हिन्दी के जानेमाने व्याकरणाचार्य और स्वतंत्रता सेनानी आचार्य किशोरी दास वाजपेयी की बीते 37 सालों से विभिन्न केंद्र सरकारों ने घोर उपेक्षा की। इन सरकारों ने हिन्दी प्रेमियों को वाजपेयी की स्मृति में डाक टिकट जारी करने और उनके हरिद्वार के उपनगर कनखल स्थित किराये के मकान को स्मारक बनाने का कोरा आश्वासन ही दिया। परंतु वाजपेयी के सम्मान में कोई ठोस पहल नहीं की। यही रवैया उत्तरप्रदेश और उत्तराखंड की सरकारों का भी रहा।
11 अगस्त 1981 को आचार्य किशोरी दास वाजपेयी ने कनखल में अपने किराये के मकान इंजन वाली हवेली में अंतिम सांस ली थी। तब देशभर के साहित्यकारों ने वाजपेयी के मकान को उनका स्मारक बनाने और उनकी याद में डाक टिकट जारी करने की मांग की थी। जाने माने हिन्दी साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार डॉ. कमलकांत बुधकर ने वाजपेयी की स्मृति में डाक टिकट जारी करने और उनके मकान को स्मारक बनाए जाने की 37 साल पहले मुहिम छेड़ी थी। अटल बिहारी वाजपेयी, चंद्रशेखर समेत देश के कई बडे़ नेताओं, साहित्यकारों के दस्तखत तब के प्रधानमंत्री को प्रेषित ज्ञापन में करवाए थे और इन्हें सौंपा गया था।
लोगों के सहयोग से प्रतिमा स्थापना
चंद्रशेखर और अटल बिहारी वाजपेयी जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने खुद ही वाजपेयी की याद को चिरस्थायी बनाने के लिए कोई पहल तक नहीं की। साहित्यकार वरिष्ठ पत्रकार कमलकांत बुधकर के प्रयासों से पत्रकारों की संस्था भारतीय सेवा परिषद और कलाकारों तथा साहित्यकारों की संस्था वाणी के सहयोग से बसंत पंचमी के दिन आठ फरवरी 1992 को आचार्य किशोरी दास वाजपेयी की प्रतिमा उनकी कर्मस्थली कनखल चौक बाजार में स्थापित की गई। प्रतिमा का अनावरण वरिष्ठ पत्रकार अक्षय कुमार जैन ने किया।
इस मूर्ति की स्थापना के समय भारतीय संवाद परिषद के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार कौशल सिखौला और महामंत्री नरेश गुप्ता थे। जयराम आश्रम के संचालक रहे ब्रह्मलीन देवेन्द्र स्वरूप ब्रह्मचारी, संतोषी माता आश्रम की परमाध्यक्ष महामंडलेश्वर स्वामी संतोषी माता, अर्द्धकुंभ 1992 में अपर मेलाधिकारी रहे बाबा हरदेव सिंह, नगर पालिका के पूर्व अध्यक्ष पारस कुमार जैन, पंडित लक्ष्मण राव बुधकर, समाजसेवी सतपाल कुमार, सतीश कुमार जैन, समाजसेवी सुधीर कुमार गुप्ता, सुभाष मेहता और सुधीर कुमार कंद का विशेष योगदान रहा।
यादों का मेला
हरिद्वार जिला बार एसोसिएसन के पूर्व अध्यक्ष रामकुमार एडवोकेट कहते हैं कि कनखलवासियों के दिलों में आज भी वाजपेयी से जुड़ी यादें बसी हुई हंै। इन्हें कभी भुलाया नहीं जा सकता है। वाजपेयी का चेहरा बरबस लोगों के सामने आज भी आ जाता है। वाजपेयी की तनी हुई मूंछें और उनकी कड़क आवाज कनखल के लोगों के जहन में आज भी बसी है। जगदीश हलवाई बताते हैं कि कनखल चौक बाजार में उनके उस्ताद फत्तो हलवाई की दुकान में बैठकर वाजपेयी अक्सर शाम को दूध जलेबी खाते थे। फत्तो उस्ताद की दुकान ही कनखल के बौद्धिकों का कॉफी हाउस थी।
किशोरी दास वाजपेयी के संस्मरण सुनाते हुए शिक्षाविद् जोगेन्द्र लाल जग्गी बताते हैं कि हमारे विद्यालय श्री मिथिलेश सनातन धर्म इंटर कॉलेज कनखल में तब के प्रधानाचार्य और वाजपेयी के शिष्य रहे बसंत कुमार पांडे ने अपने कार्यकाल में वाजपेयी का अभिनंदन समारोह किया था।
कनखल में की थी साहित्य साधना
आचार्य किशोरी दास वाजपेयी जी ने हिन्दी को व्याकरण युक्त भाषा साबित करने के लिए कई वर्षों तक कनखल में साहित्य साधना की। इसीलिए वाजपेयी जी को हिन्दी का पाणिनी भी कहा जाता है। उन्होंने हिन्दी शब्दानुशासन, भारतीय भाषा विज्ञान, राष्टÑभाषा का प्रथम व्याकरण, बृजभाषा का व्याकरण, रस और अलंकार, संस्कृति का पांचवां अध्याय, हिन्दी शब्द-मीमांसा, हिन्दी निरुक्त, अच्छी हिन्दी, तरंगिणी काव्य, हिन्दी की वर्तनी तथा शब्द विश्लेषण और सुदामा नाटक समेत 32 पुस्तकों की रचना की थी। 1897 को उत्तरप्रदेश के रामनगर निकट बिठूर (कानपुर) में आचार्य किशोरी दास वाजपेयी जी का जन्म हुआ था। वाजपेयी जी को अपनी जन्मतिथि याद नहीं थी, इसलिए उन्होंने विद्या की देवी सरस्वती के पूजन दिवस बसंत पंचमी के दिन अपना जन्मदिन मनाना शुरू किया। तबसे उनका जन्मदिन हर बसंत पंचमी को मनाया जाता है। आचार्य वाजपेयी कनखल में जिस इंजन वाली हवेली वाले मकान में किराये पर रहते थे, उसको उसके मालिक बड़ा उदासीन अखाड़े के महंतों ने किसी व्यक्ति को किराये पर दे दिया और अखाड़े ने ही उनका स्मारक बनाने के साहित्यकारों के सपने को चूर-चूर कर दिया।