यूपी के संभल में फतेहपुर शमशोई गांव में दशकों से चली आ रही भेदभाव की दीवार उस समय गिर गई जब नाइयों ने वाल्मीकि समाज के लोगों के बाल काटने को तैयार हो गए। पिछले एक महीने से नाईयों ने दुकानें बंद कर रखी थी। क्योंकि इसके पीछे की वजह वाल्मीकि समाज के लोगों के बाल न काटने की प्रथा थी। मंगलवार को गांव में पहली बार दुकानें खुली और 6 नाईयों ने वाल्मीकि समाज के लोगों के बाल काटे। यह सब उस समय संभव हुआ जब पुलिस और स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने इस मामले में हस्तक्षेप किया और नाइयों से कहा कि अगर उन्हें काम करना है तो गांव में रहने वाले सभी लोगों के बाल काटने होंगे। जाति के आधार पर किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार नहीं किया जाएगा।
फतेहपुर शमशोई गांव की आबादी में 15,00 ठाकुर और ब्राह्मण हैं और करीब 200 वाल्मीकि रहते हैं। आरोप है कि दशकों से वाल्मीकि परिवारों को गांव के नाई उन्हें सेवाएं नहीं देते। गांव के नाई उनके बाल नहीं काटते और न ही दाढ़ी बनाते हैं क्योंकि ऊंची जातियों का आदेश है कि उन्हें सेवाएं देने की सूरत में ऊंची जातियां उन नाइयों की सेवाएं नहीं लेंगी। करीब महीनेभर पहले एक मुस्लिम नाई वाल्मीकियों के बाल काटने के लिए राजी हो गया था और उसने घोषणा की थी कि वह सभी के बाल काटेगा। बाद में महफूज ने कथित तौर पर उच्च वर्ग के लोगों द्वारा दबाव डाले जाने पर वाल्मीकि समाज के लोगों से बाल काटने से इनकार कर दिया। जिसके बाद विरेश वाल्मीकि नाम के स्थानीय शख्स ने 4 नाइयों के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। जिसके बाद नाइयों ने दुकानें बंद कर दी थी।
वहीं, इस मामले को लेकर वाल्मीकि समाज के लोगों ने सामाजिक कार्यकर्ता लल्ला बाबू द्रविड़ से संपर्क किया। इसके बाद उन्होंने गांव का दौरा किया और अल्टीमेटम जारी किया कि अगर वाल्मीकि समाज के लोगों के बाल गांव के नाइयों द्वारा नहीं काटा गया तो वे लोग हिंदू धर्म से दूर चले जाएंगे। मंगलवार को इस सिलसिले में गांव में एक बैठक की गई। बेहजोई पुलिस के थानाध्यक्ष रंजन शर्मा ने कहा कि वह इस बैठक का हिस्सा थे। बैठक में नाइयों ने वाल्मीकि समाज के लोगों के बाट काटने पर सहमति जताई और कुछ लोगों के बाल भी काटे गए।

