जलवायु परिवर्तन, ऊर्जा संकट और घातक बीमारियों जैसी वैश्विक समस्याओं का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को छात्रों से कहा कि वे ‘कट-पेस्ट’ की जगह नवोन्मेष और अनुसंधान के जरिए इन समस्याओं के समाधान की चुनौती को स्वीकार करें।
यहां बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए मोदी ने छात्रों से कहा कि वे अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी होने के बाद भी ‘मस्तिष्क को ग्रहणशीलता और नए ज्ञान के लिए उत्सुक रखें।’
मोदी ने बीएचयू के शिक्षाविदों से कहा, ‘मैं इस चुनौती को इस देश के युवा पुरुषों और महिलाओं के समक्ष रखना चाहता हूं। ऐसे नवोन्मेष के साथ आइए, जो थोड़ा तापमान कम करने में विश्व की मदद कर सकता हो, भीषण ऊर्जा संकट से निपटने में मदद कर सके। यदि नवीकरणीय और सतत वैकल्पिक स्रोत नहीं ढूंढ़े जाते हैं तो मानवता को बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है।’ उन्होंने कहा कि छात्रों को देश और विश्व के सामने खड़ी समस्याओं का समाधान ढूंढ़ने का सपना देखना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमारे लिए नवोन्मेष बहुत महत्वपूर्ण है…नया अनुसंधान, कट-पेस्ट के जरिए सिर्फ पीएचडी हासिल करने के लिए नहीं।’’ छात्रों के ठहाकों पर प्रधानमंत्री ने परिहास करते हुए कहा कि उन्हें लगता था कि बीएचयू के छात्र अनुसंधान के ‘कट-पेस्ट’ पहलू से अवगत नहीं होंगे, लेकिन यदि वे होंगे भी तो उन्हें उम्मीद है कि उन्होंने इसका इस्तेमाल नहीं किया होगा।
मोदी ने कहा कि उन्होंने विगत में नोबेल पुरस्कार विजेताओं से ‘आदिवासी परिवारों में सिकल सेल बीमारी’ पर नियंत्रण के बारे में बात की है, जो यहां तक कि कैंसर से भी ज्यादा बुरी है। उन्होंने कहा कि लेकिन उन्हें लगता है कि ‘हमारे खुद के अनुसंधानकर्ता कोई बेहतर समाधान ढूंढ़ सकते हैं।’
ग्लोबल वार्मिंग जिसका मुकाबला करने में विश्व को संघर्ष करना पड़ रहा है, के बारे में बात करते हुए, उन्होंने कहा कि भारतीय प्रकृति के दोहन को अपराध मानते हैं और पौधों में ईश्वर और किसी नदी में मां को देखते हैं।
मोदी ने कहा, ‘एक ऐसे देश में, क्या हम ग्लोबल वार्मिंग का कोई ठोस समाधान नहीं ढूंढ़ सकते।’ ऊर्जा संकट के मद्देनजर, उन्होंने कहा कि इस बारे में अनुसंधान के जरिए कोई समाधान निकल सकता है कि किस तरह एथनॉल को र्इंधन के रूप में प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया जा सकता है, जिससे गन्ना किसानों को भी लाभ होगा। उन्होंने कहा कि नवीकरणीय ऊर्जा को और अधिक व्यवहार्य बनाने के लिए भी अनुसंधान की आवश्यकता है।