इतिहासकार इरफान हबीब ने रविवार को कहा कि मुगलसराय रेलवे स्टेशन का नाम आरएसएस विचारक दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखना या ‘‘नेहरू को बाहर करने’’ के प्रयास भगवा नेताओं के बीच किसी हस्ती की अनुपस्थिति को दर्शाता है। ‘‘आजादी के 70 साल’’ विषय पर यहां एक व्याख्यान में हबीब ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन नये मूल्यों और आदर्शों का ऋृणी है।

उन्होंने कहा, ‘‘वे दीनदयाल उपाध्याय का नाम यहां वहां प्रयोग कर सकते हैं, वे जितना चाहें (जवाहरलाल) नेहरू के नाम को बाहर कर सकते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि राष्ट्रीय आंदोलन में उनके नेताओं के बीच कोई हीरो (हस्ती) नहीं है।’’

बता दें कि 8 जून को योगी सरकार की कैबिनेट ने मुगलसराय स्टेशन का नाम बदलकर दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर रखने का फैसला किया था, लेकिन एक दिन बाद ही कुछ लोगों ने इस नाम पर आपत्ति जताई और स्टेशन का नाम पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर रखे जाने की मांग की। जिसके बाद मुगलसराय स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय और लाल बहादुर शास्त्री के नाम के बीच में फंस गया।

यूपी सरकार मुगलसराय स्टेशन का नाम दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर इसलिए रखना चाहती है क्योंकि 25 सितंबर 1916 को जन्मे उपाध्याय 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय स्टेशन के पास रहस्यमयी परिस्थितियों ने मृत पाए गए थे। मुगलसराय देश के सबसे व्यस्ततम स्टेशनों में से एक है, जो ग्रांड ट्रंक रोड से पास स्थित है। इसका नाम मुगलसराय इसलिए रखा गया था क्योंकि पूर्वी भारत से पेशावर जाने वाला मुगल कारवां और व्यापारी यहां रात में रुकते थे और अगली सुबह आगे का सफर तय किया करते थे। मुगलसराय वाराणसी से 16 किमी. दूर स्थित है।

वहीं यह शहर पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्मस्थल है। आरएसएस और संघ परिवार से जुड़े अन्य संगठन दीनदयाल उपाध्याय के नाम पर ही मुगलसराय स्टेशन का नाम चाहते हैं, जबकि दूसरा ग्रुप पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के नाम पर रखे जाने के पक्ष में है। दोनों ग्रुपों के बीच इस जंक्शन को लेकर विवाद बन गया है, और शायद यही वजह है कि योगी सरकार भी असमंजस की स्थिति में है।