कम उम्र में लड़कियों के विवाह के मामले में बिहार, छत्तीसगढ़ या झारखंड जैसे पिछड़े कहे जाने वाले राज्य नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल पहले स्थान पर है। सात साल से एक महिला के मुख्यमंत्री रहने और सरकार की ओर से इस सामाजिक कुरीति पर अंकुश लगाने के लिए कन्याश्री जैसी योजनाएं शुरू करने के बावजूद। नेशनल फेमिली हेल्थ सर्वे-4 की ताजा रिपोर्ट से इसका पता चला है। वर्ष 2005-06 में हुए ऐसे तीसरे सर्वेक्षण में बिहार पहले स्थान पर था जबकि बंगाल चौथे पर।
पश्चिम बंगाल में बीते सात वर्षों में हालात में कोई खास बदलाव नहीं आया है। वर्ष 2011 की जनगणना में यह तथ्य सामने आया था कि कन्या के बाल विवाह के मामले में बंगाल सबसे आगे है। राज्य में यह औसत 7.8 फीसद था जो राष्ट्रीय औसत (3.7 फीसद) के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा था। अब आंकड़ों में भले मामूली हेरफेर हुआ हो, कुल मिला कर हालात जस के तस हैं।
ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि बंगाल में बाल विवाह में महज आठ फीसद की कमी आई जबकि बिहार, झारखंड, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों में 20 फीसद तक की गिरावट दर्ज की गई। जिलावार विश्लेषण से पता चलता है कि पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में सबसे ज्यादा (39.9 फीसद) बाल विवाह होते हैं। उसके बाद गुजरात के गांधीनगर (39.3 फीसद) और राजस्थान के भीलवाड़ा (36.4 फीसद) जिले का नंबर आता है।
हिमाचल प्रदेश और मणिपुर को छोड़ कर ज्यादातर राज्यों में बाल विवाह दर में लगातार कमी आई है। देश में 15 से 19 साल तक की लड़कियों के विवाह की राष्ट्रीय औसत दर अब 11.9 फीसद हो गई है। रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह का प्रचलन शहरी इलाकों के मुकाबले ज्यादा है। इन इलाकों में इसका औसत शहरी इलाके के 6.9 फीसद के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा लगभग 14.1 फीसद है। इसमें कहा गया है कि बाल विवाह का सीधा संबंध शिक्षा से है। शिक्षित परिवारों में ऐसे मामले अपेक्षाकृत कम सामने आते हैं।
पश्चिम बंगाल में सात वर्षों से एक महिला मुख्यमंत्री सत्ता में हैं। राज्य में बाल विवाह के मामलों को ध्यान में रखते हए सरकार ने वर्ष 2013 में ऐसे मामलों पर अंकुश के लिए कन्याश्री नामक योजना शुरू की थी। इसके तहत आठवीं से 12वीं तक की छात्राओं को सालाना साढ़े सात सौ रुपए की स्कालरशिप और 18 की उम्र पूरी होने पर एकमुश्त 25 हजार रुपए के अनुदान का प्रावधान है। इस योजना का मकसद लड़कियों में स्कूली शिक्षा को बढ़ावा देकर बाल विवाह जैसी कुरीति पर भी अंकुश लगाना है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कहती हैं, इस योजना के तहत फिलहाल 50 लाख से ज्यादा छात्राओं को सरकारी सहायता मिल रही है। इस योजना को संयुक्त राष्ट्र की ओर से अवार्ड भी मिल चुका है।
लेकिन आखिर इस योजना के बावजूद राज्य में बाल विवाह पर अंकुश लगाने में कामयाबी क्यों नहीं मिल रही है? समाजशास्त्रियों का कहना है कि यह योजना दरअसल ग्रामीण इलाकों में विवाह अर्थव्यस्था का हिस्सा बन गई है। शिक्षा के लिए मिलने वाली रकम और एकमुश्त नकद सहायता का इस्तेमाल दहेज देने के लिए किया जा रहा है। उनका कहना है कि इस योजना की निगरानी के लिए एक ठोस तंत्र जरूरी है। एक समाजशास्त्री मनोहर गांगुली कहते हैं कि राज्य में बाल विवाह को शिक्षा और जागरूकता से ही अंकुश लगाया जा सकता है। बंगाल में बाल विवाह ही महिलाओं की तस्करी की एक प्रमुख वजह है। वर्ष 2016 में महिला तस्करी के मामले में बंगाल पूरे देश में अव्वल रहा था। लेकिन ऐसे मामलों में सजा की दर महज 9.8 फीसद थी। नतीजन ऐसे मामलों में शामिल तस्करों के हौसले लगातार बढ़ रहे हैं।

