एक राशि में एक साल रहते हैं। लेकिन अतिचारी चाल होने के कारण वह इस साल मिथुन, कर्क और दोबारा मिथुन राशि में प्रवेश करेंगे। ऐसे में किसी न किसी ग्रह के साथ युति या फिर दृष्टि पड़ती रहेगी। ऐसे ही साल के अंत में शुक्र धनु राशि में होंगे और वह गुरु बृहस्पति के साथ समसप्तक राजयोग का निर्माण करेंगे। इस राजयोग का निर्माण होने से इन तीन राशियों को बंपर लाभ मिल सकता है। जानें इन लकी राशियों के बारे में

मेष वार्षिक राशिफल 2025वृषभ वार्षिक राशिफल 2025
मिथुन राशिफल 2025कर्क राशिफल 2025
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