शंकर जालान
आजादी के बाद तीन दशक तक पश्चिम बंगाल के कपड़ा उद्योग की ख्याति न केवल अन्य राज्यों तक फैली थी, बल्कि लाखों लोगों की रोजी-रोटी भी इससे जुड़ी थी। वर्ष 1977 में वाममोर्चा के सत्ता में आने के बाद साल-दर-साल सूबे का कपड़ा उद्योग न केवल सिकुड़ता गया, बल्कि कई दिक्कतों से भी जूझने लगा। वर्ष 1947 के आसपास देशभर में कुल 65 कपड़ा मिलें थीं, जिनमें से 37 मिलें अकेले सूबे में ही थी। 37 मिलों में 18 सरकारी और 19 निजी कंपनियों के स्वामित्व में थीं। इनमें हजारों लोग काम करते थे। लाखों मीटर कपड़ों की बुनाई होती थी।
कपड़ा उद्योग की बदहाली पर कपड़े के थोक कारोबारी श्रीमोहन राठी ने बताया कि सरकारी उदासीनता, यूनियन, कुशल मजदूरों की कमी, दूसरे उद्योगों की ओर बढ़ता रुझान और समय के साथ बदलाव न करने समेत कई कारण हैं जिसके कारण यहां के कपड़ा उद्योग पर संकट छा गया। राठी ने बताया कि एक जमाने में शहर के मटियाबुर्ज, नदिया जिले के राणाघाट व हुगली जिले के रिसड़ा में केशोराम कॉटन मिल, बावरेश कॉटन मिल, जयश्री कॉटन मिल व अन्नपूर्णा कॉटन मिल के अलावा पावरलूम के क्षेत्र में विद्यासागर, मोहिनी, बंगेश्वरी व लख्खीरतन मिलें थी, जिनमें से कई बंद हो चुकी हैं। कुछ करीब-करीब बंद होने के कगार पर है। ऐसे में साफ तौर पर कहा जा सकता है कि राज्य के कपड़ा उद्योग का अस्तित्व खतरे में है।
एक अन्य कपड़ा कारोबारी पवन अग्रवाल का मानना है कि राज्य के कपड़ा उद्योग के पिछड़ने के पीछे कई वजहें हैं। इनमें बांग्लादेश में कपड़े का तेजी से बढ़ता कारोबार और बंगाल से वस्त्र निर्यात का सीमित दायरा मुख्य हैं। साथ ही नोटबंदी और वस्तु व सेवा कर (जीएसटी) का लागू होना, ई वे बिल व नई तकनीकी की मशीनें भी पिछड़नेके कारण हैं, जिससे सूबे का वस्त्र उद्योग धीरे-धीरे तबाह होता गया। उन्होंने कहा कि अब बंगाल का कपड़ा उद्योग गुजरात और महाराष्ट्रकी तुलना में काफी पिछड़ता जा रहा है। राज्य के उद्योग मंत्रालय का कहना है सरकार कपड़ा उद्योग को खोया हुआ गौरव पुन: दिलाना चाहती है। व्यापारियों की समस्याओं का सही निदान करने के लिए भी मंत्रालय सहयोग को तैयार है।
बंगाल में अब तीन ही कपड़ा मिलें
एक समय पश्चिम बंगाल में बने कपड़ों पर बिहार, ओड़िशा, उत्तर प्रदेश और असम के अलावा पूर्वी भारत के कई राज्य निर्भर थे। लेकिन वक्त के साथ सूबे का कपड़ा उद्योग पूरी तरह सिकुड़ और सिमट गया है। आज हालत यह है कि सरकारी क्षेत्र की एक भी मिल अस्तित्व में नहीं है जबकि तीन निजी मिलें ही सूबे में काम कर रही हैं।