Lakshmi Ashtottara Stotram: वैदिक पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का पर्व मनाया जाता है। हिंदू धर्म में यह दिन बेहद खास माना जाता है, क्योंकि इस दिन गणेश उत्सव का समापन होता है और श्रीगणेश जी का विधिवत विसर्जन किया जाता है। इस साल यह पर्व आज मनाया जा रहा है। मान्यता है कि अगर इस दिन श्रद्धा भाव के साथ भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाए, तो जीवन से दुख, दरिद्रता और परेशानियां दूर होने लगती हैं। साथ ही, आर्थिक तंगी से भी छुटकारा मिलता है। वहीं, ज्योतिष की मानें तो इस दिन श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पाठ करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा मिलती है। ऐसे में यहां पढ़ें पूरी श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्र का पूरा पाठ…

अनंत चतुर्दशी पर करें इन मंत्रों का जाप

ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं, विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं सिद्ध लक्ष्मी नारायण नमः॥
अनंत संसार महासुमद्रे मग्रं समभ्युद्धर वासुदेव। अनंतरूपे विनियोजयस्व ह्रानंतसूत्राय नमो नमस्ते।।
कृष्णाय वासुदेवाय हरये परमात्मने। प्रणत क्लेश नाशाय गोविन्दाय नमो नमः।।

श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर स्त्रोत

देव्युवाच

देवदेव! महादेव! त्रिकालज्ञ! महेश्वर!

करुणाकर देवेश! भक्तानुग्रहकारक! ॥

अष्टोत्तर शतं लक्ष्म्याः श्रोतुमिच्छामि तत्त्वतः ॥

ईश्वर उवाच

देवि! साधु महाभागे महाभाग्य प्रदायकम् ।

सर्वैश्वर्यकरं पुण्यं सर्वपाप प्रणाशनम् ॥

सर्वदारिद्र्य शमनं श्रवणाद्भुक्ति मुक्तिदम् ।

राजवश्यकरं दिव्यं गुह्याद्–गुह्यतरं परम् ॥

दुर्लभं सर्वदेवानां चतुष्षष्टि कलास्पदम् ।

पद्मादीनां वरांतानां निधीनां नित्यदायकम् ॥

समस्त देव संसेव्यम् अणिमाद्यष्ट सिद्धिदम् ।
किमत्र बहुनोक्तेन देवी प्रत्यक्षदायकम् ॥

तव प्रीत्याद्य वक्ष्यामि समाहितमनाश्शृणु ।

अष्टोत्तर शतस्यास्य महालक्ष्मिस्तु देवता ॥

क्लीं बीज पदमित्युक्तं शक्तिस्तु भुवनेश्वरी ।

अंगन्यासः करन्यासः स इत्यादि प्रकीर्तितः ॥

ध्यानम्

वंदे पद्मकरां प्रसन्नवदनां सौभाग्यदां भाग्यदां

हस्ताभ्यामभयप्रदां मणिगणैः नानाविधैः भूषिताम् ।

भक्ताभीष्ट फलप्रदां हरिहर ब्रह्माधिभिस्सेवितां

पार्श्वे पंकज शंखपद्म निधिभिः युक्तां सदा शक्तिभिः ॥

सरसिज नयने सरोजहस्ते धवल तरांशुक गंधमाल्य शोभे ।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीदमह्यम् ॥

ॐ प्रकृतिं, विकृतिं, विद्यां, सर्वभूत हितप्रदाम् ।

श्रद्धां, विभूतिं, सुरभिं, नमामि परमात्मिकाम् ॥ 1 ॥

वाचं, पद्मालयां, पद्मां, शुचिं, स्वाहां, स्वधां, सुधाम् ।
धन्यां, हिरण्ययीं, लक्ष्मीं, नित्यपुष्टां, विभावरीम् ॥ 2 ॥

