प्रभाकर मणि तिवारी
पश्चिम बंगाल में सक्रिय कोयला और बालू माफिया राज्य की नदिया और झारखंड से सटे इलाके की जमीन को धीरे-धीरे खोखला कर रहे हैं। खासकर कोयले की अवैध खुदाई से जमीन धंसने से हर साल दर्जनों लोग मौत के मुंह में समा जाते हैं। राज्य की विभिन्न नदियों में सत्तारूढ़ दल के संरक्षण में चलने वाली बालू की अवैध खुदाई के कारण कई विरासत इमारतों पर खतरा पैदा हो गया है। इन नदियों का पारिस्थितिकी तंत्र भी बिगड़ रहा है। लेकिन न तो कोयले की अवैध खुदाई पर अंकुश लगाने के कोई ठोस प्रयास हो रहे हैं और न ही बालू की। इन दोनों कारोबार का सालाना टर्नओवर करोड़ों में है।रानीगंज और आसनसोल इलाके में ऐसी सैकड़ों खदानें हैं जिन पर माफिया का राज है। यह कोयला माफिया पड़ोसी झारखंड से सस्ते मजदूरों को लाकर खदानों के आसपास बसाता है। उनसे अवैध खदानों से कोयला निकलवाया जाता है। वह कोयला यहां से ट्रकों के जरिए बनारस व कानपुर तक भेजा जाता है। इस इलाके की खदानें ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (ईसीएल) की हैं, लेकिन उसने भी इस मामले पर चुप्पी साध रखी है। अवैध खुदाई वहीं होती है जिन खदानों से ईसीएल कोयला निकालना बंद कर चुका है। मजदूरों को महज दो सौ रुपए मिलते हैं। जानकारों के मुताबिक इलाके में लगभग पांच सौ अवैध खदानें हैं और वहां कोई 20 हजार मजदूर काम करते हैं। इन खदानों में अक्सर मिट्टी से दब कर या पानी में डूब कर दो-एक लोग मरते रहते हैं। लेकिन यह खबर भी उनके साथ ही वहीं दब जाती है। माफिया के हाथ बहुत लंबे हैं। कोयला उद्योग से जुड़े लोग बताते हैं कि इलाके में अवैध खनन एक समानांतर उद्योग है। रोजाना हजारों टन कोयला इसके जरिए निकलता है।
ईसीएल के एक अधिकारी कहते हैं कि बड़े पैमाने पर होने वाली इस अवैध खुदाई पर अंकुश लगाना मुश्किल है। इसके लिए राज्य सरकार व पुलिस को ही कार्रवाई करनी होगी। लेकिन, सरकार और प्रशासन की दलील है कि ईसीएल को अपनी बंद खदानों को ठीक से सील कर देना चाहिए ताकि उनको दोबारा नहीं खोला जा सके। इस अंधाधुंध खुदाई के कारण इलाके के कई गांवों में जमीन धंसने लगी है। पहाड़गढ़ के सैकत अली कहते हैं कि हमने कई बार सरकार से शिकायत की है, लेकिन कहीं कोई नहीं सुनता।
दूसरी ओर, नदियों से बालू और पत्थरों की अवैध खुदाई ने राज्य की कई नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र और उनकी घाटियों को खतरे में डाल दिया है। बालू माफिया की बढ़तीसक्रियता को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल में इस मामले पर निगाह रखने का निर्देश दिया है। सिंचाई विभाग के एक अधिकारी बताते हैं कि राज्य की तीन प्रमुख नदी घाटियों-भागरथी-हुगली घाटी, दामोदर घाटी और तीस्ता घाटी पर इस अवैध कारोबार का सबसे ज्यादा असर है। इसका असर पर्यावरण पर भी पड़ रहा है। नदिया स्थित नदी शोध संस्थान के उप-निदेशक (हाइड्रालिक्स) बी.सी.बर्मन बताते हैं कि बालू के खनन से नदी के किनारे मिट्टी का कटाव तो तेज होता ही है, नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को भी नुकसान पहुंचता है। बड़े पैमाने पर बालू निकालने के कारण नदियों की गहराई बढ़ जाती है। इससे समुद्र से उनमें खारा पानी आने का खतरा बढ़ जाता है। सिंचाई विभाग के अधिकारियों का कहना है कि अकेले उत्तर बंगाल में कम से कम पांच सौ जगहों से बालू की अवैध खुदाई की जाती है। कस्टम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तर बंगाल स्थित चेंग्डाबांधा और फूलबाड़ी सीमा चौकी से होकर रोजाना साढ़े तीन सौ से चार बालू व पत्थर भरे ट्रक बांग्लादेश जाते हैं।

