भारत-बांग्लादेश सीमा के नजदीक दूरदराज के साउथ नारायणपुरा गांव की एक कॉलोनी में 39 वर्षीय मिनाती दास का नया पता होगा जिन्हें त्रिपुरा में तीन दशक लंबे उग्रवाद के दौरान अपने परिवार के साथ घर छोड़ने को विवश होना पड़ा था। पश्चिम त्रिपुरा में हजारों अन्य विस्थापित परिवारों के साथ, रहने वाली मिनाती दास तब से अस्थायी मलिन बस्तियों में रह रही थी जो अपनी दैनिक जरूरत को पूरा करने के लिए घरेलू कामकाज और दिहाड़ी मजदूरी का काम करती थी। यह राहत 30 सालों के बाद सामने आई है। भाजपा की अगुवाई वाली राज्य सरकार ने हाल ही में पश्चिम त्रिपुरा और सिपाहीजाला जिलों में 235 परिवारों को भूमि का पट्टा सौंपा।

इनमें से 55 परिवारों को दक्षिण नारायणपुर गांव में बसने के लिए इस महीने की शुरूआत में पट्टा मिल गया था। मिनाती ने कहा, ‘‘अब यह मेरा आश्रय स्थल है। मैं खुश हूं कि सरकार ने मुझे 1296 वर्ग फुट क्षेत्र आवंटित किया। कम से कम रहने के लिए हमारे पास एक जगह है।’’ त्रिुपरा में आदिवासियों और गैर आदिवासियों के बीच 1980 के दशक में जातीय हिंसा हुई थी जिसमें 6000 से अधिक लोग मारे गये थे।

हालांकि, ‘पश्चिम जिला और सिपाहीजाला उदबास्तु उन्नयन कमेटी’ के सचिव सजल पोद्दार ने दावा किया कि उग्रवाद और जातीय ंिहसाओं के दौरान विस्थापित हुये कुल परिवारों में से केवल कुछ प्रतिशत लोगों को ही पट्टा मिला है। समिति पिछले 18 सालों से बेघर लोगों के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ रही है और हर परिवार के लिए एक भूखंड और पांच लाख रूपये की मांग कर रही है।