पति पत्नी के रिश्ते में जहां बेहद प्यार होता है तो वहीं किसी न किसी बात को लेकर नोकझोंक भी होती रहती है। लेकिन कई बार ये नोकझोंक इतनी बढ़ जाती है कि पति या पत्नी गुस्सें में ऐसा काम कर देते हैं जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। क्योंकि क्रोध के वश में आकर मनुष्य को कोई सुध नहीं रहती और ज्यादातर वह उन्हीं कार्यों को करता है जिसे करके उसे बाद में पछताना पड़ सकता है। इस पर कथा वाचक जया किशोरी माता सती और भगवान शिव की एक पौराणिक कथा का जिक्र करते हुए कहती हैं कि पति पत्नी को कभी भी झगड़े के समय घर छोड़ कर नहीं जाना चाहिए क्योंकि क्रोध के कारण बुद्धि सही स्थिति में नहीं रह पाती है। जिससे प्रेम संबंधों में खटास और दूरी आने लगती है। इसलिए अगर कितना ही गुस्सा क्यों न आए। बस झगड़े के समय घर का त्याग कभी न करें भले ही ऐसा आप कुछ दिन बाद ऐसा कर लें।
जया किशोरी कहती है इसी तरह क्रोध वश माता सती अपने पति भगवान शिव का घर छोड़ अपने पिता के यहां चली गईं थीं। भोलेनाथ के समझाने के बाद भी उन्होंने उनकी एक नहीं सुनी और गुस्से में कैलाश छोड़ कर चली गई। तब भगवान शिव को समझ आ गया था कि अब सती वापस नहीं आयेगी। ये घटना उस समय की है जब उनके पिता द्वारा एक यज्ञ का आयोजन किया गया था जिसमें शामिल होने के लिए वो पहुंची थी।
उस दौरान सभा के समय तीनों देवों के आसन रखने जरूरी होते थे। चाहे उन्हें बुलाया गया हो या नहीं। माता सती जब अपने पिता के यहां पहुंची तो उन्होंने देखा कि ब्रह्मा और विष्णु का तो वहां आसन लगा है लेकिन शिव का आसन नहीं है। अपने पती के इतने बड़े अपमान को वह सह नहीं पाई और पिता से इस बात की चर्चा की तो उनका और उनके पति का और अपमान किया गया। पिता के कड़वे वचन को सुनकर माता सती ने वहीं हवन कुंड में अपनी आहुति दे दी। इसी कारण जया किशोरी कहती हैं कि क्रोध में कभी भी घर छोड़ कर नहीं जाना चाहिए।
