यूपी को पॉलिथीन की थैलियों से मुक्त बनाने की महत्त्वाकांक्षी योजना में प्लास्टिक और थर्मोकोल से बने उत्पाद भी शामिल किए गए हैं। पूरी योजना को कुल तीन चरणों में अमलीजामा पहनाया जाना है। उल्लंघन करने वालों पर श्रेणीवार जुर्माना भी निर्धारित किया गया है। पहले चरण में 50 माइक्रोन से कम घनत्व वाली पॉलीथीन की थैलियों पर प्रतिबंध लगा है। जबकि तीसरे चरण, यानी 2 अक्तूबर से सभी तरह की पॉलिथीन की थैलियों पर पूरी तरह से रोक लगाई जानी है।

पहला चरण

यूपी प्लास्टिक और अन्य जीव अनाशित कूड़ा-कचरा (विनियमन) अधिनियम 2000 के तहत योजना का पहला चरण 15 जुलाई से लागू हो चुका है। इसमें 50 माइक्रोन से कम घनत्व वाली पॉलिथीन की थैलियों (कैरी बैग) से प्रदेश को मुक्त करने के लिए विभिन्न प्राधिकृत विभाग अधिकारी छापेमारी कर उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगा रहे हैं।

दूसरा चरण

15 अगस्त से सभी नगर पंचायत, नगर पालिका, नगर निगम और औद्योगिक विकास प्राधिकरण क्षेत्रों में प्लास्टिक या थर्मोकोल निर्मित और उपयोग के बाद निस्तारण योग्य कप, ग्लास, प्लेट, चम्मच, टंबलर के उपयोग, विनिर्माण, विक्रय, वितरण, भंडारण, परिवहन, आयात या निर्यात पर रोक लगाने के दिशा-निर्देश भी जारी हुए हैं। यानी तीन सप्ताह बाद ऐसे उत्पादों को रखने, बेचने समेत इस्तेमाल पर रोक लगनी है। इसे लेकर जारी शासनादेश सरकारी विभागों तक सीमित है। इन उत्पादों का थोक से लेकर खुदरा कारोबार करने वालों को इसकी जानकारी नहीं दी गई है, ताकि अगले तीन सप्ताह में वे अपने भंडारण (स्टाक) को खत्म कर लें और नया ना मंगाए।

तीसरा चरण

2 अक्टूबर 2018 से प्रदेश में किसी भी तरह, यानी 50 माइक्रोन से ज्यादा घनत्व वाली पॉलिथीन की थैलियां भी प्रतिबंधित हो जाएंगी। तब कपड़े या कागज के थैले ही सामान लाने के विकल्प के तौर पर इस्तेमाल हो सकेंगे। उल्लंघन करने वालों पर जुर्माना लगाने का अधिकार जिलाधिकारियों, उप जिलाधिकारियों, नगरीय स्थानीय निकायों के नगर आयुक्त, अधिशासी अधिकारियों, क्षेत्रीय अधिकारियों, सफाई निरीक्षक, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों, पर्यावरण विभाग के निदेशक, उप निदेशकों, उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास प्राधिकरणों के सहायक प्रबंधक, अवर अभियंता और उससे उपर के सभी अधिकारियों समेत 12 विभागों को दिया गया है।

कागज की मांग बढ़ने से पर्यावरण को ज्यादा खतरा

विकसित देशों की दिक्कत को जबरदस्ती भारत में लागू किया जा रहा है। पॉलिथीन समेत कचरे के भंडारण और प्रबंधन प्रक्रिया गलत है। जिसके कारण पॉलिथीन की थैलियां नदी, नालियों और सीवर प्रणाली के लिए घातक साबित हो रही हैं। जानकारों के मुताबिक पॉलिथीन प्रतिबंध करने से पहले इसका आकलन नहीं किया गया कि इससे कागज से बने थैलों की कितनी ज्यादा मांग बढ़ जाएगी, जो पर्यावरण के लिए ज्यादा नुकसानदायक साबित हो सकता है। भारत जैसे विकासशील देशों में रिसाइकिलिंग की पर्याप्त सुविधाएं हैं। पॉलिथीन की थैलियों को एकत्रित कर भंडारण सुनिश्चित किया जाए, तो कागज के थैलों के मुकाबले बहुत ज्यादा फायदेमंद साबित होगा। नगर निगम, निकाय, पंचायत स्तर पर साफ-सफाई करने में दक्ष लोगों को लगाकर तकनीक आधारित पॉलिथीन भंडारण सुनिश्चित करना चाहिए, ताकि रिसाइकिल कर उसे कई बार इस्तेमाल किया जा सके।

नया नहीं है प्रतिबंध, पहले विकल्प देना चाहिए था

उप्र में पॉलिथीन थैलियों पर प्रतिबंध कोई नया फैसला नहीं है। कुछ साल पहले भी इसी तरह पॉलिथीन पर प्रतिबंध लगाया गया था। जो कुछ दिनों के अभियान के बाद ठप पड़ गया था। वास्तविक समस्या पॉलिथीन के निस्तारण की है। हालांकि रोक लगाने से पहले व्यापक- प्रचार प्रसार करने के साथ विकल्प उपलब्ध कराना चाहिए। कानपुर समेत यूपी में बड़ी संख्या में पॉलिथीन की थैलियां बनाने वाली फैक्टरियां भी हैं।

-जेएस यादव, पूर्व सदस्य सचिव, यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड

स्वत: नष्ट हो जाने वाली (बॉयो डिग्रेडेबल प्लास्टिक) का प्रयोग कारगर साबित नहीं हुआ है। कैप्सूल और कीटनाशकों में इसका इस्तेमाल हो रहा है। यह पानी में घुल जाती हैं लेकिन इसका घनत्व बहुत कम है। इस वजह से ज्यादा वजन नहीं उठा सकती हैं।

– दीपक जैन, पर्यावरणविद्