जल बोर्ड का 235 एमजीडी पानी कहां है? यह वह सवाल है जिसका जवाब मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेकर जलमंत्री राजेंद्र पाल गौतम ढूंढ़ रहे हैं। इस सवाल का जवाब ढूंढ़ते मंत्री को बताया गया कि इसका पता लगाने के लिए उन्हें और कहीं नहीं बल्कि पानी की आपूर्ति में लगी समूची प्रणाली में झांकना होगा। उन्हें खंगालना होगा कि दिल्ली को पानी पिलाने वाला इसका तंत्र कितना सेहतमंद और सक्षम है।

जलबोर्ड में कथित घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री और पूर्व जलमंत्री कपिल मिश्र के बीच मचे घमासान के बीच नए जल मंत्री ने जल बोर्ड पहुंच कर कर्मचारियों की सुध ली। दिल्ली में पानी बाकी शहरों की तुलना में कम नहीं है। यह बात मुख्यमंत्री भी मानते हैं तो भी आज तक कई इलाकों में पानी को लेकर घमासान क्यों मचा रहता है? यह जानने व इसे दुरुस्त करने की पहल करते हुए नए जल मंत्री, जल बोर्ड जेई एसोसिएशन के बुलावे पर जब यहां पहुंचे तो बताया गया कि जल बोर्ड में करीब 20 से 25 फीसद पानी आपूर्ति के दौरान बर्बाद हो जाता है। 10 से 12 फीसद पानी पुरानी पाइप या सड़कों के चौड़ा करने के कारण खराब पाइप से रिस जाता है। ज्यादातर पाइप लाइनों की तय उम्र पूरी हो चुकी है। यहां बताया गया कि करीब साढेÞ सात सौ जूूनियर इंजीनियर हैं जो जल बोर्ड के पानी के शोधन से लेकर पानी के आपूर्ति के काम में लगे हुए हैं। इनमें से करीब साढ़े तीन सौ कर्मचारी मंत्री से मिलने पहुंचे भी थे।
एसोसिएशन नेता उमेश राणा ने बताया कि जल बोर्ड में 30 से 32 सालों से काम कर रहे जूनियर इंजीनियरों (जेई) को इतने सालों से कोई बेहतर काम करने के एवज में पुरस्कृत करने या पदोन्नत करने की कोई कोशिश नहीं हुई। लगभग हर जेई ने इस तरह की शिकायत की कि आज तक जेई के पद पर ही काम करते रहने से उन्हें अपने आसपास के समाज में असहजता का सामना करना पड़ता है। बिना वजह भ्रष्ट मान लिया जाता है।