उत्तराखंड के चमोली जिले के गोपेश्वर में सुप्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक अनुसुइया देवी मंदिर और महर्षि अत्रि का आश्रम है जिसका अपना विशेष धार्मिक महत्त्व है, अनुसुइया देवी का मंदिर देवी सती को समर्पित है। अनुसुइया एक महान संत और सप्त ऋषियों में से एक अत्रि मुनि की पत्नी थीं। धार्मिक संस्कारों से परिपूर्ण देवी अनुसुइया अपने पति ऋषि अत्रि मुनि महाराज के प्रति पूरी निष्ठा भावना और आस्था से समर्पित थीं। हिमालय की गोद में स्थित यह तीर्थ स्थल तीर्थयात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
दत्तात्रेय की जयंती के अवसर पर लगता है बड़ा मेला
अनुसुइया देवी के मंदिर में हर साल मार्गशीर्ष महीने की पूर्णिमा पर देवी अनुसुइया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय की जयंती के अवसर पर एक बड़ा मेला लगता है और आसपास के गांवों से श्रद्धालु बड़ी तादाद में देवी मां की डोली लेकर आते हैं और मां के मंदिर में मत्था टेकते हैं जिनमें से कई श्रद्धालु हाथों में दीप जलाकर अनुसुइया देवी सती की आराधना करते हैं और मां जब उनकी मन्नत पूरी करती है तो वे फिर द्वारा दत्तात्रेय जयंती के दिन आकर मां के श्री चरणों में शीश नवाते हैं और उनका आभार व्यक्त करते है।
अनुसुइया देवी के मंदिर से कुछ ही दूरी पर उत्तर दिशा की ओर उनके पति महर्षि अत्रि की गुफा है और गुफा में महर्षि अत्रि की पाषाण मूर्ति है। गुफा के बाहर अमृत गंगा जल प्रपात श्रद्धालुओं को अपनी ओर आकर्षित करता है। यह जलप्रपात अकेला ऐसा जल प्रपात है जिसकी परिक्रमा की जाती है। साथ ही अमृत गंगा को बिना लांघे ही उसकी परिक्रमा की जाती है।
महर्षि अत्रि ऋषि सप्त ऋषियों में से एक हैं जिनका यह क्षेत्र उनकी तप और कर्म स्थली है इस तरह देवी अनुसुइया मंदिर उत्तराखंड में अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी अमृत गंगा पर ऊपर की ओर स्थित है देवी अनुसुइया माता का मंदिर बहुत ही शांतिपूर्ण जगह है जहां पहाड़ियों से कई धाराएं मिलती हैं और मंदाकिनी नदी बनाती हैं। देवी अनसूइया माता के मंदिर में आकर मां और महर्षि अत्रि दोनों का आशीर्वाद और कृपा प्राप्त होती है।
उत्तराखंड के चमोली जिले के गोपेश्वर से 13 किलोमीटर की दूरी तय करने के बाद मंडल नामक स्थान आता है। जहां पर सती माता अनुसुइया मंदिर स्थित है यह मंदिर नागर शैली का बना हुआ है और मध्य हिमालय क्षेत्र में समुद्र तल से 7,201 फिट की ऊंचाई पर स्थित है। अनुसुइया देवी मंदिर उत्तराखंड में अलकनंदा नदी की एक सहायक नदी अमृत गंगा पर ऊपर की ओर स्थित है और एक बहुत ही शांतिपूर्ण स्थान है, जहां पहाड़ियों से कई धाराएं मिलती हैं और मंदाकिनी नदी बनाती हैं।
महर्षि अत्रि ने दुनिया को अंधकार से मुक्ति दिला कर प्रकाश प्रदान किया
अनुसुइया देवी माता अपने नाम के अनुरूप भक्तों को ईर्ष्या और द्वेष से मुक्ति दिलाती है। मां अनुसुइया ने चमोली जिले के मंडल क्षेत्र के घने जंगलों में सप्तर्षियों में से एक महर्षि अत्रि को पाने के लिए कई वर्षों तक कठोर तपस्या की थी और महर्षि अत्रि ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार किया था।
देवी अनुसुइया देवहुति और प्रजापति कर्दम की बेटी हैं और ऋषि कपिला की बहन हैं और वह ब्रह्मा जी के अवतार चंद्र और भगवान विष्णु के अवतार दत्तात्रेय और भगवान शिव के अवतार दुर्वासा ऋषि की माता है और यह तीनों ही संताने दिव्य हैं देवी अनसूया के मंदिर और महर्षि अत्रि की गुफा के बारे में कहा जाता है कि यह वह स्थान है जहां पर महर्षि अत्रि ने पूरी दुनिया को अंधकार से मुक्ति दिला कर प्रकाश प्रदान किया था।
इस बारे में यह कथा है कि जब राहु ने सूर्य को निगल लिया तो पूरा ब्रह्मांड अंधेरे में डूब गया। कई साल की कठोर तपस्या से प्राप्त की गई शक्तियों के बल से महर्षि अत्रि ने सूर्य को राहु से मुक्ति दिलाई और ब्रह्मांड को पुन: प्रकाशित किया और देवताओं को प्रसन्न किया और उनकी तपस्या और साधना की साक्षी बनी उनकी अर्धांगिनी देवी सती माता अनुसुइया।
इसलिए दूर-दूर से श्रद्धालु उत्तराखंड के देवी अनुसुइया मंदिर और महर्षि अत्रि की गुफा के दर्शन करने आते हैं नारद पुराण में देवी अनुसुइया सती की महिमा का वर्णन करते हुए नारद जी कहते हैं कि अनुसुइया महिलाओं में सबसे गुणी थीं और दिव्य गुणों से परिपूर्ण है।