अदितिं च, दितिं, दीप्तां, वसुधां, वसुधारिणीम् ।

नमामि कमलां, कांतां, क्षमां, क्षीरोद संभवाम् ॥ 3 ॥

अनुग्रहपरां, बुद्धिं, अनघां, हरिवल्लभाम् ।

अशोका,ममृतां दीप्तां, लोकशोक विनाशिनीम् ॥ 4 ॥

नमामि धर्मनिलयां, करुणां, लोकमातरम् ।

पद्मप्रियां, पद्महस्तां, पद्माक्षीं, पद्मसुंदरीम् ॥ 5 ॥

पद्मोद्भवां, पद्ममुखीं, पद्मनाभप्रियां, रमाम् ।

पद्ममालाधरां, देवीं, पद्मिनीं, पद्मगंधिनीम् ॥ 6 ॥

पुण्यगंधां, सुप्रसन्नां, प्रसादाभिमुखीं, प्रभाम् ।

नमामि चंद्रवदनां, चंद्रां, चंद्रसहोदरीम् ॥ 7 ॥

चतुर्भुजां, चंद्ररूपां, इंदिरा,मिंदुशीतलाम् ।

आह्लाद जननीं, पुष्टिं, शिवां, शिवकरीं, सतीम् ॥ 8 ॥

विमलां, विश्वजननीं, तुष्टिं, दारिद्र्य नाशिनीम् ।

प्रीति पुष्करिणीं, शांतां, शुक्लमाल्यांबरां, श्रियम् ॥ 9 ॥

भास्करीं, बिल्वनिलयां, वरारोहां, यशस्विनीम् ।

वसुंधरा, मुदारांगां, हरिणीं, हेममालिनीम् ॥ 10 ॥

धनधान्यकरीं, सिद्धिं, स्रैणसौम्यां, शुभप्रदाम् ।

नृपवेश्म गतानंदां, वरलक्ष्मीं, वसुप्रदाम् ॥ 11 ॥

शुभां, हिरण्यप्राकारां, समुद्रतनयां, जयाम् ।

नमामि मंगलां देवीं, विष्णु वक्षःस्थल स्थिताम् ॥ 12 ॥

विष्णुपत्नीं, प्रसन्नाक्षीं, नारायण समाश्रिताम् ।

दारिद्र्य ध्वंसिनीं, देवीं, सर्वोपद्रव वारिणीम् ॥ 13 ॥

नवदुर्गां, महाकालीं, ब्रह्म विष्णु शिवात्मिकाम् ।

त्रिकालज्ञान संपन्नां, नमामि भुवनेश्वरीम् ॥ 14 ॥

लक्ष्मीं क्षीरसमुद्रराज तनयां श्रीरंगधामेश्वरीम् ।

दासीभूत समस्तदेव वनितां लोकैक दीपांकुराम् ॥

श्रीमन्मंद कटाक्ष लब्ध विभवद्–ब्रह्मेंद्र गंगाधराम् ।

त्वां त्रैलोक्य कुटुंबिनीं सरसिजां वंदे मुकुंदप्रियाम् ॥ 15 ॥

मातर्नमामि! कमले! कमलायताक्षि!

श्री विष्णु हृत्–कमलवासिनि! विश्वमातः!

क्षीरोदजे कमल कोमल गर्भगौरि!

लक्ष्मी! प्रसीद सततं समतां शरण्ये ॥ 16 ॥

त्रिकालं यो जपेत् विद्वान् षण्मासं विजितेंद्रियः ।

दारिद्र्य ध्वंसनं कृत्वा सर्वमाप्नोत्–ययत्नतः ।

देवीनाम सहस्रेषु पुण्यमष्टोत्तरं शतम् ।

येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 17 ॥

भृगुवारे शतं धीमान् पठेत् वत्सरमात्रकम् ।

अष्टैश्वर्य मवाप्नोति कुबेर इव भूतले ॥

दारिद्र्य मोचनं नाम स्तोत्रमंबापरं शतम् ।

येन श्रिय मवाप्नोति कोटिजन्म दरिद्रतः ॥ 18 ॥

भुक्त्वातु विपुलान् भोगान् अंते सायुज्यमाप्नुयात् ।

प्रातःकाले पठेन्नित्यं सर्व दुःखोप शांतये ।

पठंतु चिंतयेद्देवीं सर्वाभरण भूषिताम् ॥ 19 ॥

॥ इति श्री लक्ष्मी अष्टोत्तर शतनाम स्तोत्रं संपूर्णम् ॥

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