पर्वतीय क्षेत्रों में हालात यह है कि बीते सोमवार को एक दिन में ही जंगल जलने की छह दर्जन से ज्यादा घटनाएं हुईं, जिनमें 80 हेक्टेयर से ज्यादा जंगल जलकर राख हो गया। जंगलों में आग की विकराल घटनाओं को देखते हुए जंगलात विभाग के कर्मचारियों और अधिकारियों की छुट्टियां रद्द कर दी गई हैं। राज्य में हाई अलर्ट जारी किया गया है और अगले चार दिन तक मौसम शुष्क रहने के कारण गर्मी और अधिक बढ़ने की संभावना है। इससे जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ सकती हैं।

सूबे के आरक्षित वन क्षेत्रों में 255 से अधिक और उससे बाहरी क्षेत्रों में 131 से अधिक आग सतर्कता निर्देश जंगलात विभाग ने जारी किए हैं। जंगल जलने से यहां का तापमान भी तेजी से बढ़ गया है। उधमसिंह नगर और हरिद्वार जिलों के मैदानी क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस के आसपास है। इससे दोपहर में 35 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से गर्म हवाएं चल रही हैं।

आग लगने से सबसे ज्यादा खतरनाक हालत गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले के श्रीनगर, कीर्तिनगर, खिरसु, पावो विकासखंडों में हैं। यहां रिहायशी क्षेत्रों में आग फैल रही है। पौड़ी गढ़वाल जिले में बीते छह दिनों से आग लगने की घटनाएं लगातार हो रही हैं। श्रीनगर गढ़वाल के श्रीकोट में सरकारी मेडिकल कॉलेज के आसपास आग की लपटें फैल जाने से यहां सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई है। बिजली के कई तार और मोबाइल टॉवर आग की भेंट चढ़ गए हैं। इससे बिजली और संचार की व्यवस्था ठप पड़ गई हैं। पौड़ी गढ़वाल जिले में ही 510 हेक्टेयर जंगल की जमीन को आग लगने से नुकसान हुआ है। इस जिले में 190 से ज्यादा जंगलों में आग लगने की घटनाएं हुई हैं। इसके बाद राजाजी टाइगर रिजर्व पार्क के हरिद्वार वन प्रभाग में आग लगने की 118 घटनाएं हुई हैं, जिसमें 57 हेक्टेयर जंगल जल गया है।

पहाड़ के चार जिलों पौड़ी, बागेश्वर, अल्मोड़ा और टिहरी के जंगलों में सबसे ज्यादा आग की घटनाएं हुई हैं। बागेश्वर जिले में 12, अल्मोड़ा जिले में 11 और टिहरी जिले के जंगलों में आग लगने की छह घटनाएं हुई हैं। इसके के अलावा उत्तरकाशी, कर्णप्रयाग, ऋषिकेश, चम्बा, चकराता, नैनीताल जिले के हल्द्वानी, काठगोदाम, पिथौरागढ़ के जंगलों में आग लगने की घटनाएं एक हफ्ते से लगातार हो रही हैं।

उत्तराखंड के मुख्य वन संरक्षक और नॉडल अधिकारी (वनाग्नि नियंत्रण) बीपी गुप्ता का कहना है कि अब तक उत्तराखंड में जंगलों में आग लगने की 717 घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें 1,177 हेक्टेयर जंगल को नुकसान हुआ है। साथ ही वन विभाग की विभिन्न क्षेत्रों में 18 हेक्टेयर क्षेत्र में फैली नर्सरियां आग की भेंट चढ़ चुकी हैं। जंगलात विभाग ने 350 फायर वाचर और छह हजार वनकर्मियों को आग बुझाने के काम में लगाया है।

सूत्रों के मुताबिक सूबे के जंगलात विभाग ने गर्मिर्यों के इस सीजन में आग से निपटने के लिए 60 करोड़ रुपए की मांग की थी, परंतु महकमे को 12.37 करोड़ रुपए का बजट ही आबंटित हुआ, जिसमें से जंगलात विभाग के मुख्यालय को साढ़े चार करोड़ रुपए की पहली किस्त जारी हो पाई है। आग लगने का सीजन 15 फरवरी से शुरू हुआ था। शुरू में बारिश और बर्फबारी से ऐसी घटनाएं कम हुईं।

आजकल उत्तराखंड के दौरे पर आई लोकसभा की याचिका समिति 24 मई को उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की समीक्षा अल्मोड़ा में एक बैठक के दौरान करेगी और जंगल की आग से निपटने के लिए दीघर्कालीन कार्ययोजना पर विचार किया जाएगा। उत्तराखंड में हर दूसरे या तीसरे साल जंगलों में आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। वन विभाग के मुताबिक पहाड़ों के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग जलती हुई बीड़ी जंगलों में फेंक देते हैं। इस कारण आग लग रही है।

उत्तराखंड में 2005 में जंगलों में लगी आग से 3,652 हेक्टेयर वन क्षेत्र प्रभावित हुआ था। 2009 में आग लगने से 4,115 हेक्टेयर जंगल की जमीन को नुकसान हुआ था। 2012 में 2,827 हेक्टेयर वन भूमि आग की भेंट चढ़ी थी। आग लगने से सबसे ज्यादा नुकसान 2016 में हुआ। इसमें 5 हजार हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गए। इसके अलावा 1992, 1997 और 2004 में उत्तराखंड के जंगलों में भीषण आग लगी थी।

चारधाम यात्रा प्रभावित

उत्तराखंड में श्रीनगर पौड़ी गढ़वाल में राष्ट्रीय राजमार्ग में जंगल में लगी आग की लपटें बद्रीनाथ और केदारनाथ जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग में फैलने से चारधाम यात्रा प्रभावित हुई है और यात्रियों में भय बैठ गया है। उत्तराखंड के पूरे पहाड़ों में धुआं होने से तीथर्यात्रियों और स्थानीय लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है। उत्तराखंड के पर्वर्तीय क्षेत्रों के जंगलों में आग लगने से चारों ओर धुएं के गुब्बार दिखाई दे रहे हैं।

“उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से वन्य जीवों को हुए नुकसान का सर्वे किया जा रहा है। जिन क्षेत्रों में आग लगी है, वहां सबसे ज्यादा नुकसान जमीन के अंदर रहने वाले वन्य जीवों खरगोश, सांप, मेंढक, झिंगुर समेत कई कीट प्रजातियां अण्डों समेत जलकर राख हो गर्इं, क्योंकि यह सीजन इन वन्य जीवों की प्रजातियों का प्रजनन काल है। आग में उनके अण्डे तक जल गए।”

-डॉ दिनेश चंद्र भट्ट, अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणविद् और पक्षी विज्ञानी