गंगा नदी में खनन को लेकर उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, सूबे के मुख्य सचिव के एस रामास्वामी, औद्योगिक सचिव शैलेष बगोली, अपर सचिव और खनन निर्देशक विनय शंकर पांडेय के खिलाफ हरिद्वार के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में मुकदमा दर्ज किया गया है। अदालत में पूर्व मुख्यमंत्री और सूबे के तीन आलाधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज होने से सूबे की राजनीति में हड़कंप मच गया है।  उत्तराखंड के इतिहास में यह पहली बार हुआ है कि पूर्व मुख्यमंत्री, सूबे के मुख्य सचिव, सचिव और अपर सचिव के खिलाफ अदालत में एक साथ  मुकदमा दर्ज हुआ है। पर्यावरण को समर्पित संस्था मातृ सदन ने बीते सोमवार को हरिद्वार के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, सूबे के मुख्य सचिव, औद्योगिक सचिव तथा अपर सचिव के खिलाफ गंगा नदी में खनन को लेकर शासनादेश में कुट रचना को लेकर याचिका दायर की थी।
मातृ सदन के संत ब्रह्मचारी दयानंद की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने इस पूरे मामले पर गंभीरता से संज्ञान लिया। उन्होंने ब्रह्मचारी दयानंद के तर्कों को गंभीरता से सुना। सुनवाई के बाद मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत, मुख्य सचिव एस रामास्वामी, औद्योगिक सचिव शैलेष बगोली और अपर सचिव और खनन निदेशक विनय पांडेय के खिलाफ वाद दर्ज कर लिया। इस मामले की अगली सुनवाई 19 मई को होगी।

मातृ सदन के संस्थापक स्वामी शिवानंद सरस्वती ने बताया कि 15 नवंबर 2016 को तत्कालीन हरीश रावत सरकार के कार्यकाल में एक शासनादेश जारी किया गया था। इसमें रायवाला से भोगपुर तक गंगा में खनन खोल दिया गया था। इस शासनादेश में यह भी लिखा गया था कि इस शासनादेश को राज्यपाल की सहर्ष स्वीकृति प्रदान की गई है। जबकि मातृ सदन में सूचना के अधिकार में राजभवन से इस शासनादेश के जारी होने के बाबत जानकारी मांगी तो तब की हरीश रावत सरकार और शासन में तैनात आलाधिकारियों द्वारा किया गया फर्जीवाड़ा खुलकर सामने आया। मातृ सदन के स्वामी शिवानदं सरस्वती के मुताबिक राजभवन ने इस शासनादेश की जानकारी होने से ही साफ इनकार कर दिया था। मातृ सदन ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और शासन के आलाधिकारियों पर फर्जीवाडेÞ का आरोप लगाया है। मातृ सदन का कहना है कि 18 मार्च 2016 को औद्योगिक विकास विभाग अनुभाग एक उत्तराखंड शासन ने शासनादेश जारी कर रायवाला से भोगपुर तक गंगा में खनन पर प्रतिबंध लगा दिया था। पांच दिसंबर 2016 को नैनीताल हाई कोर्ट ने गंगा में रायवाला से भोगपुर तक खनन बंद करने की निर्देश दिए थे। छह दिसंबर 2016 को केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय बोर्ड ने रायवाला से भोगपुर तक गंगा में खनन और गंगा नदी से पांच किमी की परिधि में स्ट्रोन क्रेशर लगाने पर पाबंदी लगा दी थी।

मातृ सदन के मुताबिक गंगा पर खनन खोलने के लिए तत्कालीन हरीश रावत सरकार ने 15 नवंबर 2016 को कूट रचना करके गंगा नदी में खनन खोलने का फर्जी शासनादेश जारी करवाया। जिस पर अदालत में मातृ सदन ने याचिका दायर की थी। वहीं हरीश रावत ने कहा कि अदालत से नोटिस आने पर वे इस मामले का उचित जवाब देंगे। उन्होंने किसी भी तरह के फर्जीवाड़े से इनकार करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने खनन को लेकर एक नीति बनाई थी। उसी के तहत काम किए गए। भाजपा ने इस मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की घेराबंदी की है। पार्टी के प्रवक्ता डॉक्टर देवेंद्र भसीन ने कहा कि ये मामला बहुत गंभीर है। पार्टी इस मामले के सभी पहलुओं का अध्ययन कर रही है। भाजपा नेता भसीन ने कहा कि भ्रष्टाचार के किसी मुद्दे को राज्य सरकार बर्दाश्त नहीं करेगी। चाहे वह कितना भी बड़ा व्यक्ति हो।