स्वामी विवेकानंद अपनी अध्यात्मिक सोच के साथ पूरी दुनिया को वेदों और शास्त्रों का ज्ञान देकर गए, लेकिन 40 साल से भी कम उम्र में उनकी मौत आज भी कइयों के लिए एक रहस्य है कइयों के लिए इसलिए क्योंकि उनके फॉलोअर्स मानते हैं कि स्वामी जी ने स्व-इच्छा से समाधि लेकर शरीर त्याग किया था, लेकिन वैज्ञानिक आधारों को मानने वाले इस समाधि के कॉन्सेप्ट पर विश्वास नहीं करते।
विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को हुआ था और 4 जुलाई 1902 को मात्र 39 साल की उम्र में महासमाधि धारण कर उन्होंने प्राण त्याग दिए थे। कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद के जीवन एक ऐसी घटना घटी जिसने इनके जीवन को बदल दिया था। आगे जानते हैं की आखिर वह कौन सी घटना थी जिसने स्वामी विवेकानंद का जीवन बदल दिया था।
बात उन दिनों की है जब स्वामी विवेकानन्द नये-नये संन्यासी बने थे। उस समय तक उन्होंने प्राणिमात्र में समान भाव से ईश्वर के दर्शन के सन्देश का गंभीरता से अध्ययन नहीं किया था। एक बार वह गाँवों की स्थिति का अध्ययन करने तथा लोगों को सदाचारी बनने और दुर्व्यसनों से दूर रहने का उपदेश देने निकले। भीषण गर्मी में स्वामी जी एक गांव से गुजर रहे थे। उन्हें प्यास लगी थी। खेत की मेड़ पर बैठे एक व्यक्ति को लोटे से पानी पीते देखकर उन्होंने कहा, भैया, मुझे भी थोड़ा पानी पिला दो। उस ग्रामीण ने भगवा वस्त्रधारी को देखकर सिर झुकाया और बोला, महाराज, मैं निम्न जाति का व्यक्ति आपको अपने हाथ से पानी पिलाकर पाप मोल नहीं ले सकता।
स्वामी जी यह सुनकर आगे बढ़ लिए। कुछ ही क्षणों में उन्हें लगा कि उन्होंने संन्यासी बनने के लिए जाति, परिवार और पुरानी प्रचलित गलत मान्यताओं का त्याग कर दिया, फिर आग्रह करके उस निश्छल ग्रामीण का पानी क्यों नहीं स्वीकार किया। उनका जाति अभिमान क्यों जाग उठा? यह तो अधर्म हो गया। वह तुरन्त किसान के पास लौटकर बोले, भैया, मुझे क्षमा करना। मैंने तुम जैसे निश्छल परिश्रमी व्यक्ति के हाथों से पानी न पीकर घोर पाप किया है। निम्न जाति तो उसकी होती है, जो दुर्व्यसनी और अपराधी होता है। स्वामी जी ने उसके हाथ से पानी ग्रहण किया। बाद में वह खुलकर ऊँच-नीच की भावना पर प्रहार करते रहे।