ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण दिवालिया होने की कगार पर है। प्राधिकरण ने अपनी सभी योजनाएं बंद कर दी हैं। किसानों से जमीन खरीदने पर रोक लगा दी गई है और विकास योजनाएं भी अधर में लटक गई हैं। बीते हफ्ते प्राधिकरण के खाते में सिर्फ एक करोड़ रुपए बचे थे और वेतन के भी लाले पड़ गए थे। हालांकि प्राधिकरण को इस हफ्ते आबंटियों से 25 करोड़ रुपए मिले हैं। अब उन गांवों के किसानों से जमीन खरीदी जाएगी, जहां पर परियोजनाएं चल रही हैं। अगर आने वाले समय में प्राधिकरण की हालत नहीं सुधरी तो नाइट सफारी, मेट्रो, हेलिपैड, डीएमआइसी, ओवर ब्रिज जैसी परियोजनाओं पर भी असर पड़ सकता है। इन परियोजनाओं के लिए चालू वित्त वर्ष में करीब तीन से चार हजार करोड़ रुपए की जरुरत पड़ सकती है।
मौजूदा वक्त में प्राधिकरण करीब 7000 करोड़ रुपए के कर्ज में डूबा है। पहले से अधिक कर्ज होने के कारण बैंक प्राधिकरण को कर्ज देने के लिए भी तैयार नहीं हैं। प्राधिकरण के खाते में सिर्फ एक करोड़ रुपए रह गए हैं, जिसके कारण प्राधिकरण ने किसानों से जमीन खरीदनी बंद कर दी है और नए टेंडर भी रोक दिए हैं। जिन ठेकेदारों का प्राधिकरण पर बकाया था, उनके चेक रोक दिए गए हैं और किसी भी निर्माण कार्य या किसी भी मद में प्राधिकरण ने धन आबंटित नही किया है। अधिकारियों का मानना है कि किसानों को अतिरिक्त मुआवजा देने से भी प्राधिकरण पर असर पड़ा है।
अदालत के निर्देश पर प्राधिकरण को 64.7 फीसद अतिरिक्त मुआवजे के रूप में करीब 1000 करोड़ रुपए किसानों को देने पड़े। हालांकि यह राशि बिल्डरों और आबंटियों से वसूली जानी थी, जोकि उन्होंने नहीं दी और प्राधिकरण को बैंकों से कर्ज लेकर किसानों को मुआवजा देना पड़ा। प्राधिकरण को हर महीने दो दर्जन बैंकों को ब्याज के 70 करोड़ रुपए चुकाने पड़ते हैं। वहीं बिल्डरों पर प्राधिकरण का करीब 12500 करोड़ रुपए बकाया है। 31 अगस्त तक बिल्डरों को प्राधिकरण में 26 करोड़ रुपए जमा करने थे, लेकिन बिल्डरों ने यह राशि नहीं दी, जिससे प्राधिकरण कंगाली के कगार पर है।